Ecosystem, सम्पूर्ण पृथ्वी अर्थात जल, स्थल तथा वायुमंडल एवं इस पर निवास करने वाले जीव की एक विशेष चक्र या तंत्र में परिचालित होते है तथा प्रकृति / पर्यावरण के सामन्जस्य स्थापित करके न सिर्फ अपने को अस्तित्व में रखते है, बल्कि पर्यावरण को भी संचालित करते हैं। इस तरह रचना और कार्य की दृष्टि से जीव समुदाय और वातावरण एक तंत्र के रूप में कार्य करते है, इसी को Ecosystem / पारिस्थितिक तंत्र कहा जाता हैं।
Ecosystem – पारिस्थितिकी तंत्र
प्रकृति स्वयं एक एक विस्तृत तथा विशाल पारिस्थितिकी तंत्र है जिसे जीव मंडल के नाम से जाना जाता है । संपूर्ण जीव समुदाय तथा पर्यावरण के इस अंतर संबंध को पारिस्थितिक तंत्र कहा जाता है । इसका नामकरण 1935 ईस्वी में जी ट्रांसलेट ने की थी ।
उन्होंने इसे परिभाषित करते हुए कहा कि पारिस्थितिकी तंत्र वह तंत्र है जिसमें पर्यावरण के अजैविक और जैविक कारक अंतर संबंध रखते हैं इस तंत्र में जीव मंडल में चलने वाली सभी प्रक्रियाएं शामिल होती हैं तथा मानव इसके एक घटक के रूप में कभी परिवर्तन के रूप में तो कभी बाधक के रूप में कार्य करता है ।
पीटर हे गेटके अनुसार पारिस्थितिकी तंत्र वह व्यवस्था है जिसमें माधव तथा जीव जंतु अपने पर्यावरण के पोषण श्रृंखला के द्वारा जुड़े रहते हैं ।
पारिस्थितिक एक अनवरत प्रक्रिया है, लेकिन इसके किसी एक घटक में परिवर्तन होता है, तो ऊर्जा का प्रवाह जाती है, और इससे पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन पैदा दो जाता है, जो जीव के अस्तित्व के लिए संकट का कारण बन जाता है ।
Ecosystem – पारिस्थितिकी तंत्र के घटक
किसी भी पारितंत्र को मुख्यतः दो घटकों में बताकर देखा जा सकता है जैविक घटक और अजैविक घटक ।
1) जैविक घटक
पादप और जंतुओं को मिलाकर जैविक घटक बनते हैं इसके अंतर्गत –
उत्पादक
ये अपनी भोजन को स्वयं तथा वातावरण के अकार्बनिक पदार्थ से बनाने में सक्ष्म होते हैं ये प्रायः पर्णहरित की स्थिति में सूर्य के प्रकाश जल तथा CO2 के प्रयोग से भोजन बनाते हैं । इस पूरे प्रक्रिया में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है जिससे भोजन तैयार की होता है । पौधे मुख्यतः उत्पादक घटक होते हैं और उत्पादक कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन के अनुपात को संतुलित बनाए रखते हैं और यह स्वपोषी होते हैं ।
उपभोक्ता
उत्पादक द्वारा उत्पादित भोज्य पदार्थको उपभोक्ता ग्रहण करता है इसके अंतर्गत विषम पोषी जीव आते हैं यह जीव पौधे पर आश्रित रहते हैं इन्हें निम्न भागों में बताकर देखा जा सकता है
प्राथमिक उपभोक्ता – ये शाकाहारी होते हैंजो सिर्फ पौधे पर ही आश्रित रहते हैं जैसे गाय बकरी हिरण खरगोश कीड़े मकोड़े आदि ।
द्वितीयक उपभोक्ता – यह वैसे मांसाहारी जीव होते हैं जो प्राथमिक उपभोक्ता को अपना भोजन बनाते हैं जैसे चूहे का बिल्ली द्वारा खाया जाना हिरण को बाग द्वारा खाया जाना आदि
तृतीयक उपभोक्ता – इसमें वह जंतु आते हैं जो द्वितीयक उपभोक्ता को अपना भोजन बनाते हैं अर्थात मांसाहारी को खाने वाले को तृतीयक उपभोक्ता कहा जाता है जैसे बाघ शेर
अपघटक
ये सुक्ष्म जीव, कटक तथा बैक्टीरिया आदि होते हैं जो पौधे तथा जंतुओं के मृत शरीर का विघटन करके वह कार्बनिक तत्वों को वातावरण में छोड़ देते हैं इसे ही अब घटक कहा जाता है और इसी के द्वारा चक्रीय चक्रीकरण की प्रक्रिया चलती है ।
2) अजैविक घटक
प्रकाश
पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रकाश के कारण ही करते हैं पौधे अपना भजन प्रकाश संश्लेषण विधि कैसे बनाते हैं और जंतु भी भोजन के लिए पौधे पर निर्भर है और पौधे की गति बीच का अंकुरण श्वसन वाष्पोत्सर्जन आदि सभी प्रकाश के कारण ही होते हैं
तपमान
तापमान का प्रभाव जीवों की रचना उसके क्रियाकलापऔर प्रजनन क्रिया पर पड़ता है तापमान बढ़ने पर पौधे की दैनिक क्रिया में भी परिवर्तन होता है जैविक क्रिया के लिए औसतन 10 डिग्री सेल्सियस से 45 डिग्री सेल्सियस तक तापमान आवश्यक होता है और तप के कारण ही पौधों में वाष्पोत्सर्जन की क्रिया होती है
आद्रता
वायुमंडल में जलवाष्प होने के कारणवायु दम रहती है आद्रता का संबंध भी वाष्पोत्सर्जन क्रिया से है यदि आद्रता कम रहती है तो वाष्पोत्सर्जन की क्रिया कम होती है इस प्रकार आद्रता भी पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है ।
वायु
इसका प्रभाव भूमि के अपरदन और पौधे के अंकुरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।
मिट्टी
मिट्टी भी अजैविक कारक तत्व है जो पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है ।
भू आकृति
इसके अंतर्गत स्थल की ऊंचाई भूमि का ढलान और वनस्पतियों के अध्ययन में भू आकृति का प्रभाव पड़ता है धरातलीय स्थिति और ऊंचाई के कारण भी पौधे प्रभावित होते हैं ।
Ecosystem – पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार
प्रकृति में विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र कार्य परत है यह तंत्र जलवायु मिट्टी वनस्पति जल और स्थल के साथ-साथ विभिन्नताएं बनाए रखते हैं इसके अलावे मावन ने पर्यावरण का उपयोग करके नवीन पारिस्थितिक तंत्र का विकास किया है इस तरह से पारिस्थितिक तंत्र के महिलाओं की कोई सीमा नहीं है अर्थात संपूर्ण पृथ्वी स्थिति के तंत्र है जिसे जीव मंडल के नाम से जाना जाता है स्थिति के तंत्र को कई प्रकार में बताकर देखा जा सकता है –
शुद्ध जलीय पारिस्थितिकी तंत्र
इसके अंतर्गत बहता हुआ पानी जैसे नदी झरना झील तालाब आदि आते हैं इसमें जल में इसकी संरचना और इसके अनुरूप उत्पादकता एवं जीवन का उद्भव होता है और वह सभी एक दूसरे से भोजन प्राप्त करके अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं अंत में अब घटित हो जाते हैं इसे ही शुद्ध चलिए पारिस्थितिकी तंत्र कहा जाता है /
सागरीय परिस्थिति तंत्र
पृथ्वी तल का करीब 70% भाग महासागरीय है एवं हर महासागर का एक बड़ा प्रसिद्ध की तंत्र होता है संगरिया जल का रासायनिक तत्व भिन्न होता है उसमें तापमान और ऑक्सीजन आदि की प्रक्रिया चलती है गहरे सागर में या उतरे सागर में इस प्रक्रिया की स्थिति पाई जाती है उसमें स्थित विभिन्न प्रकार के जीव और वनस्पति अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं और अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं इस प्रकार से सागरीय प्रसिद्ध की तंत्र भी पर्यावरण के लिए अनुकूल कार्य करती है
घास के मैदान का पारिस्थितिकी तंत्र
इसे स्थलिये पारिस्थितिकी तंत्र भी कहा जाता है पृथ्वी पर करीब 19% घास के क्षेत्र पाए जाते हैं जिसमें उष्णकटिबंधीय घास का मैदान और शीतोष्ण कटेगा घास का मैदान पाया जाता है इसमें सवाना घास का मैदान में प्रसिद्ध की तंत्र सबसे महत्वपूर्ण है ।
इसमें वायु और मिट्टी की उपस्थिति में विभिन्न प्रकार के घास के मैदान और पौधों का विकास होता है इन्हीं स्थितियों में प्राथमिक उपभोक्ता में घास खाने वाले जीव घास की पत्तियों को खाने वाले विभिन्न प्रकार के कीड़े मौका नहीं पाए जाते हैं ।
द्वितीय उपभोक्ता में मांसाहारी जीव आते हैं और अपघट्य के रूप में मृत जीव जंतु और उसके द्वारा उत्सर्जित पदार्थों से कई प्रकार के जीवाणुओं का जन्म होता है जो अंत में मिट्टी में मिल जाते हैं इस प्रकार से घास के मैदान में परिस्थिति तंत्र की क्रिया चलती रहती है ।
मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र
पृथ्वी तल के करीब 17% भाग पर मरुस्थलीय वन पाए जाते हैं कम वर्षा और उच्च तापमान के कारण यह एक विशिष्ट क्षेत्र होता है जल की कमी के कारण यहां के वनस्पति भी विशिष्ट होते हैं । मरुस्थलीय क्षेत्र में प्रकृति वनस्पति में मुख्य रूप से कटीली झाड़ियां छोटे-छोटे घास के मैदान पाए जाते हैं और वैसे क्षेत्र में रेंगने वाले जीव ऊंट भेड़ बकरी की प्रधानता होती है ।
यह जीव जंतु पौधे और उच्च तापमान में एवं कम वर्षा में प्रसिद्ध के तंत्र का निर्माण करते हैं और वैसे ही स्थिति में अपना पोषण करते हैं इस प्रकार से मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होता है और मरुस्थलीय भागों में पर्यावरण संतुलन को बनाए रखा जाता है ।
वन्य पारिस्थितिकी तंत्र
पृथ्वी के विस्तृत क्षेत्र में वनों का विस्तार पाया जाता है एक तरफ सदाबहार वन तो दूसरी तरफ गणपति वन और पहाड़ी क्षेत्रों में कौन धारी वन पाए जाते हैं वन और प्रकृति वनस्पति, जहां एक तरफ पर्यावरण पारिस्थितिकी के विभिन्न तत्वों जैसे तापमान वर्षा आद्रता को नियंत्रित करती है । वहीं इसका अपना प्राकृतिक तंत्र होता है और इसी पारिस्थितिकी तंत्र के बदौलत पर्यावरण संतुलन बना रहता है ।
Ecosystem – पारिस्थितिकी तंत्र के कार्य
पारिस्थितिकी तंत्र हमेशा क्रियाशील रहती है इसलिए उसे कार्यात्मक स्वरूप की संज्ञा दी गई है इसका क्रियात्मक स्वरूप के अंतर्गत ऊर्जा का प्रवाह जैविक तथा पर्यावरण स्थिति को शामिल किया गया है जो सामूहिक रूप से स्थिति के तंत्र को परिचालित करता है और संपूर्ण प्रक्रिया का एक चक्र के रूप में कार्य करती है इस पूरे प्रक्रिया को दो भागों में बनकर देखा जा सकता है –
ऊर्जा का प्रवाह – Ecosystem
पारिस्थितिकी तंत्र का नियंत्रक है ऊर्जा का प्रवाह । हर जीव को विभिन्न क्रियाओं को संपादित करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है और वह ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती है उसे सौर्यताप भी कहा जाता है । सौर्यताप जब संपूर्ण पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाती है इसका अवशोषण विकिरण और प्रवर्तन आदि से हो जाता है ।
वायुमंडल की कई गैस धूलकण जलवाष्प आदि सॉरी ऊर्जा को अवशोषित कर लेती हैं कुछ और ऊर्जा प्राप्त किरण के द्वारा फ़ैल जाती है और कुछ बादलों तक अन्य गैसों में परिवर्तन हो जाती है इस तरह से सौर्य ऊर्जा का एक छोटा सा भाग वायुमंडल में सीधे प्राप्त होता है इस तरह वायुमंडल में जितनी ऊष्मा आती है उतनी ही उन्हें लौट जाती है इस तरह से ऊर्जा का प्रवाह का चक्र चलते रहता है ।
अगर किसी कारण से ऊर्जा चक्र में बाधा पहुंचती है या ऊर्जा का प्रभाव कम होने लगता है तो पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है इस प्रकार से स्थिति की संतुलन को बनाए रखने में ऊर्जा प्रवाह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता – Ecosystem
पारिस्थितिकी तंत्र को कार्यात्मक स्वरूप देने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता यानी पोषण स्तर में स्वपोषी पर दो के द्वारा ऊर्जा उपयोग में पोषण प्राप्त करता है यह परिवर्तन ऊर्जा प्रकाश संश्लेषण क्रिया से एक एवं रासायनिक क्रिया से संचित करके उत्पादकता के रूप में उपयोग में लाया जाता है और इसी से ही पारिस्थितिकी तंत्र कार्य करता है कि उत्पादकता को चार भागों में बनकर देखा जा सकता है –
1) सकल प्राथमिक उत्पादकता
इसका तात्पर्य है कि पोषण स्तर में स्वपोषी पौधे के द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से प्राथमिक उत्पादकता तैयार किया जाता है ।
2) वास्तविक प्राथमिक उत्पादकता
इसका तात्पर्य है कि पोषण स्तर में कितना जैविक पदार्थ की मात्रा संचित होता है ।
3) सामूहिक उत्पादकता
इसमें जेनेरिक पदार्थ का उपयोग जो संचित होता है उसे सामूहिक रूप से किया जाता है ।
4) गौण उत्पादकता
इसके अंतर्गत संचित ऊर्जा का उपयोग किया जाता है ।
इस प्रकार से प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा चार स्तर पर पोषण स्तर कार्य करता है और यह पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से पूरा होता है
– Ecosystem –