Samash in khortha – समास
समास का अर्थ है, संक्षेप। कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ प्रकटकरना समास का उद्देश्य है।
प्रसिद्ध व्याकरण पंडित कामता प्र. गुरु के अनुसार दोया दो से अधिक शब्दों का परस्पर संबंध बताने वाले शब्दों या प्रत्ययों का लोप होने पर इन दो या अधिक शब्दों से जो एक स्वतंत्र शब्द बनता है, उसे सामासिक शब्द कहते हैं और इन दो पदों के संयोग होने की प्रक्रिया समास कहलाता है। इसकी निम्नलिखित विशेषताओं को चिन्हित किया जा सकता है
1. समास में कम से कम दो पदों का योग होता है। दो पदो से अधिक पदों का भी समास होता है, किन्तु हिन्दी एवं खोरठा की प्रकृति दों पदों की है। प्रकृति दो पद
2. दो या दो से अधिक पद एक पद हो जाते है। मुक़ाम तकजैसे- प्रति दिन-प्रतिदिन, गंगा जल – गंगाजल3. समास में समात्प होने वाले पदों का प्रत्यय या विभक्ति लुप्त हो जाता है
Samash in khortha – समास के भेद
समास के मुख्यतः सात भेद होते हैं
1. अव्ययी भाव
2. तत्पुरुष
3. कर्म धारय
4. द्विगु
5. नञ
6. बहुव्रीही
7. द्वन्द
1. अव्ययी भाव समास- Samash in khortha
जिसमें पहला पद प्रधान हो और समास्त या समासिक पद अव्यय हो जाय। इसमें प्रथम पद उपसर्ग जाति का अव्यय होता है। जैसे पइतदिन, पइतबद्दर, पतझन, पतझन, हरबछर हरसाल, विग्रह दिन-दिन बछर बछर, झन-झन बेलुरा, बेकामा, बेधड़क, निधड़क, निहुनर, बिफिकर, निखडक, निरबंस, परखडका, परजरूआ जाइजिनगी, भइरपेट, हरबेइर, लिलज, निलज, निपुता, बेझकल, बेदाग, परजाइत.
एक साथ ही किसी शब्द को दोबारा प्रयोग करने से भी अव्ययी भाव समास होता है।
जैसे करे करे, गते – गते, धड़ा – धड़, मांझ- मांझ, खन खन, राइते – राइत, दिन – -दिन, रसे- रसे, केरमे केरमे, कटि – कटि, जरि- जरि, अलगे अलगे, लचर – लचर, लझर लझर, फचर फचर
खोरठा में इस प्रकार के अनुकरणात्मक शब्दों की बहुत बड़ी संख्या है अर्थात् प्रत्येक वर्ण से लगभग इस प्रकार के द्विरुक्त एवं अनुकरणात्मक ध्वन्यात्मक शब्द पाये जाते हैं। ये क्रियाविशेषण बोधक होते हैं। ये अव्ययी भाव समास है।
द्विरुक्त शब्दों के साथ ही, से, न तथा ‘आ’ हिन्दी के प्रभाव के कारण आ जाते हैं।
जैसे
• आपरूपी – आपसे आप
• मनेमन मन ही मन –
• कधी- कहीं न कहीं
• अचेक्क एकाएक
कंधू नी कंधू – कंधी नी
द्विरुक्त शब्दों के मध्य में उर्दू-फारसी का ‘दर’, शब्द आने पर भी अव्ययीभाव समास बनता है। जैसे पुसुत दर पुसुत, साल दर साल, खुंटी दर खुंटी।
वैसे क्रियाविशेषण शब्द जिसमें से पहला पद मुख्य होता है और दूसरा पद इसी के अनुकरण पर या ध्वयात्मक समानता के आधार पर बनाहोता है, अव्ययी भाव समास के अन्तर्गत आती हैं।
जैसे लझर – पझरखटर पटरहदर- बदरलचर पचरहडर बडर
2. तत्पुरुष समास – Samash in khortha
जिस समास में दूसरा या अंतिम में पद प्रधान होता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-राजाधार, सोनचरत्र, पइन कउआ, पइन डुबकी, पइन सोखाइन उदाहरणों का विग्रह इस प्रकार होगाराजाक घार, सानोक चरयं, पानी में रहनेवाला कउवा, पानी में डुबकी लगवे वाला चरय, पानी के सोखे वाला इत्यादि ।
नियम
तत्पुरुष समास में पहला पद विशेषज्ञ की तरह होता है। इस शब्द के साथ कारक की विभक्तियां लगती है।
कारक की विभक्तियों के आधार पर इसके निम्नलिखित भेद होते हैं –
a. कर्मवाचक
द्वितीय तत्पुरूष : इसमें कर्म कारक की विभक्ति लगती है। कजैसे – पइन सोखा, पानी के सोखनिहार,मइट कटा – माटी के काटेवालामाछामारा / मछरमारा – मछरी के मारेवालाघरभोरा – घरके भरवइयामोटढोवा – मोटा के ढोवेवाला, मुहलुकवा, मुहचिकना, बातबनवा, बतचिकना, बतजोरा, घामगारा, चामसुखा, गातजारा, बतजोगा, बतजोरा, जांगरढाहा, हाड़तोरा, बारीओगरा, कपरफोरा, ढेकफोरा/ढेलफोरा, पइनभोरा, पइनभोरी,
भतरखउकि, मरखडका, जहरमारा, बतनिझा, बेटमारी, पगइरढाहा, झरग सिरजा, पतइरचट्टा, हांडीहुलका, धराफोरा, कठखोटकी, बतसुना, तेलचट्टा, पत्थर चट्, चरयमारा, खेतजोता, हरजोता, धरघुसकी, जहरमोरा, सरगफोरा, गुरमोरा
b. तृतीय तत्पुरुष (करण कारक)- इसके प्रथम पद में करण कारक की विभक्ति ई ए आजअ बाज लगी होती हैं जो विग्रह करने पर सामने आतीहै।जैसे-ढेंकीकुटा -ढंकी कुटल / ढेकिए कुटलमोदमताल – मोदे मातलधनबुबुक – घनेबुबकलनींद – नींद मातलरउद जरा/रोदजारा – रोदे जरलरोदडाढा – रोदें
रोदपाका रोदें पाकल
c. चतुर्थी तत्पुरुष (सम्प्रदान कारक)- इसके प्रथम पद पर सम्प्रदान कारक कीचतुर्थी लेल/ लाई / लागिन / खातिरविभक्ति लगती है।
जैसे डहरखरच डहर लागिन खरचघरखरची छटेकलागिन खर्चदेसभगति – देसेक लागिन भगतिहंथ कड़ी – हाथेक लागिन कड़ीडंड सिकरी- डंडाक सिकड़ी
d. पंचमी पुरुष – इसके प्रथम पद में अपादान कारक की ‘लें’ विभक्ति लगी होतीहै, जो विग्रह करने पर दिखाई पड़ती है।जैसे-दूधटुल – दूध ले टुटलअलगडीहा – अलग हइ जे डीहले / डीह ले अलगदूधकटा – दूध ले कटलडहर छाडा – डहर ले छुटल/हटलनींद टुटा – नींद ले टुटलडाइर छुटा – डाइर ले छुटल
e. षष्ठी तत्पुरुष (संबंधकारक ) उसके प्रथम पद में संबंध कारक की विभक्ति’क’ लगी होती है, जो विग्रह करने पवर स्पष्ट होता है। जैसे- है, जो विग्रह करने होता है।
हंडीसार- हांडिक सार (शाला) हॅठगढात से मुक़ाम तकइंडसिकरी- डंडा का सिकरी बाहमनडीहा – बाहमनेक गांवकलसार कलेक सार शाला गंगाजल गंगगाक जलदेवघर – देवेक घरबोनमानुस – बोनेक मानुसननिहर – नानीक घरममहर – मामाक घरअमचूर – आमेकचूर
राजदरबार – राजाक दरबारराजमहल – राजाक महलदूधघर – दूधक घरढेकीसार – ढकिक सार (घर)
बोनमुरगी – बोनेक मुरगीकादोफूल – कादोक फूलघर भुतवा – घरेक भुतवाहवाई जहाज हवाक जहाज पइन जहाज पानीक जहाज-ससुरार – ससुरक घरबध जोबरा – बाधेक जोबरससुरघर – सररेक घर शुरुआकठघोड़ा – काठेक घोड़ाघोड़सार – घोड़ाक सार (घार)
गोलपार गोल – चकरेक पारघड़सार – घड़ाक सार (घाट)पेटरवरिया – पेटरवारेक रहवइयापरनदिया – नदी पारेक लोगअमझोरा – आमेक झोरघरबारी – घरेक बारी
राजदरबार – राजाक दरबार
राजमहल – राजाक महल
दूधघर – दूधक घर
ढेकीसार – ढकिक सार (घर)
बोनमुरगी – बोनेक मुरगी
कादोफूल – कादोक फूल
घर भुतवा – घरेक भुतवा
हवाई जहाज हवाक जहाज पइन जहाज पानीक जहाज
ससुरार – ससुरक घर
बध जोबरा – बाधेक जोबर
ससुरघर – सररेक घर शुरुआ
कठघोड़ा – काठेक घोड़ा
घोड़सार – घोड़ाक सार (घार)
गोलपार गोल – चकरेक पार
घड़सार – घड़ाक सार (घाट)
पेटरवरिया – पेटरवारेक रहवइया
परनदिया – नदी पारेक लोग
अमझोरा – आमेक झोर
घरबारी – घरेक बारी
f. सप्तमी तत्पुरुष (अधिकरण कारक ) जिसके प्रथम पद में अधिकरण कारक – की विभक्ति एं/यं/ वाय लगी होती है, जो विग्रह करने पर दिखाई पड़ती है।जैसे -पतलुका – पातें लुकाइलगछपका – गाछे पाकलघरढुकी – घारें दुकेकेउपरे बांध – उपर में बांध
3. कर्मधारय समास – Samash in khortha
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं, उसे कर्मधारय – समास या समानाधित समानाधि करण तत्पुरुष कहते हैं।
जैसे ललपनिया – लाल रंगेक पानी हक जहाँ
दूधमटिया – दूध रंगेक माटी हाँ
कारी पानी – करिया रंगेक पानी हइ जहाँनील कमल नीला रंगेक हड़ जे कमल-
गांगानेरिया – गंगा नियर जोरिया हइ जहाँ
कुकुर पेटा – कुकु नियर पेट हइ जेकर
भालुक गोठा – भालू नियर गोड़ हड़ जेकर
कुकुरमुहा – कुकुर नियर मुहं हइ जेकर
छगरी मुंहा – छगरी नियर मुंह हइ जेकर
पतसुगी – पतइ नियर जे सुगा हड़
कर्मधारय समास के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य एवं उपमान उपमेंव संबंध होता है।
4. द्विगु समास- Samash in khortha
जिस समास का पहला पद संख्यावाचक हो, उसे द्विगु कहाजाता है।
जैसे- दुअनी, अठनी, तिमाही, छमाही, चरगोडिया, तीन कउड़िया, सतघरवा, सतकउड़िया, सतभतारी, बारहगंवा, बारहसिंघा, बरभतरी
5. नत्र समास – Samash in khortha
इस समास का पहला पद नकारात्मक होता है यह अन, अ, बे, नि, निर आदि रूप में पाया जाता है।
जैसे- अनठेकान, अनपथार, अनठेहरी, अनहोनी, अनगरजू, अनगिनति, अनदेख, अनचेत, अनिआय, अजोइंग, अंदाव, अकाल, अचेत, बेहिसाब, बेफिकर, बुलुरा, बेकाया, बेहूदा, निफिकरा, निबंसा, निहुरा, निगोड़ा, निपुता, निखठका, निरमुनिया, निरध निया, निरवंसा, निरलजा।
6. बहुब्रीही समास – Samash in khortha
जिसमें कोई भी पद प्रधान नहीं होता, बल्कि अन्य पदार्थ या वस्तु प्रधान हो जाय या समास के विग्रह से किसी ऐसी वस्तु का बोध करा दे जो इसके लिए रूढ हो गया हो उसे बहुब्रीही समास कहते हैं।
बहुब्रीही का अर्थ ही होता है किसी को उपाधि देना, सम्मानित करना, अर्थात् दो शब्दों के मिलने से एक तीसरे अर्थ की प्रतीति कराना ही बहुब्रीही है। खोरठा में ऐसे समासिक शब्द बहुत कम पाये जाते हैं।
जैसे -अठगोड़वा – आठगो गोड़ हड़ जेकर साधारण अर्थ होगा कि आठ पैर जिसका है। यह तो किसी भी आठ पैर वाले के लिए प्रयुक्त हो सकता है पर यह किसी विशेष प्रकार के कीड़े के लिए ही प्रयुक्त होता है।
चउमुखा चाइरगो मुंह हइ जेकर एक विशेष प्रकार का परजीवी कीड़ा जो जानवरों -की देह में चिपका रहता है।
अठगोड़िया – आठ गो गोड़हइ जेकर। यह भी एक विशेष प्रकार का कीड़ा होता है, जो गंदे लोगों की देह में चिपका होता है।
कठ खोटी/कटखोटका- जो काठ को खोदती है, वह विशेष चिड़ियाँ | यह शब्द उस व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हो सकता है, जो काठ खोदने का काम करता हो, किन्तु यह शब्द एक विशेष प्रकार की चिड़िया के लिए रूढ हो गया है, जो काठ को खोदकर अपना घोंसला बनाती है।
दोसाला / दुसाला- एक प्रकार का चादर विशेष जो दो साल चले यह शब्द भी चादर विशेष के लिए रूढ हो गया है।
दो बाट – एक स्थान विशेष जहां शवयात्रा के दौरान मध्य पड़ाव है, जहाँ शव को रखा जाता है और महिलाएँ उस स्थान से शवयात्रा से वापस आ जाती है। है और महिलाएँ उस स्थान से शवयात्रा से वापस आ जाती है।
व्यतिहारी बहुब्रीही – जिसके घात-प्रतिघात, सूचित हो, उसे व्यक्तिहार कहते हैं।
जैसे- मुक्का-मुक्की, पीटा-पीटी, धक्का धक्की, रगड़ा-रगड़ी, चौंथा-चौथी, नोचा-नोची, मारामारी, लाठालाठी, कहासुनी खीचाखींची, खीचातानी, ठेलाठेली, कांथाकांथी ।
इस तरह के सामसिक शब्द खोरठा में प्रयुक्त होते हैं। बहुलता में इसके अतिरिकत हिन्दी के बहुत से सामास शब्द खोरठा में प्रयुक्त होने लगे हैं। जो निम्न प्रकार के
लंबोदर लंबा है, उदर जिसका – गणेश –
• पीताम्बर पीला- है, अंबर जिसका विष्णु
• नीलकंठ नीला है, कंठ जिसका – शिव –
• अनंत नहीं है, अंत जिसका ईश्वर –
• पंचानन पांच है आनन जिसके – ब्रहमा
चर्तुभुर्ज – चार हैं भुजाएं जिसकी – (विष्णु)
• दशासन- दस है, आनन जिसके (रावण)
पतझड़ – पते झडते हैं जिस मौसम में
• अनमोल नहीं है मोल जिसका-हंसमुख मुख में है हंसी जिसकेखुश मिजाज खुश है मिजाज जिसका
• मनचला चंचल है मन जिसका-टुटपुँजिया – टुट गयी है जिसकी पूंजी
• बड़भागी – बड़ा है भाग्य जिसका
7. द्वन्द्व समास – Samash in khortha
जिस समास में दोनों अर्थात सभी पद प्रधान हो उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। इस समास के विग्रह में और, आर, चाहे, बा संयोजक शब्दों का प्रयोग होता है।
जैसे-माई-बाप – माइ आर बाप आत से मुक़ाम तकराम-लक्ष्मण राम आर लछुमनद्वन्द्व समास बनाने के नियम1. प्राय: एक ही अर्थ के दो पदों के मेल से भी द्वन्द्व समास बनते हैं। जैसे-बाल- बच्चादिया बाती, -कंकड़-पत्थरमाइर पीट
नोंचा चोथा -चाइल चलन –
2. विरोधी अर्थ वाले पदों से भी द्वन्द्व समास बनता है।
जैसे- आगू-पेछ्र, लेन-देन, हॅठ- उपर, चढ़ान-नामान, गिरान उठान-
3. ऐसे पदों के मेल से भी द्वन्द्व समास बनता है, जिनमें एक पद सार्थक और दूसरा पद निर्थरक या अप्रचलित होता है।जैसे – आमने-सामने, बात-चीत, अरोसिया – परोसिया, चाइल-ढाइल,पेठिया – पालोद्वन्द्व समास के भेद
इसके मुख्य तीन भेद होते हैं –
1. इतरेतर
2. समाहार
3. वैकल्पिक
1. इतरेतर- जिसमें दोनों खंडों की प्रधानता हो
जैसे – माइ-बाप, भाइ-बहिन, नाक-कान, घटी-बढ़ी, लोटा – डोरी, दाइल-भात, दही-चूरा, तन-मन, जनी-मरद, बेटा-बेटी, छउवा-पुता, गाय-गरु, काड़ा-भंइस।
2. समाहार- जिस समास के समूह, समुदाय, या इकठा होवे का भाव मिलता है।
जैसे जीवगंत, चरंय-चिनगुन, रूपइया-पइसा, पइसा कउड़ी, साग-भात, घास-फुस, चमक-दमक, भूत-परेत, संकार- पतार, काम-धंधा, हाथ-गोड़ (हगरदन तक हाथ जोड़ चले) अन-पानी (खायक पियेक अलावे आरो चीज) अंखरी-पिसरी (सभे किसिम के कीड़ा-मकोरा) घार-बार (घर गृहस्थी चले से संबंधित सभी बात)
3. वैकल्पिक – जिस समास के दोनों पदों के बीच स्थित अव्यय का लोप होताहै, उसे वैकपिक द्वन्द्व समास कहते हैं।
जैसे- बीस-पच्चीस (बीस चाहे पच्चीस) दस-पांच (दस चाहे पांच)दस-बारहपंद्रह-बीस
* Samash in khortha – समास *