Environmental law in India – वातावरणीय कानून

Environmental law in India, वातावरणीय कानून का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण को संरक्षण प्रदान करना तथा पर्यावरण के स्थिति को बेहतर बनाए रखन है । वातावरणीय कानून केंद्रिय सरकार को कुछ ऐसे उपाय करने के अधिकार देते हैं, जिससे पर्यावरण को शुद्ध और स्वच्छ रखा जा सके ।

Environmental law in India

पर्यावरण संरक्षण से संबंधित सामान्य स्थितियों के अलावे भारतीय संविधान में भी इससे संबंधित प्रावधन किए गए है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48(A) में स्पष्ट रूप से कहा गया है, कि राज्य देश की पर्यावरण संरक्षण की व्यवस्था करेगी और वन्य जीव को संरक्षण प्रदान करेगी । इसके अलावे अनुच्छेद 5I (A) मूल कर्त्तव्य में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित प्रावधान किए गए हैं / इसमें कहा गया है कि प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण का संवर्धन करें ।

Environmental law in India
वातावरणीय कानून

भारतीय संविधान के इन्ही व्यवस्थाओं को देखते हुए पर्यावरण संरक्षण से संबंधित अधिनियम पारित किए गए । जो निम्न है –

पर्यावरण सुरक्षा कानून

इस अधिनियम के तहत निम्न बाते कही गई है –

पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय स्तर पर योजनाएं बनायी बाए और उसे लागू किया जाए।

प्रदूषण के लिए विभिन्न मापदंड तैयार किए आए।

हानिकारक गैसों के उत्सर्जन तथा उद्योगों से निकलने वाली जल और अपशिष्ट पदार्थ के लिए कानून बनाए जाए।

औद्योगिक क्षेत्र के लिए एक सीमा का निर्धारण किया जाए और उसके लिए नियम बनाया जाए ।

दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कार्य प्रणाली तैयार की काए ।

उन सभी संसाधनों कच्चे माल तथा औद्योगिक प्रक्रियाओं का निरीक्षण और परिक्षण करने के लिए नियम बनाए जाए, ताकि प्रदूषण जैसी समस्या उत्पन्न न हो सके।

पर्यावरण से संबंधित शोध कार्य कराया जाए।

किसी भी औद्योगिक ईकाई में जा कर मशीनों का निरीक्षण किया जाए।

पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए code of conduct तैयार किया जाना चाहिए। ।

इसके अतिरिक्त यह अध्यिनियम केंद्रीय सरकार को निम्न अधिकार प्रदान करती है –

पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए एवं विभिन्न कार्यों को करने के लिए अधिकारीयों की नियुक्ति करना

वैसे उद्योग को अत्याधिक CO2 की मात्रा उत्सर्जन करते है उन्हें सरकार बंद करते आदेश दे सकती है।

निर्धारित सीमा से अधिक हानिकारक गैसों के उत्सर्जन पर रोक लगाने आदेश बारी कर सकती है।

हातिकारक सामग्रीयों को लाने और के बाने के लिए नियमित कार्य प्रणाली सुनिश्चित किया आना चाहिए ।

केंद्र सरकार दूषित पदार्थों के नमुने एकत्रित कर उसे प्रयोगशाला में जांच के लिए भेज सकती है।

यह अधिनियम केंद्र सरकार को पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित नियम बनाने का अधिकार देती है और इसी के आधार पर पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ नियम भी बनाएं गए है। जैसे –

खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन अधिनियम 1989

खतरनाक पदार्थों के विनिर्माण, भंडारण और आयात नियम 1989

खतरनाक सुक्ष्म जीवो के विनिर्माण उपयोग, आयात-निर्यात भंडारण नियम 1989 बनाए गए है।

वायु संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण कानून 1981

वायु संरक्षण एवं प्रदूषण कानून २१ मार्च 19810 को केंद्र सरकार ने पारित की थी । इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वायु प्रदूषण से होने वाले समस्याओं का समाधान करता है। इस कानून में 1987 ई. में संशोधन भी किए गए थे। । इस कानून के अंतर्गत कहा गया है कि वायु में उपस्थित गैसों की मात्रा में यदि वृद्धि हो जाती है, और वह लोगों के लिए नुकसान देह साबित होने लगता है तो वायु प्रदूषण कहलाता है ।

जल प्रदूषण नियंत्रण कानून 1974

जल प्रदू‌षण को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने 1974 में जल प्रदूषण नियं निवार्ण नियंत्रण कानून 1974 पारित की थी। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य जल का सदुपयोग करने तथा जल प्रदूषण को कम करना है । यह अधिनियम 1988 ईस्वी में संशोधित किया गया था इस संशोधन के द्वारा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह अधिकार दिया गया कि वैसे उद्योग को बंद करने का आदेश दे सकते हैं जो इस कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं ।

वन संरक्षण कानून

भारत में वन नीति का प्रारंभ 1952 ई० में हुआ था । इस नीति के तहत वनों के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा नीतियों की घोषणा की गई थी। इसके बाद भी भारत में वनों को काफी क्षति हो रही थी. कयोंकि जलावन की लकड़ीयों, चारा, इमारती लकड़ीयों की मांग लगातार बढ़ रही है जिसके कारण वनों को काफी क्षति हो रही थी यह जिस चीज से निपटने के लिए विस्तृत कानून की आवश्यकता महसूस की जा रही थी इसलिए किन तरह का निबंध संरक्षण अधिनियम 1972 और वन संरक्षण अधिनियम 1980 पारित की थी इस अधिनियम के द्वारा भारत में वनों के संरक्षण के लिए पर्याप्त उपाय किए गए । इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य था –

a) परिस्थितकी संतुलन को बनाये रखना

b) पर्यावरणीय स्थिरता को बनाए रखना

c) देश में जैव-विविधता को सुरक्षित रखने के लिए बनो की सुरक्षा करना

d) मरुस्थलिय क्षेत्र के विस्तार को रोकना

e) वन आच्छादित क्षेत्र का विस्तार करना

f) राष्ट्रीय वन्य कीव कार्यक्रम को लागू करना

g) वन्य जीवो के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय उद्यान, वन्य अभ्यारण और बायो रिसर्व केंद्र की स्थापना करना है।

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 और वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अतंर्गत निम्न प्रावधान किए गए हैं –

a) इस अधिनियम के अंतर्गत वनों के संरक्षण और वन्यजीवों के संरक्षण की बात कही गई है।

b) इस अधिनियम के तहत राज्यों में वन्य जीव परामर्श बोर्ड गठित करने प्रावधान किया गया है।

c) वन्य जीवो के संरक्षण के लिए इसी अधिनियम के अतंर्गत स्थापना वन का अभ्यारण्यों और राष्ट्रीय उद्‌‌यान की प्रावधान किया गया है।

d) वनों में पाये जाने वाले जीव-जंतुओं और पक्षियों आदि शिकार करना पुर्णतः वर्जित है।

e) इस अधिनियम के अंतर्गत वन्य जीवों का और वन्य जीवों से बने उत्पाद का व्यापार करना पूर्णतः प्रतिबंधित है ।

f) इस अधिनियम के द्वारा संकट ग्रस्त प्रजातियों को नुकसान पहुंचाने पर दंड का प्रावधान किया गया है जो न्यायालय प्रक्रिया के द्वारा सुलझाया जाएगा ।

इसी अधिनियम में बनो का विस्तार, वन्य जीवों का संरक्षण आदि के लिए वन्य जीव प्रबंधान की स्थापना करने की बात कही गई है।

1982 में वन्य जीव का संरक्षण में और फिर 2002 में इस अधिनियम को संशोधित किया गया । 2002 के संशोधन के द्वारा वन्य जीवों के लिए राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड और राज्यों के लिए राज्य वन्य जीव बोर्ड के गठन का प्रावधान किया गया ।

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