Folk instruments of Jharkhand, झारखण्ड में कई प्रकार के सास्कृतिक पर्व और त्योहार मनाये जाते हैं। उन त्योहारों के अवसर पर अलग-अलग वाघय यंत्र बजाये जाते हैं।
झारखंड में सर्वाधिक प्राचीन और सर्वाधिक लोकप्रिय वाद्य यंत्र मांदर है। इसके बाद दूसरा स्थान बासुरी का आता है, जो प्राकृति से जुड़ा हुआ वाघय यंत्र हैं।
झारखण्ड मैं इसके अलावे सांरगी एकतारा और तंतु वाघय यंत्र बजाये जाते हैं।
झारखण्ड में वाध्य यंत्र में सिंघा, ढोल, नगाड़ा, झाल, करताल आदि बजाये जाते हैं ।
संथाल जनजातियो का सबसे प्रमुख वाघय यंत्र केंदरी और भूआंग है। इसमें केंदरी को झारखण्डी वायलिंग कहा जाता है।
छौ नृत्य में धमला की अवाज से युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होती है, और भैंसे के सिंघ से सिघतार बजाया जाता है।
झारखंड के वाद्ययंत्रों के प्रकार – Folk instruments of Jharkhand
झारखंड के वाद्ययंत्र
झारखंड में मुख्यतः तीन प्रकार के वाद्य यंत्र पाए जाते है
1) तंतु वाद्ययंत्र
इसके अंतर्गत एकतारा , केंदरी, भुआंग, टुईला , बनम आते हैं ।
2) सुषिर वाद्ययंत्र
इसके अंतर्गत बांसुरी , शहनाई , सिंगा , मदनभेरी , मुरली आते हैं ।
3) ताल वाद्ययंत्र
इसके अंतर्गत घन वाद्ययंत्र और अवनद वाद्ययंत्र आते है जो इस प्रकार है
। ) घन वाद्ययंत्र – करताल , झांझ , काठी , थाला
2) अवनद वाद्ययंत्र – मांदर, ढोल , धमसा, ढांक, नगाड़ा
उनकी रचना के आधार वाद्ययंत्र
वाद्ययंत्रों को उनकी रचना के आधार पर 4 श्रेणियों है –
प्रथम श्रेणी –
किसी तार को रगड़ने या चुभाने से ध्वनि उत्पन्न प्रथम श्रेणी के माने जाते हैं । एकतारा , केंद्र, तुइला आदि प्रथन श्रेणी के उदाहरण है।
दूसरी श्रेणी-
मुंह से बजाए जाने वाले वाद्ययंत्र इस श्रेणी मै आते हैं । बांसुरी, शहनाई आदि इस श्रेणी मै आते हैं ।
तीसरी श्रेणी-
तीसरी श्रेणी के वाद्ययंत्र को चमड़े से बनाया जाता है । जैसे नगाड़ा, मंदार, ढोल आदि ।
चतुर्थ श्रेणी –
इसे धातु का उपयोग कर बताया जाता है। जैसे झाल, करतल, मजीरा, घुंगरू आदि
वे वाद्य हैं, लेकिन उनकी भूमिका वाद्य यंत्रों जैसी नहीं है। इस श्रेणी में , यल, बेल, सिकोई, आदि को अक्सर बजाया जाता है।