Traditional Art of Jharkhand – पारम्परिक कला

Traditional Art of Jharkhand, झारखण्ड राज्य में जनजातियों और गैर-जनजातियों लोगों में चित्रकला के प्रति अधिक झुकाव दिखलाई पड़‌ता हैं। यहां चित्रकला और शिल्पकला समाजिक मान्यताओं रीति रिवाजों और संस्कृतिक को प्रतिविम्बीत करता है। झारखंड में भी विभिन्न प्रकार के चित्रकला की शैलियां पाई जाती है’।

संथाल भिति चित्र (दीवार) में मुख्य रूप से सफेद, नीला, लाल और काले रंग का उपयोग किया जाता है । इस शैली में पक्षियों का चित्र अधिक बनाया बनाया जाता है। इसमें भी मोर का चित्र सबसे अधिक बनाया जाता है।

छोटानागपुर शैली में हरा, सफेद और पीले रंग का उपयोग अधिक किया जाता है । इसमें भी पशु-पक्षियों के चित्र और दीवारों पर Border का चित्र बनाया जाता हैं।

Traditional Art of Jharkhand - पारम्परिक कला

चित्रकला की शैलियाँ – Traditional Art of Jharkhand

झारखण्ड में निम्न चित्रकला की शैलियाँ है –

जादो पहिया चित्रकला

यह मुख्य रूप से संथाल जनजातियों में प्रज्वलित है। इस फित्र की स्थना करने वाले को संचाली भाषा में आदी कहा जाता है। इसमें मुख्य रूप से कागज और कपड़े का उपयोग किया जाता है।

यह चित्रकला दुमका जिले में सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। इसमें रामायण, महाभारत, पर्व-त्योहार आदि में के चित्र बनाये जाते है और इससे जुड़े प्रमुख चित्रकार है- ललित मोहन राय और हरेत ठाकुर ।

सोहराई चित्रकला

झारखण्ड में सोहराई पर्व के अवसर पर इसे बनाया जाता हैं। वर्षा ऋतु के बाद ग्रामिण क्षेत्र में महिलाएं घर की लिपाई-पुताई कर के दीवारों पर भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं का चित्र बनाती है। इसमें प्रजापति के चित्र पशुपति के चित्र और फूल-पत्तियां भी बनाई जाती है। सोहराई कला एक मातृसत्तात्मक परंपरा है जो माँ से बेटीको सौंपी जाती है।

इस चित्रकला में लाल सफेद और काले रंग का उपयोग किया यह चित्रकला हजारीबाग जिले में सर्वाधिक लोकप्रिय है और इससे जुड़े हुए चित्रकार शरद चंद्र रायन है। May 2020 – GI tag

कोहबर चित्रकला

यह चित्रकला विन्दौर जनजातियों में सर्वाधिक प्रचलित है। अधिकाशत: विवाहित महिलाएं आने पति के पार में एकर कोहबर चित्रकला करती है। उन यह चित्रकला’ ‘दांपत्य जीवत’ से जुड़ा हुआ है।

इसके अलावे फूल-पत्तियों और पशु-पक्षियों का भी चित्र बनाया जाता है। इसी चित्रकला में सिकी देवी का चित्र बनाया जाता है। यह भी मुख्य रूप से हजारीबाग जिले में लोक प्रचलित है।

पइत्कर चित्रकला

यह आसखण्ड में प्रचीन काल से ही बनाया जाता है। यह मुख्य रूप से सिंहभूम जिले के अमादुरी गाँव में अत्यंत प्रसिद्ध है।

इसमें लोक जीवन से जुड़े हुए विभिन्न प्रकार की घटनाओं का चित्र बनाया जाता है।

डोकरा चित्रकला

यह मलहार समुदाय के द्वारा किया जाने वाला कला है, जो मुख्य रूप से दुमका जिले में लोक प्रचलित है। इसमें पीतल और कांसे को गलाकर विभिन्न प्रकार की मूर्तियां सामूहिक नृत्य करते हुए स्त्री पुरुष की मूर्तियां, कछुआ, बारहसिंदा, हिरण आदि बनाया जाता है।

Traditional Art of Jharkhand – आदिवासी शिल्प

झारखंड के आदिवासी शिल्प में पेटकर चित्रकला, बांस शिल्प, खिलौना बनाना, पत्थर नक्काशी, मिट्टी के बर्तन, आभूषण, धातु कर्म आदि आते है।

पेटकर चित्रकला –

इसे स्क्रॉल पेंटिंग भी कहा जाता है, जिसमें मृत्यु के बाद के जीवन को दर्शाया जाता है ।

बांस शिल्प –

इसमें बांस के प्रयोग से झारखंड के आदिवासी टोकरी, सूप आदि उपकरण जैसी विभिन्न कलाकृतियों का उत्पादन करते हैं।

खिलौना बनाना

काष्ठ शिल्प – झारखंड के आदिवासी लोग घरेलू उपयोग के विभिन्न वस्तुओं को खूबसूरती से डिजाइन करते थे।

पत्थर नक्काशी

इसमें आदिवासी लोग पत्थरों में नक्काशी कर अनके प्रणार के मूर्तियों का निर्माण करते है।

मिट्टी के बर्तन

जन जीवन की आवश्यकता को पूरा करने वाली लगभग सभी प्रकार की बर्तन का उत्पादन किया जाता है ।

आभूषण

आदिवासी सोने, चांदी , तांबा, कांसे आदि का प्रयोग कर आभूषण बनाते हैं। इन आभूषणों की खास विशेषता यह है, कि इसमें आदिवासियों की पारंपरिक संस्कृति झलकती है।

धातु कर्म

मल्हार और टेंट्री जनजाति के लोग इस प्रकार के घरेलू सामान बनाते हैं।

Traditional Art of Jharkhand

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