Scheduled and tribal areas, भारतीय संविधान के भाग – 10, अनु – 244 में अनुसूचित क्षेत्र एवं जनजातिये क्षेत्र का प्रशासन का प्रावधान किया गया है। इसके अलावे संविधान की 5वीं अनुसूचि में राज्यों के अनुसूचित और जनजातिये क्षेत्रों की प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित बातें कहीं गई है ।
Scheduled and tribal areas – अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र
संसद द्वारा राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है, कि वह किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित या जनजातीय क्षेत्र घोषित कर सकता है। ऐसे क्षेत्रों की घोषणा पिछड़ेपन के कारण या उस क्षेत्र का विकास नहीं होने के कारण की जाती है। उस क्षेत्र के सांस्कृतिक विशेषताओं को भी ध्यान में रख कर इस क्षेत्र की घोषणा की जाती है।
भारत में इस तरह के क्षेत्र मुख्य रूप से असम, मेघालय, त्रिपुरा, और मिजोरम में है। सविधान के छठी अनुसूची में मेघालय, असम, त्रिपुरा और मिजोरम राज्य में अनुसूचित जनजातियों के बारे में प्रावधान किया गया है। इन राज्यों के अलावे राज्य और संघ राज्य क्षेत्रों के अधीन आने वाले अनुसूचित तथा जनजातिय क्षेत्र के प्रशासन का प्रवधान किया गया है । इसे हम इस रूप में बांटकर देख सकते हैं
a) 5वीं अनुसूची के अंतर्गत प्रशासन
संविधान के 5वीं अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा, और मिजोरम के अतिरिक्त राज्यो एवं संघ राज्य क्षेत्रों के Scheduled and tribal areas अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजाति के प्रशासन और नियंत्रण की बात कही गई है। इन क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित इस अनुसूची में निम्न बाते कही गई है –
1) इसमें कहा गया है, कि संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार इन क्षेत्रों में प्रशासन को निर्देश देने तक सीमित रहेगा।
2) इस राज्यों के राज्यपाल राष्ट्रपति को उसे समय के प्रशासन से संबंधित रिपोर्ट भेजते रहेंगे ।
3) इसी क्षेत्र को अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति के लिए सलाह देने के लिए जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन किया जाएगा ।
4) राज्यपाल को या फिर अधिकार दिया गया है कि वह निर्देश दे सकता है कि वह संसदीय उसे क्षेत्र के राज्य विधान मंडल का कोई विशिष्ट कानून अनुसूचित क्षेत्र में लागू नहीं हो सकता है ।
5)ऐसी क्षेत्र के राज्यपाल को हानिकारक दिया गया है की भूमि का आवंटन से संबंधित सभी प्रकार की शक्तियां उन्हें प्राप्त हैं ।
उपरोक्त के अतिरिक्त यदि संसद चाहेगी तो संविधान संशोधन करके जनजाति कल्याण के लिए अनुसूचित क्षेत्र के प्रशासन में कमी या अधिकता कर सकती है । इसके अलावा इस अनुसूची में जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन का प्रावधान भी किया गया है इस गठन में कुल 20 सदस्य होते हैं जिसमें 3/4 सदस्य राज्य विधान सभा के अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व पूर्ति होते चाहिए । यह परिषद सलाहकारी भूमिका निभाती है ताकि अनुसूचित जनजातियों को कल्याणकारी कार्यक्रम का नाम प्राप्त हो सके ।
b) 6वीं अनुसूची के अंतर्गत प्रशासन
सविधान के 6वीं अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रावधान किए गए है। छठीं अनुसूची के अतंर्गत प्रशासन से संबंधित निम्न बाते कही गई है
1) इसमें कहा गया है, कि जनजातिये क्षेत्र स्वशासित जिले के रूप में प्रशासित किए जाएगे।
2) इन क्षेत्रों में प्रशासन के लिए, जिला परिषद् और प्रादेशिक परिषद् का गठन किया जाएगा।
3) जिला परिषद् और प्रादेशिक परिषद् पृथक पृथक निकाय होगे। जिसे कुछ क्षेत्रों में विधि बनाने का अधिकार भी होगा।
4) इन परिषदों का भू राजस्व का निर्धारण तथा संग्रह करने तथा कुछ करो को लगाने का भी अधिकार होगा ।
5) इन परिषदों द्वारा बनाए गए नियम तब तक लागू रहेगी जब तक राज्यपाल चाहेंगे ।
6) इन परिषदों को न्यायिक और सिविल मामले में कुछ शक्तियां भी दी गई है यद्यपि वे उच्च न्यायालय के अधिकारी क्षेत्र में रहते हैं और उनकी सीमा और अधिकार क्षेत्र राज्यपाल तक तय करते हैं ।
7) जिला परिषद और प्रादेशिक परिषद को अपने दिन क्षेत्र के लिए भी विधि बनाने की सच्ची प्राप्त रहती है जैसे भूमि वन सिंचाई विवाह ग्राम प्रशासन आदि विषयों पर विधि बना सकती है लेकिन इसके लिए राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक होती है ।
8) राज्यपाल स्वशासित जिलों या जिला परिषद् के प्रशासन की जाँच के लिए आयोग गठित कर सकता है और उस आयोग के रिपोर्ट के आधार पर जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद को राज्यपाल विघटित भी कर सकता है ।
इस प्रकार संविधान के 5वी और 6वीं अनुसूची के अंतगर्त Scheduled and tribal areas अनुसूचित और जनजातिये क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधान किए गए हैं । हाल ही में इसी का एक उदाहरण असम का बोडोलैंड क्षेत्रिय परिषद का गठन किया गया है जो असम में बोड़ो बहुल क्षेत्र है।