Mauryan Empire – मौर्य साम्राज्य

Mauryan Empire, मौर्य साम्राज्य की स्थापना का श्रेय चंद्रगुप्त मौर्य को जाता है। 321 BC से 298 BC तक इनका काल रहा । इनके प्रमख शासक इस प्रकार है – चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार, सम्राट अशोक आदि । चाणक्य के मुद्राराक्षस, मेगास्थनीज का ईडिका , अशोक के अभिलेख आदि से इनकी जानकारी मिलती है। ‘

Mauryan Empire – प्रमुख शासक

Mauryan Empire – चंद्रगुप्त मौर्य (321-298 BC)

323 BC में चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य सम्राज्य की स्थापना की। उसने अपने गुरु विष्णुगुप्त / चाणकय की सहायता से नन्द वंश का अंतिम शासक को पराजित कर इस वंश की स्थापना की। चंद्रगुप्त मौर्य एक क्षत्रिय था, और उसने 25 वर्ष की आयु में शासन सत्ता सम्भाल लिया था। चंद्रगुप्त मौर्य को सर विलियम मैनाम जोन्स ने सैन्ड्रा कोटश कहा है।

Mauryan Empire - मौर्य साम्राज्य

Mauryan Empire – चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य

उत्तर पश्चिम मे अफगानिस्तान की सीमा से लेकर काबुल कांधार तक

दक्षिण में करनाटक तक

पूर्व में मगध तक

पश्चिम में सौराष्ट्र गुजरात तक फैला हुआ था

305 BC में यूनान का शासक सैलियुकस ने उत्तर पश्चिम ईलाके में आक्रमण किया और चंद्रगुप्त मौर्य ने इसका प्रतिरोध किया । दोनों के बीच युद्ध हुआ और फिर समझौता हुआ। इस समझौते के तहत सेल्युकस ने अपने पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से कर दिया, और चंद्रगुप्त मौर्य को दहेज के रूप में काबुल, कान्धार, हेरात, बलुचिस्तान और अरौकोसिया दे दिया। प्लूटार्क लिखता है, कि चंद्रगुप्त मौर्य ने बदले में 500 हाथी सैल्युकस को दिया था।

चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल में सेल्युकस का राजदूत भारत आया था। इसने 14 वर्षो मगध में रहा और इण्डिका नामक ग्रंथ की रचना की । इस ग्रंथ में मौर्य काल के प्रशासन, समाज और अर्थ व्यवस्था का विवरण दिया गया है।

चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध में शासन व्यवस्था को सुदृढ़ किया। प्रशासनिक व्यवस्था कायम की और सैन्य संगठन की स्थापना भी की । इसने अपने राज्य में कई प्रकार के कर लगाये थे, और उसे वसूल भी किया था। वे कर है – भाग , भोग , सीता , सेतु आदि ।

सरकारी भूमि पर खेती करने पर जो tax दिया जाता था, उसे सीता कहा जाता था।, जबकि भाग राजा का एक समान्य हिस्सा होता था।

संद्रगुप्त मौर्य के शासन काल में मुख्य भू-राजस्व कर कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार उपज का 1/6 या छटवाँ भाग लिया जाता था। जबकि मेगास्थनिज के अनुसार मौर्य काल में भू- राजस्व की दर उपज का 1/4 लिया आता था।

अंत में ऐसा भाना आता है, कि चंद्रगुप्त मौर्य अपना शासन सत्ता अपने पुत्र बिंदुसार को सौंप कर कर्नाटक के श्रवण गोलबेला चला गया जहाँ उपवास के दौरान 298BC में अपना प्राण त्याग दिया था।

अंत में ऐसा माना जाता है, कि चंद्रगुप्त मौर्य अपना शासन सत्ता अपने पुत्र बिंदुसार को सौंप कर भद्रबाहु के साथ चंद्रगिरि, श्रवणबेलगोला चला गया जहाँ सलेखना विधि से (उपवास के दौरान) अपने प्राण 298BC में त्याग दिए । त

Mauryan Empire – बिन्दुसार (298-273 BC)

चंद्रगुप्त मौर्य का पुत्र बिन्दुसार मौर्य सम्राज्य का दुसरा शासक बना । युनानी साहित्य में उसे अमित्रघात कहा गया है। यानि शत्रु का विनाश करने वाला।

बिन्दुसार के शासन काल में तक्षशिला में विद्रोह हुआ था, जिसे दबाने के लिए बिन्दुसार ने पहले अशोक को भेजा फिर उसके बाद सुसिम को भेजा।

बिंदुसार के शासन काल में मौर्य साम्राज्य में कोई खास विस्तार नहीं हुआ । इसने साम्राज्य और प्रशासन को बनाये रखने का प्रयास किया । इसके शासन काल में जो सबसे बड़ी विशेषता थी, वह थी दुसरे देशों के साथ विदेशी संबंध बहुत अच्छे थे।

बिन्दुसार के दरबार में सीरिया का शासक डायमेकस नामक राजदूत को भारत भेजा था। इसके शासन काल में विदेशी सबंध के कई प्रमाण मिलते हैं। बिंदुसार ने सिरिया के शासक एन्टी ओकस से तीन वस्तुकों की मांग की थी- शराब, सुखी अंजीर और दार्शनीक, जिसमें एन्टी ओकस ने शराब और सुखी भंबीर भेज दिया, लेकिन दार्शनीक भेजने से इन्कार कर दिया ।

बिंदुसार आजीवक संप्रदाय का अनुवाई था। इसके समय में भी चाणक्य पाटलिपुत्र में निवास करते थे। बौद्ध साहित्य से जानकारी मिलती है, कि बिंदुसार ने 16 राज्यों को जीत लिया था। इसके प्रशासन में भी 500 सदस्यों वाली एक समीति रहती थी, जिसे मंत्री परिषद कहा जाता था जिसका प्रधान खल्लाटक बनाया गया था।

Mauryan Empire – सम्राट अशोक (269-185 BC)

सम्राट अशोक मौर्य शासकों में सबसे महान शासक था । बौद्ध साहित्य से जानकारी मिलती है, कि अशोक अपने प्रारंभिक जीवन में अत्यंत क्रुर था । वह अपने 99 भाईयों की हत्या कर मगध की गद्दी पर आया था।

मस्की अभलेख में उसका नाम अशोक आया है । गुर्जरा अभिलेख में’ अशोक को देवानांम प्रिरादशी आया है। तत्कालिन ग्रंथों से जानकारी मिलती है, कि अशोक की तीन पत्नीयां थी।

सिंहली साहित्य में प्रथम पत्नी देवी की जानकारी मिलती है, जबकि अशोक की दूसरी पत्नी कारुवाशी थी। इसकी जानकारी इलाहाबाद अभिलेख से मिलती है, जबकि तिसरी पत्नी तिष्यरक्षिता थी, जिसकी जानकारी व दिव्यावदान नामक ग्रंथ से मिलती हैं ।

भारतीय इतिहास में अशोक को एक कल्यानकारी साम्राट के रूप में जाना जाता है। इसमें 269 BC में अपना राज्य अभिषेक करवाया । इसके बाद कई जन कल्याणकारी कार्य करवाए ।

इसने 261 BC में कलिंग के साथ युद्ध किया और कलिंग की राजधानी तोसाली को बनाया । कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने बहुत गारे गुद्ध बंगों की स लाया था, और इनही खेती करवाई थी। गुद्ध के बाद अजीत के निनीतियों में परिवर्तन दुश्ता और शुद्ध है। मारे गये लोगों को देखकर तह बहुत आदत दमा और यस नीति को त्याग दिया, और फिर बौम ल को अपना किया, और नौका धर्म का प्रचार प्रसार करने लगा ।

भारतीय इतिहास में यह पहना शासक था, जिसने शिलालेख जारी किया था । इसने फूल 50 शिलालेख जारी किये थे। जिसमें वृत्त शिलालेख, लघु शिलालेख, स्तंभ लेख, गुफा अभिलेख आदि प्रमुख थे।

इन अभिलेखों के माध्यम को सम्राट अशोक छापने नीतियों और अपने शासन प्रशासन की आलकारी जनता को उपलब्ध कराता था। अशोक अपने 13 वीं शिलालेख में कलिंग शुरु की जानकारी देता है, जबकि पाँचवें शिलालेख में जानकारी देता है, कि उसने धम्म महामात्रों की नियुक्ति की थी ।

6वें स्तंभ लेख में जानकारी मिलती है, और वह कहता है, कि मैं कहीं भी रहू, प्रतिवेदक हमें जनता की समस्या से अवगत कराते रहें।

फब्र शिलालेख से जानकारी मिलती है, कि अशोक बौद्ध धर्म का अनुवाई हो गया था और वह बुद्ध, धम्म और संग का अभिवादन करता है।

Mauryan Empire – अशोक का सम्राज्य विस्तार

उत्तर पश्चिम में अफगानिस्तान तक

दक्षिण में कर्नाटक तक

पश्चिम में गुजरात, कच्छ, काठियावाड़ तक

पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक

साम्राज्य के प्रभावी प्रशासन के लिए साम्राज्य को 5 प्रांतों में विभक्त थे –

1. उत्तरापथ – तक्षशिला

2. दक्षिणापथ – सुवर्णगिरी

3. प्राच्य, प्राचीन – पाटलिपुत्र

4. कलिंग – तोसली

5. अवन्ती – उज्जयिनी

तिब्बती साहित्य से जानकारी मिलती है, कि अशोक ने नेपाल में ललित पत्तनम् नामक नगर बसाया था। जबकि कलहण की राजतरंगनी से जानकारी मिलती है, कि अशोक ने वितिस्ता नदी के किनारे श्रीनगर की स्थापना की थी।

अशोक ने आजीवक संप्रदाय के लोगों के लिए गया के पास बराबर पहाड़ी में गुफा का निर्माण करवाया । इसके अलावे अशोक द्वारा जारी किये गये अधिकांशतः अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है, 1 जबकि कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में हैं।

Mauryan Empire – मौर्य प्रशासन

मौर्य प्रशासन की जानकारी मेगास्थनीज की ईण्डिका और कौटिल्य के अर्थशास्त्र से मिलती है। मौर्य सम्राज्य की सबसे छोटी ईकाई गांव होती थी, जबकि सबसे बड़ी इकाई मण्डल होता था।

इस काल में बड़े-बड़े अधिकारीयों को तीर्थ कहा जाता था। इस काल में करीत 20 तीर्थों की जानकारी मिलती है। मौर्य सम्राज्य में मौर्या प्रशासन को चलाने के लिए कई बड़े अधिकारी होते थे, जिनका अलग अलग कार्य होता था।

अमात्य

मौर्य प्रशासन का यह सबसे प्रमुख अधिकारी था।

प्रदिष्टा

यह मण्डल का प्रधान अधिकारी होता था।

समादरता

यह कर अधिकारी था।

सन्नधाता

यह कोषाध्यात था।

रूप दर्शक

यह सिक्के की जांच करने वाला अधिकारी था।

व्यवहारिक

यह दिवानी न्यायालय का मुख्य न्यायाधिश था ।

सेनापति

यह सेना विभाग का सर्वोच्च अधिकारी था।

नायक

यह सेना का समन्वयक ( co-ordinater) था ।

करमांतिक

यह कारखानों का प्रधान अधिकारी था।

प्रसास्ता

यह संदेश ताहक था, जो राजकीय आदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाता था।

डण्डपाल

यह सेना से संबंधित सामग्रीयों का प्रबंधन करता था।

नागरक

यह नगर का सर्वोच्च अधिकारी था।

अंकपाल

यह सीमा का सुरक्षा करने वाला अधिकारी था।

द्वारीक

यह राजमहल और राजदरबार का प्रबंधन करने वाला अधिकारी था।

आटविक

यह वन विभाग का सर्वोच्च अधिकारी था।

मौर्य कालीन साहित्य

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कुछ अध्यक्षों की जानकारी मिलती है

सीता अध्यक्ष – यह कृषि विभाग का अध्यक्ष होता था।

अकारा अध्यक्ष

यह खान विभाग का अध्यक्ष होता था।

मुद्रा अध्यक्ष

यह सिक्के विभाग का प्रधान अध्यक्ष होता था ।

शुल्का अध्यक्ष

यह कर वसूलने वाला प्रधान अधिकारी था ।

Mauryan Empire – न्यायिक व्यवस्था

मौर्य काल में न्यायिक व्यवस्था की भी जानकारी मिलती है। इस काल में न्यायिक व्यवस्था मजबूत थी। राजा / सम्राट स्वंय सबसे बड़ा न्यायाधिश होता था। इस काल में दो प्रकार के न्यायालय की जानकारी मिलती है –

धर्म स्थिय न्यायालय

यह एक प्रकार का civil court था , जहाँ दीवानी मामले की सुनवाई न्याय की जाती थी।

कटकशोधन न्यायालय

यह फौजदारी ( criminal) कोट था जहाँ सिर्फ फोजदारी मामले की सुनवाई की जाती थी।

मौर्य प्रशासन में कई प्रकार के कर ली जानकारी मिलती है, और एक भूमि की भी जानकारी मिलती है। इस काल में मुखा कर भू- राजस्व कर था।

इसके अलावे

विष्टी – यह बेगारी कर था।

सीता – यह सरकारी भूमि पर लगने वाला कर था।

भाग – यह समान्य रूप से राजा का हिस्सा होता था।

वली – यह धार्मिक कर था।

निष्काम्य – यह निर्यात कर था।

प्रतिष्य – यह आयात कर था।

Mauryan Empire – भूमि के प्रकार

इस काल में निम्न भूमि की जानकारी मिलती है

कृषय भूमि

यह कृषि योग्य भूमि / जूती भूमि होती थी ।

अकृष्य भूमि

बिना जूती हुई भूमि थी।

स्थल भूमि

यह ऊँची भूमि होती थी ।

अदेवमात्रिका भमि

बिना वर्षा के अच्छी खेती होने वाली भूमि थी ।

Mauryan Empire

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: