Introduction of Khortha language – खोरठा भाषा का परिचय

Khortha – खोरठा भासा का सामान्य परिचय

भारत का 28 वां राज्य झारखण्ड एक बहुप्रजातीय, बहुसांस्कृतिक एवं बहुभाषिक राज्य है ।

विशिष्ट भौगोलिक ,सांस्कृतिक अस्मिता से युक्त झारखण्ड में मुलतः तीन प्रजाति निवास करते है :- प्रोटो-ऑस्ट्रोलायड, द्रविड, आर्य

झारखण्ड में तीन परिवार की भाषाएं बोली जाती हैं :-

1. आस्ट्रिक भासा परिवार – मुण्डारी, संथाली, हो, खड़िया

2. द्रविड भासा परविार – कुडुख (उराँव), माल्टो

3. आर्य भासा परिवार सदान (सदानी भासा 4 सदस्य भासा)

• भारतीय आर्य भासा परिवार की भासा सदानी नाम से जानी जाती है।

• सदानी गैर जनजातीय समुदाय (सदान मूल-वासी) की भासा हैं।

• जनजातीय समुदाय और सदानों / गैर जनजातीय समुदाय के बीच सम्पर्क भासा का काम करती है। खोरठा, कुरमाली , नागपुरी , पाँच परगनिया

• खोरठा में कुडुख भाषा के शब्द सबसे ज्यादा पाये जाते हैं।

Introduction of Khortha language - खोरठा भाषा का परिचय

Khortha – खोरठा कहाँ की भासा है, कहाँ बोली जाती है?

Khortha – खोरठा झारखंड के अतिरिक्त देश के अन्य प्रदेशों जैसे पश्चिम -बंगाल ,असम, अंडमान के साथ -साथ मारिसस आदि में भी बोली जाती है। झारखंड के 3 प्रमंडलों के अर्न्तगत 16 जिलों में बोली जाती है । वे है –

उत्तरी छोटा नागपुर प्रमंडल-

रामगढ़, हजारीबाग, चतरा, कोडरमा , गिरिडीह, बोकारो• धनबाद

पलामू प्रमंडल के सभी जिले –

लतेहार , पलामू , गढ़वा

संथाल परगना प्रमंडल के सभी जिलें –

गोड्डा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, साहेबगंज, पाकुड़

खोरठा भासा का क्षेत्रफल – 31 हजार वर्गमील हैं ये आकलन शिव दयाल सिंह “शिव दीप” का है। 1.25 करोड़ से 1.75 करोड़

झारखंड की जनसंख्या –

वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार – 4.9 मिलियन (49 लाख)

वर्ष 2011 की जनगणना – 8.55 मिलियन (80-85 लाख)

Khortha- खोरठा की लिपि

लिपि खोरठा – देवनागरी लिपि (जिसका वर्त्तमान में प्रयोग होता है।)

खोरठा – खोरठा लिपि (जिसका प्रयोग नहीं होता है।) खोरठा लीपि ‘डॉ. नागेश्वर महतो’ द्वारा बनाई गई है।

अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की लीपि

संथाली – ओलचिकि,

हो – बरांग चिति,

कुडुख – तोलोंग सिकि

कुरमाली – कुरमाली चिस्

Khortha – खोरठा भासा की उत्पति :-

खोरठा भासा की उत्पत्ति के दो मत है –

1. प्रकृति-प्राकृति मत / सिद्धांत “डॉ. ए. के. झा और कृष्ण चंद्र दास “आला” इस मत-सिद्धांत के समर्थक है।

2. प्राकृत अपभ्रंश मत / सिद्धांत (इसे सदान मत भी कह सकते है।)

डॉ. ए. के. झा के अनुसार – जैसे प्रकृति घटना अपनी ध्वनी उत्पन करती है वैसे ही खोरठा के शब्द भी बनती है ।

जैसे –

• ठप ठप – बड़ी बड़ी बारीस की बँदे आवास बनाती है ।

• टूप-टूप

• टिप-टिप

• कट-कट

• खट-खट

• गट-गट

इन ध्वनियों को अनुकरनात्मक, ध्वन्यात्मक, अनुरणात्मक, द्वित्व इसे अंग्रेजी में Onomatopoeia बोलते है ।प्रकृति से जो भासा निकली वो कहलाई प्राकृत’प्राकृत (प्राक् + कृति)

• जो भासा पहले बनी या जो प्रकृति के ध्वनियों के अनुकरण से निकली / बनी वो ‘प्राकृत’ कहलाई ।

• इसके काफी सारे छेत्रीय भेद बन गए।

• लोगो को संस्कार किया गया।

• जिससे संस्कृत भासा का विकास हुआ।

Khortha – खोरठा का आधार प्राकृत (प्राकृति से उत्पन्न है)

भारत की प्राचीन लिपि खरोष्ठी और ब्राह्मणी को मानी जाती है ।

झा जी ने कहा की – खोरठा सबद की उत्पती खरोष्ठी-खरोष्ठा-खरोठी-खरोठा-खोरठा हुआ है ।

आला जी ने कहा की – खोरठा सबद की उत्पति खरोष्ठी से नहीं हुई है बल्कि “खरठी” से हुई है। खरठी-खरठा

संस्कृत से अपभ्रंश भासा का जन्म हुआ है। सभी भासा का जन्म अपभ्रंश से हुई है। जैसे- मागही अपभ्रंश

• इसके 3 भेद है-

पश्चिमी – भोजपुरी

मध्य – मगही, मैथिली,

पूर्वी – बंगला, आसमिया, उड़ीया

Khortha – खोरठा के छेत्रीय भेद :-

सिखरिया / खास पइलिया – बंगला प्रभाव – बंगाल की सीमा में लेकर पेटवार के मध्य चास,चंदनक्यारी, बोकारो, जैनामोड़

गोलवारी – कुरमाली प्रभाव – पेटरवार से लेकर पूरे गोला प्रखण्ड तक

रामगढ़िया – अल्पांश नागपुरिया प्रभाव – गेला से लेकर पूरा पतरातू प्रखण्ड का क्षेत्र

देसवाली – भोजपुरी और मगही प्रभाव – पतरातू प्रखण्ड की पश्चिमी सीमा से लेकर गढ़वा जिले तक

हजारबगीया / परनदिया – मगही प्रभाव – हजारीबाग तथा चतरा जिला

संथाल परगतिया– मैथिली और अंगिका प्रभाव- संथाल परगना प्रमण्डल के सभी जिले आते है ।

* Introduction of Khortha language *

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