khortha alphabet (vowel and consonants)- खोरठा का वर्ण परिचय

khortha alphabet – वर्ण

ध्वनियों के लिखित रूप को ही वर्ण कहा जाता है हर भाषा की अपनी ध्वनियां होती है। ऐसे ही खोरठा की भी अपनी ध्वनियां है। खोरठा भाषा का लेखन देवनागरी लिपि में होता है, इसलिए देवनागरी लिपि के जो चिन्ह है, ध्वनियों के उन देवनागरी चिन्हों के आधार पर खोरठा के वर्ण चिन्हित करेंगे।

वर्ण दो तरह के होते है- 1. स्वर वर्ण 2. व्यंजन वर्ण

ध्वनि – किसी भी भाषा का मूल आधार उसकी ध्वनि है।ध्वनि का न तो आकार होता है और न ही प्रकार, ये आमूर्त होता है जिसे हम सुन सकते है देख नहीं सकते।

ध्वनि को जब आकार या मूर्तरूप दिया जाता है तो उसे वर्ण या अक्षर कहते है। खोरठा में ध्वनि को साड़ा कहा जाता है

खोरठा के स्वर वर्ण

अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ

ई और ऊ का प्रयोग खोरठा में बहुत ही कम होता है। इसका प्रयोग खास करके सर्वनाम में होता है –

जैसे :-ई हमर खेत हकइ (निकटवर्ती के लिए) निश्चिय बोधक सर्वनाम

ऊ तोर खेत हकउ (दूरवर्ती के लिए) संकेत सूचक सर्वनाम

ई और ऊ का प्रयोग सर्वनाम के लिए ही होता है और कही नहीं होता

संयुक्त स्वर दो विजातीय स्वर के मेल से बना है , ए और ‘औ’ – इन्हें हम संजोगी या संयुक्त स्वर कहेंगे ।

जैसे अ + इ = ऐ — कैसा – कइसा , पैसा – पइसा , ऐसा – अइसा

अ+उ = औ — औजार अउजार औरत अउरत

संजोगी स्वर/ सुर के परजोग ना होव हइ ।

दीर्घ स्वर / सुर के परजोग कम होव हइ |

उपर्युक्त विवरण के अनुसार खोरठा में’ 08 स्वर‘का ही प्रयोग होता है। अ आ इ ई उ ऊ ए ओ

खोरठाक व्यंजन / बेंजन

क ख ग घ ङ

च छ ज झ ञ

ट ठ ड ढ வு ण अन्य :- ड़ और ढ़

त थ द ध न

प फ ब भ म

नोट:- उत्क्षिप्त (flap) व्यंजन ड़ और ढ़

अंतस्थ व्यंजन – य र ल व

उष्म/संघर्षी व्यंजन – स ह

संजोगी व्यंजन – क्ष त्र ज्ञ

उपर्युक्त व्यंजनों में से अगर Underline की हुइ व्यंजन को हटा दे तो खोरठा में कुल 29 व्यंजन होंगें । खोरठा में ड़ और ढ़ व्यंजन के रूप में प्रयोग नहीं स्वीकारा गया था लेकिन 2010 में इसे स्वीकारा गया। वैसे देखा जाता है कि खोरठा में ड और ढ की अपेक्षा ड़ और ढ़ का प्रयोग अधिक होता है।

खोरठा में पहले से व्यंजनो की संख्या – 29

अगर उत्क्षिप्त (flap) व्यंजन – ड़ और ढ़ जोड़े – 02

कुल – 31

विशिष्ट / खास साड़ा – महाप्राण साड़ा

म्ह – mh

न्ह – nh

ल्ह Ih

रह – rh

ये महाप्राण साड़ा है, देवनागरी के 2 वर्णों को मिलाकर के हम महाप्राण का रूप दे रहे है।

खोरठा में पहले से व्यंजनो की संख्या – 29

अगर उत्क्षिप्त (flap) व्यंजन · ड़ और ढ़ जोड़े – 02

महाप्राण साड़ा – 04

कुल – 35

अंतिम व्यंजन या 5वां व्यंजन अनुस्वार को प्रतिस्थिापित करता है।

जैसे गंगा – गङगा , प्रखण्ड – प्रखंड , परम्परा – परंपरा

‘ञ’ का प्रयोग :-

• ञ / यं / इं

• चरञ / चरयं / चरइं – तीनों सही है।

• माञ / मायं / माइं’ण’ का प्रयोग नहीं होता है इसके स्थान पर’ण’ के स्थान पर ‘न’ लिखते है

• गणेश – गनेस

• गणपति – गनपति /गनपइत

*अंतस्थ व्यंजन – य र ल व

अंतस्थ का अर्थ – अंतः + स्थित (In between – स्वर और व्यंजन के)

य और व दो तरह से प्रयुक्त होता है, कभी स्वर तो कभी व्यंजन की तरह

‘य’ के परजोग ‘बेंजन’ तरि-

• यमुना-जमुना• यशोदा – जसोदा• यश-जस’य’ के परजोग ‘स्वर’ तरि

• यार- इआर

• याद – इआद

• सियार – सिआर/ सिइआर

‘व’ के परजोग ‘व्यंजन’ तरि-

• वन-बोन / बन

• पर्वत – परबत

• वर्ष – बरस

• पवित्र – पबितर

‘व’ के परजाग ‘स्वर’ तरि-

• वकील – ओकिल / उकिल

• वजन – ओजन

• वजह – ओजह

एक-दो ऐसे शब्द / जगह है जो अपवाद है, और उसे वैसे ही लेखेंगे ।

जैसे-माया – मइया नहीं होगा।

साया – साजा / साइया नहीं होगा ।

‘र’ आर ‘ल’ के परजोग अदल-बदल हवो हइ-

• हल – हर

• फल-फर

• मंदिर-मंदिल

कभी-कभी’ल’आर ‘न’ भी अदल-बदल भइ जा है।(कुछ शब्दो में ये बदलाव स्वतः हो जाता है)

• नंगा – लंगा• नंगटा – लंगटा

• नौका – लउकाउष्म-संघर्षी-शषसह

‘श’ के स्थान पर ‘स’ लिखते है

• गणेश – गणेस

• महेश- महेस

• दिनेश – दिनेस

‘ष’ के स्थान पर’स/ख’ लिखते है

• पुरूष – पुरूस / पुरुख

• वर्षा बरसा / बरखा

• धनुष-धनुस / धनुख

संजोगी व्यंजन -क्षत्रज्ञ

‘क्ष’ के पर ‘छ/ ख’ लिखते है

दखिन / दछिनस्थान

• दक्षिण- दखिना / दछिना

• दक्षिणा1 परीखा / परिछाखमा / छमा• परीक्षा• क्षमा• क्षमता• क्षेत्रछेतर/ खेत (छेत्र से ही खेत बना है।

‘त्र’ के स्थान पर

‘तर’ लिखते है

• पुत्र-पुतर

• चरित्र – चरितर

• पवित्र – पवितर

• पत्र – पतर

• पत्रिका – पतरिका

‘ज्ञ’केस्थानपर ‘गेअ/गिअ’ लिखते है

• ज्ञान – गिआन / गेआन• विज्ञान – बिगिआन• ज्ञानी – गेआनी / गिआनी• ज्ञात- गिआत

महाप्राण साड़ा

● म्ह – हाम्ही, काम्ही• न्ह कोन्हो, नान्ही• ल्ह खइल्हे, गेल्हे, देखल्हे• ह खे, खेर्हा, बेरर्हा, बेर्हा

इनका प्रयोग ‘आदर बोध’ देने के लिए होता है। आदर देने के लिए ‘महाप्राण / आकार बनाकर के इसका प्रयोग करेंगे

जैसे बाबू जी खइल्हा या बाबू जी खइल्हे ।

khortha alphabet – ध्वनियों का वर्गीकरण

क ख ग घ ङ

च छ ज झ ञ

ण त

प फ ब भ म

उच्चारण के आधार पर / उच्चारण अंगो के आधार :-

कंठ्य वर्ग / क वर्ग – क ख ग घ ङ ( ये कंठ से उच्चारित होने वाले वर्ण है। )

तालव्य वर्ग / च वर्ग – च छ ज झ च ञ ( जीभ जब तालु (सोफट भाग) से स्पर्श होकर जो ध्वनि उच्चारित करती है। )

मुर्द्धण्य वर्ग / ट वर्ग – ट ड ढ ट ण ( जीभ जब तालु (हार्ड भाग या अग्र भाग) से स्पर्श होकर जो ध्वनि उच्चारित करती है )

दंत्य वर्ग / त वर्ग – त थ द ध ( जीभ जब ऊपर के दांत को स्पर्श करके ध्वनि उच्चारित है। )

ओष्ठ्य वर्ग / प वर्ग – प फ ब भ म – ( दोनों होंठों के मिलने पर जो ध्वनि उच्चारित होती है। )

उच्चारण के आधार पर/ उच्चारण अंगो के आधार पर संस्कृत सूत्र

सूत्र :-अकुह विसर्जनियांनांग कंठ्य

• अ, आ और क वर्ग कंठ्य है (विसर्ग काम का नहीं है।

इचुयशानांग तालू

• इ, ई और च वर्ग य, श तालव्य

ऋटू रषाणांग मुर्द्धण्य

• ट वर्ग र, ष, ण (ऋ का प्रयोग खोरठा में नहीं है ।)

उपुद्मानियांग ओष्ठ्य

• उ, ऊ और प वर्ग ओष्ठ्य है

ओकंठोष्ठव –

कंठ और ओठ / होठ से उच्चारित होती है ये ध्वनियां

ए- कंठतालव्य – कंठ और तालु से उच्चारित होती है।

व – दंतोष्ठव

घोषत्व के आधार पर :-

अघोष (voiceless) – कख चB लa lतh थ फ

घोष / सघोष (voiced) – गघ झङ 15 जञडढणद ब1धभम

प्राणत्व के आधार पर :-

वायु को प्राण कहा गया है जिस ध्वनि के उच्चारण में ज्यादा हवा की जरूरत पड़ती है उसे महाप्राण कहते है

जिस ध्वनि के उच्चारण में कम हवा की जरूरत पड़ती है उसे अल्पप्राण कहते है

महत्वपूर्ण बिन्दु :–

देवनागरी लिपि एक आक्षरिक (संकेतों को अक्षर के माध्यम से व्यक्त करना) लिपि है।

रोमन लिपि वर्णिक लिपि है।क लिपि है। 5वां कॉलम् नासिक कहलाता है क्योंकि उसका उच्चारण नाक से होता है।

जब हम आक्षरिक लिपि को रोमन लिपि में लिखेंगे तब उससे विशेषिण हो जाता है की कौन ध्वनि किसके साथ में जुड़ी हुई है।शष ह’महाप्राण’ है लेकिन ‘अघोष’ है।य र ल व स’अल्पप्राण है लेकिन सघोष / घोष है।

ध्वनि परिवर्त्तन –

• ध्वनियों में बदलाव होने के कारण ही भाषा में विकास होता है।

• जो ध्वनियां कल थी आज बदल गयी है एक ध्वनि से दूसरी ध्वनि में जैसे :

• घोस से अघोसात

• अघोस से घोस

• महाप्राण से अल्पप्राण

अल्पप्राण से महाप्राण

• क से गध्वनि परिवर्तन के कारण

• उच्चारण दोषमुखसुख

– क्षेत्र विशेष वातावरण दोष

• अशिक्षा

घोषत्व के आधार पर परिवर्तन :-घोषीकरण (अघोष से घोष में परिवर्तन)कंकण (संस्कृत शब्द) • घोषीकरण (अघोष से घोष में परिवर्तन)

कगनशाकसागकाक = काग / कौआ / कौवाघोषीकरण (अघोष से घोष में परिवर्त्तन) Eyar योगीकरण (अघोष से 1 घोष मेंघोषीकरण (अघोष से घोष में परिवर्तन)भक्त भगत

शोक साग अघोषीकरण (घोष से अघोष में परिवर्त्तन)

मदइत- अघोषीकरण (घोष से अघोष में परिवर्तन)अघोषीकरण (घोष से अघोष में परिवर्तन)अघोषीकरण (घोष से अघोष में परिवर्तन)-मददडडा खुबसुरत खपसुरत

प्राणत्व के आधार पर परिवर्तन :

अल्प प्राणीकरण पेड =वक्त= फेर= बखत महाप्राणिकरण1 महाप्राणिकरण

सख्त= सकत dams- अल्प प्राणीकरण धमम(संस्कृत)=तुमम (मलयालम)से अल्प प्राणीकरण म त अल्प प्राणीकरण -भरतकुमार=परतकुमार(मलयालम)भूख= भूक अल्प प्राणीकरण हाथ= हात अल्प प्राणीकरण

महाप्राणिकरण

पड= फेरवक्त=बखत- महाप्राणिकरण- महाप्राणिगृह= घर- महाप्राणिकरणताक= ताखा= भाप= खोंधा= सुखा- महाप्राणिकरण

वाष्प महाप्राणिकरण खोता महाप्राणिकरण शुष्क महाप्राणिकरण संताली=संथाली केंदरा (पिंजरा)=धरा- महाप्राणिकरण -महाप्राणिकरण

महत्वपूर्ण बिन्दु :-

अनार्य भाषाओं की विशेषताएं है कि वो महाप्राणिकरण की नहीं हैं, उनमे अल्पप्राणीकरण की विशेषता है। इसलिए महाप्राण ध्वनियां अल्पप्राण में बदल जाती है ।

• सभी जनजातीय भाषाओ में सभी जनजातीय भाषाओं में की विशेषता है जैसे :-

• हो भाषा में ‘क’ है ‘ख’ नहीं है ‘ग’ है ‘घ’ नहीं है।इनमें महाप्राण ध्वनियां है ही नहीं वह ‘भाग’ न बोलकर ‘बाग’ बोलेंगे ‘खाना न बोलकर ‘काना’ बोलेंगे

जैसे :- काना काया

• महत्वपूर्ण बिन्दु

• जनजातीय भाषाओं में महाप्राणीकरण की प्रवृत्ति बहुत कम है या नही के बराबर है।

• जो दूसरी भाषाओं से संबंधित हो गयी है उनमे थोड़ा महाप्राणत्व आ गया है

• खोरठा में अल्पप्राणीकरण की प्रवृत्ति कम दिखाई पड़ती है।Exam Fighters – खोरठा में महाप्राणीकरण की प्रवृत्ति ज्यादा है।

जैसे :- आदर देने के लिए -खइला, खइभा का प्रयोग करते हैं।

आर्य भाषाओं की विशेषता है – महाप्राणीकरण• अनार्य भाषाओं की विशेषता है अल्पप्राणीकरण

स्वरागम :–

शब्दों में अलग से एक स्वर का आ जाता है/ एक स्वर का आगम हो जाना स्वरागम है।

• बहुत सारे भाषा विद्वानों/ विज्ञान ने कहा है ये सदानी भाषाओं की विशेषता – है स्वरागम पर पता नहीं क्यों इससे स्वर का आगम होता है, भाषा वैज्ञानिक ठीक से इसका विशलेषण नहीं कर पाए I

• गोविन्द झा (मैथिली के विद्वान) के साथ अन्य भाषा विद्वान/वैज्ञानिक का कहना है कि ये उच्चारण दोष है। अनपढ़ों और अशिक्षितों का उच्चारण दोष है ।

स्वरागम के प्रकार :–

पूर्वस्वरागम / आदिस्वरागम :-

• शब्द के आरंभ में स्वर का आगम।

जैसे असनान स्थान = असथान

स्नान = असनान

स्टेशन = इसटेशन

स्कूल = इसकूल

• मध्यस्वरागम (सबसे बड़ी प्रवृत्ति) :-

■ शब्दो के मध्य में एक स्वर का आगम् हो जाना ।

■ ये खोरठा की सबसे बड़ी विशेषता है।

जैसे कर = कइर

पढ़ = पइढ़

चल = चइल

देख = देइख

नाप = नाइप

चार = चाइर

भालू = भाउल

साधु = साउध

मधु = मउद/ मद

चुरामणि = चुरामइन

कुछ अपवाद भी है.’

दस’ को ‘दइस’ नहीं लिखते’

पाँच’ को ‘पाँइच’ नहीं लिखते ।

जैसे- व्यंजन लोप हृदय=रिदय उत्तरदायी = दाय

अनुनासिकता खोरठा की विशेषता है

जैसे :-हाथी = हांथीहाथ = हांथनाच = नांचसोच = सोंचतुरत = तुरंत

* khortha alphabet – वर्ण *

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