Indian constitution, नियमों का एक समहू है जिसमें कुल 395 अनुच्छेद , 12 अनुसूचियां और 22 भाग है। प्रारंभ में केवल 8 अनुसूचियां थी । भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं में
Indian constitution – मुख्य विशेषताएं
Indian constitution विभिन्न स्रोतो पर आधारित
भारतीय संविधान निर्माताओं ने संविधान निर्माण करने के लिए विभिन्न स्रोतों का उपयोग किया था भारतीय संविधान के मुख्य स्त्रोत के रूप में अबसे अधिक योगदान भारतीय अधिनियम 1935 का है। इसके अतिरिक्त ग्रेट ब्रिटेन से शासन व्यवस्था, विधि निर्माण की प्रक्रिया और एकल संसदीय नागरिकता ली गई है, अमेरिका के संविधान से संविधान के सर्वोच्चता स्वतंत्र न्यायपालिका, महाभियोग की प्रक्रिया की गई है, इसी प्रकार आयरलैण्ड से राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत जबकि भारतीय संघ प्रणाली कनाडा के संविधान से ली गई है ।
भारतीय संप्च प्रणाली कनाड संविधान की गणतंत्रात्मक व्यवस्था फ्रांस के संविधान से बि गई है, जबकि समवर्ती सूची आस्ट्रेलिया के संविधान से लिया गया है। इसी प्रकार कुछ अन्य प्रावधान भी अन्य देशों के संविधान से लिये गये है। इस प्रकार विभिन्न प्रावधानो के समिश्रण से भारतीय संविधान का निर्माण हुआ है।
लोक प्रिय सम्प्रभुता पर अधारित Indian constitution
भारतीय संविधान लोकप्रिय सम्प्रभुता पर अधारित संविधान है 1 इसका अर्थ है, कि यह संविधान भारतीय जनता द्वारा निर्मित संविधान है, और संविधान द्वारा अंतिम शक्ति भारतीय जनता को प्रदान की गई है।
विशालकाय और लिखित Indian constitution
भारतीय संविधान का एक प्रमुख लक्षण विशालकाय और लिखित संविधान है भारतीय संविधान किसी भी देश में बना सबसे लम्बा संविधान है। इस संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 धनुसूचियां थी, वर्तमान समय में 465 अनुच्छेद 12 अनुदाथियों और 22 भाग है। इस संविधान में प्रस्तावना मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्व केंद्रीय कार्यपालिका राज्य कार्यपालिका, निर्वाचन यायोग उच्चत्तम न्यायालय, आपात कालिन स्थितियां, केंद्र राज्य संबंध संविधान संशोधन प्रक्रिया का व्यापक वर्णन किया गया है।
संविधान को अनिवार्य रूप से लिखित होना चाहिए और इससे मूलत: संविधान की सर्वोपरिततः के संबंध में किसी संशय का निराकरण तो होता ही है. साथ-साथ केंद्र और राज्य के बीच शक्तिओं का स्पष्ट विभाजन लिखित रूप में रहता है। इसलिए भारतीय संविधान की एक बड़ी विशेषता इसका विखित रूप है।
सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतांत्रिक गठणराज्य
संविधान के प्रस्तावना में स्पष्ट है, कि भारतीय संविधान सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न एवं लोकतांत्रिक मुल्यों पर अधारित है। सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न का अर्थ है, कि भारत में राज्य सत्ता जनता में नीहित है, और जनता को अपना प्रतिनीधि निर्वाचित करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
Indian constitution की प्रस्तावना
भारतीय संविधान का आईना उसका प्रस्तावना है । प्रस्तावना ही लक्ष्य या उद्देश्य का निर्धारण करती है। प्रारंभ में प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं माना जाता था । इसे न्यायालय में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है, लेकिन जहां संविधान की भाषा संदिग्ध हो, वहाँ प्रस्तावना की सहायता ली जा सकती है। प्रस्तावना संविधान का अंग है या नहीं यह सदैव विवाद का विषय रहा है। इस विवाद का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय में केशवानंद भारती बनाम केरल पर राज्य में किया गया है। इस वाद के अधार कहा गया, कि प्रस्तावना संविधान का अंग है और यह भी निर्णय लिया गया, कि प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है।
संसदीय सरकार
भारतीय संविधान की एक प्रमुख लक्षण उसका संसदीय व्यवस्था, जो ब्रिटेन से लिया गया था। इसमें संसद को अधिक महत्व दिया गया है। कार्यपालिका संसद के प्रति उत्तरदाई होती है। भारतीय संविधान के कल व्यवस्था में दोहरी कार्यपालिका कार्य करती है। इसमें नाम मात्रा कार्यपालिका राष्ट्रपति होता है, जबकि वास्तविक कार्यपाविका प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रीमंडल होता है। प्रधानमंत्री तथा मंत्रीमंडल संसद के प्रथम सदन लोकसभा के प्रति सामुहिक रूप से उत्तरदाई होता है। उत्तरदाई होने का मतलब है, कि मंत्रीमंडल इस समय तक अपने पद पर बना रह सकता है। जब तक उसे लोकसभा में विश्वास प्राप्त है।
संसदीय शासन व्यवस्था में भारतीय संविधान में मंत्रीपरिषद को दी वास्तविक सरकार माना गया है, जो भारतीय संविधान की एकबड़ी विशेषता है।
कठोर और लचीलेपन का समन्वय
भारतीय संविधान में कठोरता और लचीलेपन दोनों का समन्वय स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ता है, और यह स्थिति संविधान में संविधत संशोधन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से देखी जा सकती है। भारतीय संविधान में संविधान संशोधन की तीन प्रक्रियाएं अपनाई गई है। जिसमें प्रथम अत्यंत सरल ढंग से संविधान के कुछ अनुच्छेदो में संसदीय परम्परा के अनुसार संशोधन किया था सकता है, लेकिन संविधान के कुछ अनुच्छेदों में अत्यंत अरिल प्रक्रिया के द्वारा संशोधन किया जाता है। इसलिए भारतीय संविधान को कठोर और लचीलेपन का समनत्य कहा जाता है।
संघात्मक और एकात्मक लक्ष्ण
भारतीय संविधान की प्रकृति संप्घात्मक है या एकात्मक इसके संबंध में विद्वानों में मतभेद है। भारतीय संविधान में दोनो लक्षण पाये जाते है, जो इस प्रकार है-
भारतीय संविधान के संघात्मक लक्षण
१) लिखित संविधान
b) संविधान की सर्वोच्चता
c) संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन
d) स्वतंत्र न्यायपालिका
e) संविधान संशोधन प्रक्रिया में जटिलता
भारतीय संविधान के एकात्मक लक्ष्ण
a) राज्य के राज्यपालों की नियुकित
b) आपातकाल के दौरान संसद को विधि बनाने की शक्ति
c) नए राज्यों का गठन, राज्यों के सीमा का निर्धारण संबंधी संसद का अधिकार
एकल नागरिकता का प्रावधान
समान्यतः संघीय प्रावधान। संविधान में दोदरी नागरिकता का प्रावधान होती है पहली नागरिकता संघ की होती है, जबकि दूसरी नागरिकता राज्यों की होती है, लेकिन भारतीय संविधान इसका अपवाद है, भारतीय संविधान संघीय होते हुए भी एकल नागरीकता का प्रावधान करता है, वो भारतीय संविधान की विशेषता है।
वयस्क मताधिकार की व्यवस्था
भारतीय संविधान के संसदीय शासन व्यवस्था के अंतर्गत सरकार की गठन जनता के द्वारा की जाती है, वह भी प्रत्यक्ष निर्वाचित वयस्क मताधिकार के आधार पर की जाती है, जो भारतीयसंविधान की प्रमुख विशेषता है।