Jharkhand ke Vibhuti
Jharkhand ke Vibhuti – झारखंड विभूतियों में कुछ प्रमुख है दिवा सोरेन किसुन सोरेन , बिरसा मुंडा , रानी सर्वेश्वरी , गया मुंडा , भूषण सिंह , सिनगी दई और काइली दई , अल्बर्ट एक्का , फादर हॉफमैन (1857-1928) , श सखाराम गणेश देउस्कर , राधा कृष्ण , पंडित रघुनाथ मुर्मू , पीतांबर सोरेन …
बुध्धो भगत
बुध्धो भगत का जन्म एक उरांव परिवार में 18 फरवरी 1792 50 को रांची बिले के सिकना गाँव में हुआ था। इन्दोंने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1831-32 ई0 में कोल विद्रोह चलाया था।
इन्होंने ब्रिटिश अधिकारीयों, प्रिटिश संस्थाओं आदि के थिलाफ हिंसात्मक तिरो चलाया था। ब्रिटिश सरकार ने इन्हें पकड़ने के लिए 1000 का इनाम भी रखा था।
ब्रिटिश सरकार के द्वारा सैनिक कारवाई की गई थी, जिसमें बुझ्यो भगत शहीद हो गये थे।
दिवा सोरेन किसुन सोरेन – Jharkhand ke Vibhuti
दिवा सोरेन का जन्म 1820 ई. में सिंहभूम जिले के राजनगर थाने के गुमिदपुर अंतर्गत मटकोम बेड़ा गाँव में हुआ था।
पिता का नाम – देवी सोरेन था।
गुरु का नाम – रघुनाथ भुइयां
भाई – किसुन सोरेन और दिवा सोरेन ममेरे भाई
पोरहाट के राजा अभिराम सिंह ने अंग्रेजों की अधिनता स्वीकार करने के बाद, आदिवासियों और सदानों का अत्याचार और शोषण हुआ ।
परिणाम स्वरूप दिवा-किसुन ने डांडो में कई सार्वजनिक बैठक कर अभिराम सिंह और ब्रिटिश प्रशासन के विरुद्ध खड़े होने के लिए प्रेरित किया।
1872 ई. में दिवा-किसुन के नेतृत्व में विद्रोह प्रारंभ हुआ। इस विद्रोह में सभी धर्मों के लोगों ने भाग लिया । स्थानीय लोगों के द्वारा धोखा देने के कारण दिवा-किसुन को ब्रिटिश प्रशासन और राजा अभिराम सिंह के द्वारा गिरफ्तार कर सरायकेला जेल में फांसी दे दी गई।
बिरसा मुंडा – Jharkhand ke Vibhuti
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर1875 ई को हुआ थाउनके पिता का नामसुगना मुंडाऔर गुरु आनंद पंडित थेबिरसा मुंडा की शिक्षा दीक्षामिशनरी स्कूलों में हुआ थाऔर अपनी छात्र जीवन से ही वे चाईबासा की भूमि आंदोलन से जुड़े गए थे ।
1895 ई को इन्होंने स्वयं को सिंहबोंगा का दूत घोषित किया और एक पंथ की शुरुआत की जिसे हम बिरसाइट पंथ कहा गया । बिरसा मुंडा, मुंडा समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए और सामाजिक सुधार के लिए आंदोलन प्रारंभ किए थे । 1885 से 1900 ई के बीच इन्होंने मुण्डा विद्रोह चलाया ।
ब्रिटिश सरकार ने 3 फरवरी 1900 ई को बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें रांची जेल में बंद कर दिया जहां 9 जून 1980 को उनकी मृत्यु हो गई ।
रानी सर्वेश्वरी
संथाल परगना के महेशपुर की रानी सर्वेश्वरी 1781 – 82 में पहाड़िया सरदारों के सहयोग से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। यह विद्रोह ब्रिटिश सरकार के भूमि व्यवस्था और भूमि निलाम कर देने के कारण हुआ था।
रानी को गिरफ्तार करके भागलपुर जेल भेज दिया गया, जहाँ 6 मई 1807 ई. को फाँसी दे दी गई।
राजा अर्जुन सिंह
1857 ई के विद्रोह के समय ये पोरहाट के राजा थे। इन्होंने राज् काज को छोड़कर 1857 के विद्रोह में शामिल हो गये थे और विद्रोहियो को अपने यहां शरण भी दिया , जिसका ब्रिटिश कैप्टन बर्श ने विरोध किया था।
अंत में, अर्जुन सिंह को पकड़वाने के लिए 1000 रू. का ईनाम भी रखा गया परंतु इन्होंने स्वंय कमिश्नर डाल्टन के सामने आत्मसमर्पण कर दिया । इन्हें बनारस के जेल में रखा गया, जहाँ 1870 में उनकी मृत्यु हो गई ।
गया मुंडा
गया मुंडा का जन्म खूंटी जिले के मुरहू ब्लॉक के एटकेडीह गांव में हुआ था। 1850 – 1870 में सरदारी आंदोलन के समय इन्होंने इस आंदोलन का नेतृत्व किया ।
बिरसा मुंडा के नेतृत्व में अबुआ दिशुम अपना देश आंदोलन प्रारंभ हुआ, तो गया मुंडा बिरसा मुंडा के सेनापति बने ।
6 जनवरी 1900 को एटकेडीह से गिरफ्तार कर रांची जेल में भेज दिया गया जहाँ उसे फांसी दे दी गई ।
भूषण सिंह
भूषण सिंह चेरो जनजाति के सेनानी थे । 1800 ई में चूड़ामन राय पलामू के राजा थे जो अंग्रेज समर्थक थे । इस कारण वहां के लोगों ने राजा के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया । जिसके नेतृत्व कर्ता भूषण सिंह ही थे ।
उन्होंने दो वर्षों तक संघर्ष किया। अंत में 1802 में, भूषण सिंह पकड़े गए और अंग्रेजों ने उन्हें फांसी दे दी।
सिनगी दई और काइली दई – Jharkhand ke Vibhuti
400 वर्ष पहले मुगलों के खिलाफ उराँव समुदाय की सिनगी दई और काइली दई ने विद्रोह किया । आग्नेय भाषा में, ‘दाई’ को बहन बोला जाता है।
मुगलों ने रोहतासगढ़ किले पर आक्रमण किया , तब इन दोनो ने बड़ी वीरता से इनका सामना किया था। इसी युद्ध की याद में प्रत्येक 12 वर्षों में ‘जनी शिकार’ मनाया जाता है।
अल्बर्ट एक्का
अल्बर्ट एक्का का जन्म 27 दिसंबर 1942 को गुमला जिले के जरी गाँव में एक आदिवासी ईसाई परिवार में हुआ था।
भारतीय थल सेना के ब्रिगेड ऑफ़ द गाईस में शामिल होकर झारखंड का नाम रौशन किया और 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में वीरता से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए।
भारत सरकार ने मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया। इस सम्मान को प्राप्त करने वाले यह झारखंड के एक मात्र सैनिक हुए।
फादर हॉफमैन (1857-1928)
• फादर हॉफमैन जर्मनी के पादरी थे। उन्होंने झारखंड को अपनी कर्म भूमि चुना ।
• उन्होंने जनजातियों के लिए ‘को-ऑपरेटिव लैंडिंग सोसाइटी’ प्रारंभ की। उन्होंने मुण्डारी साहित्य के उत्थान के लिए ‘मुंडा ग्रामर’ और ‘एनसाइक्लोपीडिया मुंडारिका’ (16 Part) लिखा । इसे मुण्डारी एवं भाषा का विश्व कोष माना जाता है।
सखाराम गणेश देउस्कर
ये मराठा परिवार से आते थे । वे एक प्रतिभाशाली और देश भकत थे। वे अपने क्रांतिकारी लेखन और पत्रकारिता के कारण प्रसिद्ध हुए। उन्होंने बंगाल दैनिक हितवाद’ पत्र का संपादन किया।
इन्होंने कई पुस्तको की रचना की जैसे देशेर कथा ( बंगला भाषा), तिलकर मुकदमा, एटा कौन जुग आदि उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें थीं । 1913 में देवघर के पास करों गाँव मृत्यु हुई।
राधा कृष्ण
राधा कृष्ण झारखंड के प्रसिद्ध लेखक थे। उन्होंने घोष बोस- बनर्जी चटर्जी के उपनाम के तहत हिंदी हास्य-व्यंग्य लिखा। 1947 से 1970 तक ‘आदिवासी पत्रिका का संपादन किया ।
पंडित रघुनाथ मुर्मू
पंडित रघुनाथ मुर्मू ने 1941 में संथाली लिपि ओलचिकी की खोज की। इन्होंने संथाली भाषा के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये । इन्होंने संथाली भाषा का पहला नाटक विटू चानान लिखा ।
सिद्धू – कान्हू – Jharkhand ke Vibhuti
अंग्रेज शासको श्रमीनदारों, साहूकारों के विरुध 1885-56 ई० में सिद्धू – कान्हू ने संचाल विद्रोह किया था। इसके अलावे चांद और भैरव ने इनका साथ दिया था।
सिद्धू का जन्म 1815 ई० में और कान्हू का जन्म 1820 ई0 में हुआ था। इन दोनों भाईयों ने मिलकर संथाल परगना के भगनीडीह गांव से संथाल विद्रोह की शुरुआत की थी। इस दौरान सिद्धू और कान्हू ने लोगों को करो या मरो का नारा भी दिया था। इसके अलावे इन्होंने अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो का भी नारा दिया था ।
इस आंदोलन के दौरान करीब 15000 संथाल मारे गये थे । अंत में सिद्ध और कान्दू की गिरफ्तारी दुई और उन्हें 26 जुलाई 185650 को फांसी की सजा दे दी गई, जबकि चांद और भैख को गोली लगने से मृत्यु हुई थी।
तिलका माँझी – Jharkhand ke Vibhuti
तिलका मांझी का जन्म संथाल परगना के तिलकपुर गाँव में हुआ था । इन्होंने भी अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह खड़ा किया था। ये प्रथम आदिवासी थे, जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने की हिम्मत की थी, इसलिए इन्हें आदि विद्रोही भी कहा जाता है । इस विद्रोह के दौरान संदेश को भेजने के लिए सखुआ के पत्ते का उपयोग किया जाता था, इसलिए इसे विद्रोह का प्रतिक चिन्छ सखुआ का पत्ता था।
13 जनवरी 1784 ई० को एक अंग्रेज अधिकारी किलवलैंड की इन्होंने हत्या कर दी थी। जिसके कारण अंग्रेजी सेना ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया और 1785 ई में भागलपुर में बरगद के पेड़ से लटकाकर इन्हें फांसी की सजा दे दि गई।
जतरा भगत
जतरा भगत का जन्म २ अक्टूबर 188850 को गुलाम जिले के चिंगारी गांव में हुआ । ये उरांव परिवार से आते थे। इन्होंने उरांव जनजातियों में सुधार लाने के लिए समाजिक सुधार आंदोलन चलाया था ।
इन्होंने उरांव लोगों से अपील की कि वे मदीरा पान ल करे मांस न खाये , जीव हत्या न करें, आदि उपदेश दिया था। इन्होंने सभी लोगों से कहा था, कि अंग्रेजों के आदेश का पालन न करें और ईलाई मिशरी जमीनदारों, सूदखोरो का विरुद्ध करें ।
जतरा भगत ने 1714 ई० में बना भगत आंदोचन चलाया था. जी राष्ट्रीय आंदोलन से प्रभावित था। इस आंदोलन के नेता गांधीवादी विचारों को मानती थी और इसी दोगन के परिणामस्वरूप ताना भगत रौत कृर्षि भूमि कानून परित हुआ था। जिससे ताना भगतों को अपनी परंपरागत भूमि पर अधिकार मिल गया था।