Biodiversity, जैव विविधता किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में या बायोम में मिलने वाले जीव-जंतुओं की प्रजातियों की विविधता को कहा जाता है। अर्थात् पृथ्वी पर पाये जाने वाले पादप, जंतुओं, सूक्ष्म जीवों आदि विभिन्न प्रकार के प्रारूप से है। इसमें विभिन्न जातियों के साथ- साथ इनके अनेक प्रकार की उपजातियां भी पायी जाती है और इन जातियों और उप जातियों की अलग-अलग विशेषताऐ होती है। इसे ही सम्मलित रूप से जैव-विविधता कहा जाता हैं ।
Biodiversity – जैव विविधता
संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी पर जल और स्थल दोनों क्षेत्रों में करीब 1.4 करोड़ तक जीव पेड़-पौधे और वन्य जीवों की प्रजातियां पायी जाती है। इस रिपोर्ट के अनुसार इनमें ज्ञात जीवो की प्रजातियां पायी जाती है । इस इनमें ज्ञात जीवों की प्रजातियां करीब रिपोर्ट के अनुसार 17.5 लाख है और- करीब 10 हजार नये जीव-जंतु का अनुमान लगाया है।
विश्व में 2% हिस्सा जंतु विविधता का है और कुल जैविक विविधता 1% से भी कम भारत में है, अर्थात भारत विश्व के प्रमुख जैव – विविधता Biodiversity वाला देश है । अन्य देश जैसे ब्राजिल, इंडोनेशिया, कोलम्बीया, आस्ट्रेलिया आदि देशों में जैव विविधता पायी जाती है । सर्वाधिक जैव-विविधता भू- मध्य रेखिय प्रदेशों में और विषुवत रेखिय सदाबहार वनो में पाये जाते है। भारत में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भारत में बांध है को जैव विविधता के लिहाज से करीब 10 क्षेत्रों में बांटा है
1)विशाल हिमालय का क्षेत्र
2)सिर्फ हिमालय का क्षेत्र
3)रेगिस्तान चित्र
4)पश्चिमी घाट का चित्र
5)अर्ध शुष्क क्षेत्र
6)दक्षिणी पठार का क्षेत्र
7)गंगा का मैदान भाग
8)समुद्र तटीय क्षेत्र
9)उत्तर पूर्वी क्षेत्र
10)विभिन्न द्वीप समूह का क्षेत्र
Biodiversity – ह्रास के कारक
मानव प्राकृतिक संसाधनों के कारण जैव विविधता के संकट और उसके संरक्षण के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय करता है मानव अपनी आवश्यकता के लिए जैविक और प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करते जा रहा है जिससे जैविक पूंजी को नष्ट होती है जैव विविधता वाले क्षेत्र भी नष्ट होते जा रहे हैं ।
औद्योगिक विकास के कारण वनों का विनाश इसके अलावे स्थिति की संतुलन से जैव विविधता नष्ट हो रही हैं विभिन्न प्रकार के जीव जंतु और वनस्पतियां विलुप्त प्रायः होती जा रही हैं एक वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार अब तक भारत में लगभग 1600 से अधिक जानवरों की प्रजातियां 654 में पति की प्रजातियां नष्ट हो चुकी हैं जबकि 3500 प्रजातियां वनस्पति की और 1200 अधिक जानवरों की प्रजातियां संकटग्रस्त स्थिति में है और इसका मुख्य जिम्मेदार मानव है
जैव विविधता का दूसरा प्रमुख कारण बाहरी प्रजातियों के विस्तार के कारण मूल प्रजातियां नष्ट हो रही हैं बाहर के विभिन्न प्रजातियां भारत में तेजी से फैल रही हैं जैसे 1960 ईस्वी में जब हम गेहूं की प्रजाति संयुक्त राज्य अमेरिका से प्राप्त किए थे तो उसके साथ एक जंगली घास पारथेनियम घास की प्रजाति भारत आ गया था और इसका विस्तार संपूर्ण देश में हो गया यह एक जहरीले घास थी जिसके कारण भारत में घास की प्रजातियां नष्ट हो गई ।
इसी प्रकार अमेरिका के रेगिस्तान का पिमार कैक्टस बड़े क्षेत्र में फेल कर मरुस्थलीय क्षेत्र में पाई जाने वाली सभी प्रजातियों को नष्ट कर दिया इस प्रकार बाहरी प्रजातियां भी भारत में जैव विविधता के शंकर के कारण बने हैं ।
Biodiversity का तीसरा कारण औद्योगिक विकास सड़क निर्माण कृषि के क्षेत्र में कृत्रिम उपकरणों का उपयोग घास के मैदान की जुताई वनों की कटाई आदि के कारण भी जैव विविधता में ह्रास हुआ है ।
प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी जैव विविधता के अस्तित्व का संकट मंद रानी लगा है बाढ़ भूकंप ज्वालामुखी नदी के कारण वनस्पतियों की कई प्रजातियां नष्ट होती जा रही हैं या विलुप्त होने के कगार पर है प्राकृतिक आपदाओं के कारण विभिन्न प्रकार के प्रजाति के पौधे और जीवन का आवास भी नष्ट हो रहा है ।
Biodiversity – जैव विविधता के संरक्षण
जैव विविधता के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रयास किया जा रहे हैं
1) जैव विविधता के संरक्षण के उपाय के अंतर्गत
a) स्वस्थाने
यह जैव विविधता के संरक्षण का सबसे बेहतरीन तरीका है जिसमें जीवन को उनके प्राकृतिक आवास में अनुकूल परिस्थितियों वह सुरक्षा उपलब्ध करा कर रखा जाता है इसके अंतर्गत विभिन्न तरीकों में से प्रजातियों को संरक्षित रखा जाता है इसी के अंतर्गत आता है राष्ट्रीय उद्यान , अभ्यारण , जीव मंडल रिजर्व इसके अंतर्गत दो क्षेत्र आते हैं –
i) संरक्षित क्षेत्र
इसके तहत राष्ट्रीय पार्क, वन अभ्यारण जैसे जिम कॉर्बेट अभ्यारण, काजीरंगा अभ्यारण,मानस अभ्यारण आदि आते हैं । भारत में लगभग 103 राष्ट्रीय पार्क और करीब 500 से अधिक वन्य अभ्यारण है इसके तहत विभिन्न प्रजातियों को संरक्षित रखा जाता है ।
ii) बायोरिजर्व क्षेत्र
स्वस्थाने तरीके के अंतर्गत बायो रिजर्व क्षेत्र भी आते हैं यह स्थल समुद्र तटीय पर्यावरण के लिए सुरक्षित होते हैं ऐसे क्षेत्रों में विशेष प्रकार की प्रजातियां को संरक्षित रखा जाता है भारत में इस प्रकार के तरीके 1975 ई के आसपास प्रारंभ किए गए थे और वर्तमान समय में भारत में लगभग 19 वायु राइडर क्षेत्र घोषित किए गए हैं ।
b) परस्थाने
Biodiversity के संरक्षण के लिए बाय स्थानीय पर स्थान पर एक अच्छा तरीका है इस विधि में किसी संकटग्रस्त पादप जीव जंतु आदि को कृत्रिम आवास बनाकर संरक्षण प्रदान किया जाता है इसके अंतर्गत बोटैनिकल गार्डन चिड़ियाघर बी बैंक एक्वेरियम आंधी आते हैं इस प्रकार के संरक्षण की विधि में पौधे के परागण परागण को संरक्षित रखा जाता है विभिन्न पौधों के जिन को संरक्षित रखा जाता है और इसके लिए उत्तक संवर्धन केंद्र , DNA बैंक , जीन बैंक आदि स्थापित किए जाते हैं और इसी के माध्यम से विभिन्न प्रजातियों के पौधे और उनके अनुवांशिक पदार्थ को संरक्षित रखा जाता है ।
इस विधि के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के फसलों की प्रजातियां जंगली जीव जंतुओं की प्रजाति यह संरक्षित के संरक्षित की जाती हैं जिन बैंकों में विभिन्न प्रजातियों के पौधे और जीवन के अनुवांशिक पदार्थ को संरक्षित रखा जाता है इसके लिए राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संस्थान नई दिल्ली में स्थापित की गई है और पशुओं के लिए राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संस्थान हरियाणा में स्थापित किया गया है भारत में बाय स्थानीय संरक्षण के तहत आवासीय संरक्षण बनाकर विभिन्न जीवों को संरक्षण प्रदान किया गया है और इसके लिए मगरमच्छ बैंक चिड़ियाघर आदि बनाए गए हैं ।
भारत में जैव विविधता Biodiversity संरक्षण के लिए वन संरक्षण कानून 1928 आया था इसके बाद फिर 1980 ईस्वी में संशोधित कर लागू किया गया 1975 ईस्वी में मगरमच्छ प्रजनन एवं प्रबंधन परियोजना प्रारंभ की गई थी नदियों और झीलों के दुर्लभ प्रजातियों को बचाने के लिए राष्ट्रीय नदी संरक्षण निर्देशालय का गठन किया जाए गया किया गया है ताकि दुर्लभ प्रजातियों को संरक्षित किया जा सके इसके अलावा जैव विविधता अधिनियम 2002 पारित करके और 2003 ईस्वी में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण की स्थापना भी की गई ।
2) रेड डॉटा बुक
विश्व संरक्षण संघ इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर कार्य कर रहा है इसके अलावे IUCN इंटरनेशनल यूनियन कंजर्वेशन नेचर के द्वारा जैव संरक्षण के लिए सूची जारी करती है विश्व संरक्षण संघ ने 100000 विभिन्न प्रजातियों की सूची बनाई है इस जिसमें पौधे एवं जीवन की सूची होती है जो विरोधी के कगार पर होते हैं ।
इसके अंतर्गत लाल सूची का उद्देश्य संकटग्रस्त Biodiversity के महत्व के विषय में लोगों को जागरूक करना है और उनकी सूची तैयार करना है रे डाटा बुक के अंतर्गत वैसे ही जीवन और प्रजातियों को रखा जाता है जो अंतिम रूप से व्यक्ति के घर पर होते हैं और आगामी समय में विलुप्त होने की आशंका बनी हुई है वैसे जीव की सूची द डाटा बुक में रखी जाती है
3) तप्त स्थल
इसके माध्यम से विभिन्न प्रकार के संकटग्रस्त जीवन को संरक्षण प्रदान किया जाता है । 1888 ईस्वी में हॉटस्पॉट की संकल्पना की गई थी । विश्व में कुछ क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत संपन्न है ऐसे ही सर्वाधिक संपन्न तथा संकटग्रस्त स्थल को तप्त स्थल या हॉटस्पॉट कहा जाता है जो पृथ्वी के लगभग 1.4% भाग पर स्थित है । यहां विश्व की कुल पादप प्रजाति का लगभग 44% तथा कल को कोशिकीय जीवों का 35% भाग पाया जाता है ।
विश्व के अधिकतर हॉटस्पॉट उष्णकटिबंधीय और अर्ध उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पाए जाते हैं । करीब 16 हॉटस्पॉट उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पाए जाते हैं और हॉटस्पॉट निर्धारित करने के दो कसौटी बताई गई हैं –
> यदि 1500 स्थलीय प्रजातियां पाई जाती हैं तो वैसे क्षेत्र को हॉटस्पॉट घोषित कर दिया जाता है ।
> किसी प्रदेश में 70% से अधिक मूल जैविक प्रजातियां नष्ट हो चुकी हो या संकटग्रस्त स्थिति में हो ।
तो वैसे क्षेत्र को हॉटस्पॉट घोषित किया जाता है और उन्हें संरक्षण प्रदान किया जाता है ।
विश्व के कुछ प्रमुख हॉटस्पॉट इस प्रकार हैं –
उत्तर और मध्य अमेरिका के हॉटस्पॉट
दक्षिण अमेरिका के हॉटस्पॉट
यूरोप तथा मध्य एशिया के हॉटस्पॉट
अफ्रीका महादेश के हॉटस्पॉट
एशिया प्रशांत महासागर के हॉटस्पॉट
इसके अलावा भारत में दो प्रमुख हॉटस्पॉट हैं –
हिमालय पूर्वी हॉटस्पॉट
इस हॉटस्पॉट का क्षेत्रफल लगभग 750000 वर्ग किलोमीटर है इसके अंतर्गत भुगतान नेपाल भारत किया का पूर्वी भाग पूर्वोत्तर राज्य और चीन का भी कुछ भाग आता है इस क्षेत्र में लगभग 9000 पौधे की प्रजातियां पाई जाती हैं जिसमें लगभग 3160 प्रजातियां जीव जंतुओं की है करीब 5800 पर जातियां पौधे की हैं और करीब 2000 स्थानीय प्रजातियां पाई जाती हैं इस क्षेत्र में काम से कम 56 प्रकार के फूल वाले पौधे पाए जाते हैं जो अत्यंत ही दुर्लभ हैं राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन भी इसी क्षेत्र में पाए जाते हैं इस क्षेत्र में अधिकांश पौधे और जीवन को संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत संरक्षण प्रदान किया जा रहा है
पश्चिमी घाटके हॉटस्पॉट
पश्चिमी घाट का हॉटस्पॉट एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है इस चीज के अंतर्गत पश्चिमी घाट का श्रीलंका वाले क्षेत्र आते हैं यह क्षेत्र वनों के रूप में फैला हुआ है यहां जहां जैव विविधता की प्रचुर मात्रा पाई जाती है इस हॉटस्पॉट क्षेत्र के अंतर्गत महाराष्ट्र गोवा कर्नाटक तमिलनाडु और केरल का क्षेत्र आता है समुद्री सतह से लगभग 500 मीटर से 15 मीटर की ऊंचाई पर अर्ध सदाबहार वन पाए जाते हैं वैसे क्षेत्र में शांत घाटी क्षेत्र और अगस्त मलाई का क्षेत्र आता है जिसमें पर्वतों की श्रृंखलाओं का जैव विविधता की केंद्र है ।
भारत में सरीसृप ग्रुप के कुछ जीव जैसे – सुनहरी बिल्ली सुनहरा बंदर , वन मानुष , पांडा । इसके अलावे कुछ विशिष्ट पौधे जैसे चंदन का वृक्ष , सरपेंटाइन का वृक्ष , भारत की संकट ग्रस्त प्रजातियां , जिसे हॉट स्पाट के तहत संरक्षण प्रदान किया जाता है ।
Biodiversity – संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
जैव विविधता के संरक्षण के लिए कई अंतरराष्ट्रीय प्रयास भी किए गए हैं कई संधियां और बैठकें भी की गई हैं –
जैव विविधता संधि 1992
यह संधि 1992 ईस्वी में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी इस संधि के द्वारा यह माना गया था कि जीव और पेड़ पौधों उसे देश की संपत्ति माने जाएंगे जिस देश में यह पाए जाते हैं और वह देश उसे पूर्णता रूप से संरक्षण प्रदान करेगा ।
यदि उन्हें किसी दिन दूसरे देश में ले जाकर उसे नया उत्पादन तैयार करना हो तो मूल देश को दूसरे देश के द्वारा क्षतिपूर्ति देनी होगी यानी इस संधि से मूल देश के जैव संरक्षण को संरक्षित करने का अधिकार दिया गया है ।
नागोया प्रोटोकॉल
जैव विविधता का संरक्षण देने के लिए नागौर प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए थे और यह प्रोटोकॉल 2010 ईस्वी में की गई थी विश्व के कई देशों ने मिलकर ना गया प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए थे और उसमें कहां गया था कि जैव विविधता का संरक्षण सभी देशों को करना है और उसमें आने वाली बढ़ाओ को दूर भी करना है ।
इसके अंतर्गत जेनेटिक संसाधनों के प्रयोग से होने वाले लाभ सभी देशों के बीच शेयर करने से संबंधित समझौता किया गया था ताकि विश्व के सभी देश जय में विविधता को जैव संरक्षण प्रदान कर सके ।
कार्टेहेना सम्मेलन
करती हिना प्रोटोकॉल 2000 ईस्वी में अपनाया गया था और यह समझौता विश्व के कई देशों के साथ किया गया था इसका मुख्य उद्देश्य विश्व के जैव विविधता को संरक्षण प्रदान करना है । करीब 197 देशों ने करते हैं ना प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए थे इसके अंतर्गत संजीव और रूपांतरित जीवों के जीनों का स्थानांतरण संचालन और उपयोग संबंधित समझौता किए गए थे ।
जैव विविधता सम्मेलन
संयुक्त राष्ट्र संघ का जैव विविधता सम्मेलन 20 अक्टूबर 2012 ई को हैदराबाद में आयोजित हुआ इस सम्मेलन में जैव विविधता के संरक्षण के लिए विकास स्थित और विकासशील देशों के बीच समझौता किए गए थे और इसमें यह निर्णय लिया गया था कि विकसित देश और विकासशील देश आपसी सामंजस्य से जैव विविधता का संरक्षण करेंगे और विकसित देश विकासशील देश के आर्थिक मदद करेंगे ।
इसके अलावा वर्ष 2021 के अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस का आयोजन वैश्विक स्तर पर 22 मई 2021 को किया गया इसमें एग्जाम विविधता संरक्षण की चर्चा भी की गई थी ।