Formation of Jharkhand, झारखण्ड राज्य ब्रिटिश शासन काल से ही अंग्रेजों के शोषण कारी नीतियों के खिलाफ आंदोलन होते रहा है, और इसी पृष्ठभूमि में झारखण्ड के लोगों के द्वारा अलग राज्य की मांग की जाती रही है। ब्रिटिश शासन काल में झारखण्ड, बंगाल फिर बाद में बिहार प्रांत का अंग बना रहा । आधुनिक काल में भी झारखण्ड का मांग होते रहा है और 15 नवंबर 2000 को एक अलग राज्य की उनकी मांग पूरी हुई। मांग की दिशा में समूह के विभिन्न प्रयास इस प्रकार थे ।
Formation of Jharkhand – गठन
झारखण्ड राज्य का आंदोलन का बीजारोपन ढाका में किया गया था। ढाका का के विद्यार्थी परिषद की एक शाखा रांची में भी थी। यही शाखा आगे चलकर झारखण पार्टी बन गई थी। जे० बारथोलोमन रांची में इस संगठन के संस्थापक थे। अंतः इन्हें ही झारखण्ड आंदोलन का जन्मदाता माना जाता है ।
1915 ई. में जुएल लकड़ा और बंदी उरांव के नेतृत्व में छोटानागपुर उन्नति समाज की स्थापना की गई थी । संभवत: आरखण्ड का यह प्रथम आदिवाली संगठन था, जो झारखण्ड आंदोलन से जुड़ा हुआ था।
आधुनिक रूप में झारखण्ड का प्रारंभ 1935 ई० में जयपाल सिंह के नेतृत्व में आदिवासी महासभा के गठन के से शुरू होता है।
1939 ई० में जयपाल सिंह को इसका अध्यक्ष बनाया बाया । 1950ई0 में जमशेदपुर के अधिवेशन में जयपाल सिंह के द्वारा आदिवासी महासभा का नाम बदलकर झारखंड पार्टी कर दिया गया जिसका चुनाव चिन्ह मुर्गा था ।
यही पार्टी पुरे दक्षिण बिहार में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। 1952 ई० में एकीकृत बिहार विधान सभा के चुनाव में झारखण्ड पार्टी ने 33 सीट प्राप्त की । जिसके कारण इन पार्टी को बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल बनाया गया था ।
आगे चलकर बिहार के मुख्यमंत्री विनोद नंदन झा के विचार विमर्श के पश्चात झारखण्ड पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया गया, और जयपाल सिंह मुण्डा को मंत्रिमंडल का सदस्य बना दिया गया लेकिन कांग्रेस में रहते हुए भी झारखण्ड राज्य की मांग Formation of Jharkhand जारी रखा ।
1968 ई० में झारखण्ड आंदोलन का बगडोर बिरसा सेवा दल के हाथ में आया, तो उसने आदिवासियों के खिलाफ होने वाले शोषण का विरोध किया। फिर आगे चलकर यह आंदोलन स्थिीत पड़ गया।
4 फरवरी 1973 ई० को बिनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन के नेतृत्व में धनबाद में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का गठन किया गया था और इस पार्टी ने भी बृहद्ध झारखण्ड राज्य की मांग की थी। इस पार्टी में बिनोद विहारी महतो को अध्यक्ष और शिबू सोरेन को सचित बनाया गया ।
22 जून 1986 ई० को सूर्य सिंह बेसरा के नेतृत्व में All Jharkhand Student Association आजसू की स्थापना की गई थी । इस संगठन ने भी झारखण्ड राज्य का समर्थन किया और बेसरा ने इस आंदोलन में खून के बदले खून का नारा दिया ।
1987 ई० में झारखंड आंदोलन में शामिल विभिन्न दलों को एक जुट करने के लिए झारखण्ड समन्वय समिति का गठन किया गया था, और इस समिति ने तत्कालिन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से मिलकर बृहद झारखंड राज्य Formation of Jharkhand की मांग की थी।
बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और मध्य प्रदेश के जिलों को मिलाकर नए झारखण्ड राज्य की बात कदी गई थी। इन सारी स्थितियों को देखते हुए 1993 ई० में फरवरी में केंद्रिय गृह मंत्रालय ने राम दयाल मुण्डा और शिबु सोरेन को राज्य स्वायत्ता के लिए बात करने के लिए बुलाया गया और इस बात-चीत के बाद अगस्त 1995 ई० को झारखण्ड क्षेत्र स्वायत्ता परिषद (JAC) की गठन की अधिसूचना जारी की गई और 9 अगस्त 1995 80 को औपचारिक रूप से उमट का गठन कर लिया गया ।
JAC का अध्यक्ष शिव सोरेन को बनाया गया और JAC के अंतर्गत झारखण्ड के 18 जिलों को शामिल किया गया, लेकिन इसमें कई विसंगतियाँ थी, जिसके कारण 199850 में JAC को भंग कर दिया गया ।
पृथक राज्य के गठन के लिए 25 अप्रैल २०००ई० को बिहार सरकार द्वारा अलग झारखण्ड राज्य हेतु “बिहार राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000” को स्वीकृति प्रदान की गई ।
2 अगस्त 2000 ई० को लोकसभा और 11 अगस्त 2000 ई० को राज्यसभा द्वारा बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक पारित कर दिया गया।
25 अगस्त 2000 ई० को राष्ट्रपति के० आर० नारायणन ने एक इस विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिये । इस प्रकार नवम्बर 2000 ई० को देश के 28वें राज्य के रूप में झारखण्ड प्रदेश अस्तित्व में आ गया।