Parliamentary Committees – संसदीय समितियां

Parliamentary Committees, संसदीय समितियां आधुनिक राजनीतिक परिस्थितियों में सदन का कार्य में केवल नीति निर्धारण करना और विधि निर्माण करना ही नहीं है, बल्कि आज संसद में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्थितियों को देखते हुए कई समस्याओं पर विचार विमर्श किए जाते है। जिसके कारण आज संसद के कार्य क्षेत्र में काफी बढ़ोत्तरी हो गई है। यही कारण है, कि व्यवस्थापिका बिना किसी सहयोगी संस्था के अपने कार्य एवं दायित्वों निर्वहन समुचित ढंग से नहीं कर पाती हैं। उनके कार्यों में सहायता देने के लिए और संसदीय व्यवस्था पर नियंत्रण रखने के लिए संसदीय समितियों का गठन किया जाता है ।

Parliamentary Committees – प्रकार

संसदीय समितियों को मुख्यतः दो वर्गो में बांटकर देखा जाता है –

1) स्थाई समितियां

स्थाई समितियों का गठन, प्रत्येक वर्ष अथवा समय-समय पर लोकसभा में लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा में राज्यसभा के सभापति द्वारा गठित किया जाता है। लोकसभा एवं राज्यसमा को मिलाकर लगभग 45% स्थाई समितियां है, जिसमें 24 दोनों सदनों की संयुक्त समितियां है। इसके अतिरिक्त 21 एक सदनिय सम्मतियां हैं।

इसके अंतर्गत कुछ महत्वपूर्ण समितियां

विशेषाधिकार समिति

इस समिति का गठन लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा नई लोकसभा प्रारंभ होने के समय किया जाता है इस समिति में 15 सदस्य होते हैं इस समिति का गठन करते समय लोकसभा अध्यक्ष को विशेष ध्यान रखना होता है कि सभी सदस्यों को इस समिति में प्रतिनिधित्व मिले इस समिति में लोकसभा के नेता और विधि मंत्री को सम्मिलित करना अनिवार्य होता है ।

इस समिति का मुख्य कार्य सांसद है या उसके किसी सदस्य के विशेष अधिकार के हनन के मामले में जांच करना है और फिर उसके संबंधित प्रतिवेदन सरकार को देना है

प्राकलन समिति

इस गठन 1950 ईस्वी में की गई थी इस समिति में कुल 30 सदस्य होते हैं जो सिर्फ लोकसभा से आते हैं इस सदस्यता के लिए विशेष बात यह होती है कि इस समिति का कोई भी सदस्य मंत्री पद का नहीं होता है और यदि किसी सदस्य को मंत्री बना दिया जाता है तो उसे तिथि से समिति की सदस्यता समाप्त हो जाती है ।

प्राक्कलन समिति के सदस्यों का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है उसके सदस्यों का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत 1 वर्ष के लिए किया जाता है यह एक वित्तीय समिति है इसका प्रमुख कार्य है

a) यह समिति वार्षिक अनुदानों की विस्तृत जांच करती हैं

b) बजट अनुमानों की जांच पड़ताल करके सदन को अपना रिपोर्ट सौंपती है ।

c) यह समिति सुझाव देती है कि कौन सी वैकल्पिक नीतियां आप नहीं जाए ताकि प्रशासन की कार्य कुशलता में बढ़ोतरी हो ।

d) यह समिति सुझाव देती है की बचत संसद में किस रूप में प्रस्तुत किया जाए या किसी प्रारूप में संसद में इसे प्रस्तुत किया जाए ।

लोकलेखा समिति

यह सबसे पुरानी विधि समिति है जो 1921 ई० से कार्य कर रही है लोक लेखा समिति में कुल 22 सदस्य होते हैं जिसमें 15 लोकसभा से और साथ राज्यसभा से आते हैं और परंपरा के अनुसार विपक्ष के किसी एक सदस्य को इस समिति का अध्यक्ष बनाया जाता है लोक लेखा समिति का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है और कोई भी मंत्री इस समिति का सदस्य नहीं बन सकता है इस समिति को प्राक्कलन समिति का जुड़वा बहन कहा जाता है इसके प्रमुख कार्य हैं

a) भारत सरकारके व्यय के लिए सदन द्वारा प्रदान की गई राशियों पर लेखन का जांच प्रदान करना है

b) भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक द्वारा दी गई रिपोर्ट की जांच प्रदान करना है

c) यदि किसी वित्तीय वर्ष के दौरान सदन द्वारा दी गई राशि के अतिरिक्त खर्च की गई हो तो समिति उसका भी जांच प्रदान करती है

d) यह समिति राष्ट्र के वित्तीय मामलों के संचालन में किसी प्रकार का भ्रष्टाचार ज्ञात करने किसी प्रकार के मामले की जानकारी मिलती है तो उसका भी जांच प्रदान करती है

e) यदि कोई मंत्रालय या विभाग किसी प्रकार का ऑक्सीजन खर्च करता हो तो यह समिति उसकी निंदा करती है और उसे अपना अपना सुझाव भी देती है

इस प्रकार लोक लेखा समिति अपने कार्य संपादन के लिए नियंत्रण महालेखा परीक्षक की सहायता भी लेती है इस प्रकार लोक लेखा के कई महत्वपूर्ण कार्य हैं

सार्वजनिक उपक्रम समिति

सांसद की यह तीसरी औरमहत्वपूर्णविधि समिति हैइस समिति में कुल 22 से सदस्य होते हैं जिसमें 15 लोकसभा से और साथ राज्यसभा से आते हैं इन सदस्यों का कार्यकाल भी एक वर्ष का होता है तथा एक वर्ष के बादइस इसके सदस्य परिवर्तित होते हैं लेकिन समिति बनी रहती है क्योंकि सार्वजनिक उपकरण के लिए धनराशि संचित निधि से निकल जाती है इसलिए लोकसभा का यह दायित्व बना बनता है कि उसे पर नियंत्रण रखें और इसे के लिए सरकारी उपक्रम समिति बनाई जाती है इस समिति का मुख्य कार्य है

a) सरकारी उपक्रमों के प्रतिवेदनों और लेखाओं का एवं नियंत्रण महालेखा परीक्षक के रिपोर्ट का जांच पड़ताल करना है ।

b) सरकारी उपक्रमों के स्वास्थ्य तथा के संबंध में यह जांच पड़ताल करती है या फिर आज के प्रतिद्वंदता के संबंध में कौन सी कंपनी व्यापारिक लाभ दे रही है उसका भी जांच करती है

c) इसके अलावा संसद द्वारा जो भी संबंधित जांच करने का आदेश दिया जाता है उसका भी जांच पड़ताल करती है

उपरोक्त के अनाड़ी विगत समितियां हैं जैसे कृषि समिति वन समिति विज्ञान और प्रौद्योगिकी समिति आदि

2) तदर्थ समितियां

तदर्थ समितियों का गणन समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार की जाती है. और समाप्त हो आने संबंधित कार्य बर इन समितियों को भंग कर दिया आता । हैं। ये अस्थाई समितियां होती है।

इसके अंतर्गत कुछ महत्वपूर्ण समितियां

प्रवर समिति / संयुक्त प्रवर समिति

यह समितियां विधेयकों के लिए गठित की जाती है इस समिति में कुल की समिति होते हैं और जब संयुक्त परिवार समिति गठित की जाती है तो इसमें 45 मिनट होते हैं इसमें 30 लोकसभा से और 15 सदस्य राज्यसभा से आते हैं

कार्य मंत्रणा समिति

प्रत्येक सदन में एक कार्य मंत्रणा समिति होती हैं। लोकसभा में अध्यक्ष अदित या समिति के 15 सदस्य होते है। अध्यक्ष कम समिति का पदेन सभापति होता है। राज्यसभा में उपसभापति गदित इस समिति में ” सदस्य होते है। राजसभाका सभापति इस समिति का पदेन सभापति होता है। क्या समिति का मुख्य कार्य है-

a) यह समिति सिफारिश करती है, कि सरकार के विधायी कार्यों के लिए या अन्य कार्यों के लिए सदन में कितना समय निर्धारित किया जाए, और किस समय कौन-जा प्रस्ताव या विधेयक सदन में प्रस्तुत किया जाए।

b) यह समिति ऐसे कार्यों का निर्वहन करती है, जो उस अध्यक्ष या सभापति द्वारा दिया जाता है।

C) यह समिति निर्णय करती है कि राज्यसभा और लोकसभा में गैर – सरकारी विधेयकों के लिए कितना समय दिया जाए।

d) समिति यह भी सिर्फ बारिश करती है किकिसी विशेष विषय को सदन में लाया जाए और उसे कितना समय दिया जाए ।

नियम समिति

लोकसभा में अध्यक्ष सहित नियम समिति के15 214624 होते है। लोकसभा पदेन सभापति होता हैं। इस इस समिति का समिति का मुख्य कार्य सदन संचालन के लिए नियम बनाना, वर्तमान नियमों में परिवर्तन का सुझाव देना आदि प्रमुख हैं ।

इसके अलावे तदर्थ समिति में जाँच समिति, याचिका समिति आचरण समिति आदि समितियां भी है । इस प्रकार संसदीय समितियों में संसदीय कार्य प्रणालीयों को और आसान बना दिया है और यही कारण है, कि संसदीय समितियों द्वारा जाँच और आलोचना के भय से कार्यपालिका अनुचित निर्णय करने से घबराती हैं ।

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