Munda Tribe, मुंडा जनजाति भारत की तीसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति है। झारखंड में सबसे अधिक इनका सकेंद्रन रांची जिले में पाया जाता है । इसके अलावे मुण्डा जनजाति के लोग गुमला, सिमडेगा, पश्चिमी सिंहभूम, संथाल परगना में पाई जाती है।
Munda Tribe – मुंडा जनजाति
Munda Tribe , मुंडा जनजाति झारखंड की मूल जनजाति मानी जाती है । इनका प्रवेश झारखंड में 600 BC के आस पास माना जाता है ।
मुंडा जनजाति के लोग प्रोटो आस्ट्रेलियाड ग्रुप से आते है, जो स्वयं को होडोक कहते है और इनकी भाषा होडो जगर है ।
इस जनजाति की समाजिक स्थिति बेहतर हैं। इनके यहा भी सगोत्रीय विवाह वर्णित है। कई प्रकार के विवाद की जानकारी मिलती है, और आयोजित विवाह सबसे अधिक प्रचलित हैं। इसके अलावे हरण विवाह, सेवा विवाह, हठ विवाह प्रमुख हैं। सेवा विवाह में ससुर के घर सेवा द्वारा वधु-मुल्य चुकाया जाता है।
इनके यहां युवा गृह को गिटीयौरा कहा जाता है। विधण विवाद को सगाई विवाह कहा जाता है. और वधू- मूल्य को गोनांगहका कहा जाता है। गाँव के प्रधान को मुण्डा कहा जाता है, और ग्राम पंचायत को हार कहा जाता हैं।क
कई गाँवों को मिलाकर जो पंचायत बनता है, हाने परदा कहां जाता है, और पंचायत स्थल को अखड़ा कहा जाता है।
परहा पंचायत के प्रधान को मानकी कहा जाता है, जबकि ग्राम पंचायत के प्रधान को हातू मुंडा कहा जाता है।
Munda Tribe – धार्मिक स्थिति
मुण्डा जनजाति के सर्वप्रमुख देवता – सिंहबोंगा
ग्राम देवता – हातू बौगा
गाँव की सबसे बड़ी देवी – देशाउली
कुल-देवता – ओडा बोंगा
इनके पूजा स्थल को सरना कहा आता है, और उनके धार्मिक प्रधान की पाहन कहा जाता है।
पाहन के सहायता करने वाले को पंनभरा कहा जाता है। इसके अलावे ग्रामीण पुजारी को देहरी कहा जाता है, जबकि इनके तांत्रिक को देवड़ा कहा जाता है 1 मुण्डा जनजाति में कृषि और पशु पालन दोनों होता है। इनके यहाँ कई प्रकार की भूमि पाई जाती है –
पंकु भूमि – यह उपजाऊ भूमि होती है ।
नागर भूमि – यद औसत उपज देने वाली भूमि होती है।
खिरजी भूमि – यह बालू युक्त भूमि होती है।
Munda Tribe Administration – शासन व्यवस्था
मुण्डा जनजातियों की अपनी स्वशासन व्यवस्था पाई जाती है । इनके यहा गाँव के प्रधान को मुण्डा कहा जाता है। और कई गाँवों को मिलाकर एक समूह बनता है, जिसके प्रमुख को मानकी कहा जाता है। मुण्डा बनजातियों में ग्राम पंचायत को पडदा पंचायत कहा जाता है, जिसका प्रधान पडहा राजा होता है।
पडहा राजा की सहायता करने के लिए दिवान, ठाकुर, पांडे, लाला और कर्ता होते है, जो पड़हा राजा को स्थानिय स्वशासन चलाने में सहायता करते हैं, और ये सभी पद वंशानुगत होते हैं।
पडहा राजा का चुनाव होता है। इसका पद वंशानुगत नहीं होता है, इसलिए यह भी कहा जाता है, कि जनजातियों में पहली बार गणतंत्रतात्मक व्यवस्था मुण्डा जनजाति में ही आई थी ।
इसके अलावा भूतखेत – गाँव में भूत-प्रेत से बचाव के लिए किया जाने वाला एक विशेष प्रकार की पूजा है। इसमें पाहन की भूमिका प्रमुख होती है।
भूमि के प्रकार
डालीकटारी – यह भी पादन को दी जाने वाली लगान मुक्त भूमि होती हैं।
अखड़ा – पड़हा पंचायत के स्थल को अखड़ा कहा बाता हैं।
फागु पर्व – इसमें मुण्डा जनजातियों सामुहिक रूप से शिकार का आयोजन करती हैं।