Vedic Period – वैदिक काल

Vedic Period, 1500 BC से 600 BC के आस-पास के काल को माना गया है । इनके प्रमुख स्रोत में वेद , पुराण , उपनिष्द आदि है। इसी काल में आर्यों का आगमन भारत में हुआ था । इनका आगमन एशिया से सिंधु घाटी में पलायन करके हुआ और ये खानाबदोश जीवन जीते थे।

Vedic Period – वैदिक काल

वैदिक काल को निम्न भागों में बाटा जा सकता है

प्रारंभिक वैदिक काल (1500 BC से 1000 BC)

उत्तर वैदिक काल (1000 BC से 600 BC)

महाकाव्य अवधि (600 BC से 500 BC)

Vedic Period - वैदिक काल

Vedic Period – प्रारंभिक / ऋग वैदिक काल

ऋगवैदिक काल का प्रमुख श्रोत ऋगवेद है, जबकि उत्तर वैदिक काल का मुख्य श्रोत यजुर्वेद, सामवेद माना जाता है।

वेद

वेद संस्कृत के विद धातु से बना हुआ है, जिसका अर्थ होता है, जानना, ज्ञान प्राप्त करना । वेद को श्रुति भी जाता है, और वेदों के संकलन करता वेद व्यास थे।। वेदों की संख्या 4 है – 1) ऋगवेद , 2) यजुर्वेद, 3) सामवेद और 4) अथर्ववेद

1) ऋगवेद

जब आर्य भारत के उत्तर-पश्चिम इलाके में आये तो उन्होंने जो ऋचाएँ / मंत्रों का संकलन किया, उसे ही ऋगवेद कहा गया।

ऋगवेद को प्रथम वेद कहा जाता हैं और यह पद्‌यात्मक शैली में लिखी गई है। ऋगवेद में मंत्रो की संख्या 10,552 और सुक्तों की संख्या 1028 बताई गई है। ऋगवेद के मंत्रों का पाठ करने बाले पुरोहित को होतृ कहा जाता था।

ऋगवेद में सबसे पुराना मंडल 2, 3, 4, 5, 6 और 7 है, जबकि नवीनतम मंडल 1, 8, 9, 10 वां “मंडल”, जिसमें “पुरुषसूक्त” है । जिसमें 4 वर्णो की जानकारी मिलती है। जिसमें ब्रह्मा के शरीर से 4 वर्ण ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और छुद्र की उत्पत्ति हुई ।

Vedic Period में ग्रामीण संस्कृति थी और इसके प्रवर्तक आर्य थे, जिन्होंने भारत के उत्तर पश्चिम इलाके में वैदिक संस्कृति की स्थापना की थी।

ऋगवेद में ही गायत्री मंत्रों का संकलन भी है। ऋगवेद के ब्राहमण ग्रंथ है- एतरेय ब्राहमण और कौशित्कीय ब्राह्मण ।

इस काल की कुछ प्रमुख जनजातियाँ में यदु, तुर्वश, दस्यु, अनु पुरु, भरत, कुरु, मत्स्य थी ।

2) यजुर्वेद

इस वेद में यज्ञ की प्रधानता बताई गई है। इसमें मंत्रों की संख्या 2086 था 1975 बताई गयी है। यजुर्वेद गद्य, पद्य और मिश्रित शैली में लिखा गया है।

यजुर्वेद के उच्चारण करने वालों को अर्ध्वयु कहा गया है। यजुर्वेद की दो शाखाएँ बताई गई है शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद, जबकि यजुर्वेद के दो ब्राहमण ग्रंथ है – तैतरीय ब्राहमण और शतपथ ब्राहमण ।

3) सामवेद

सामवेद में गीत और साधना है। यह दात्मक शैली में लिखा गया है। इसमें मंत्रों की संख्या 1549 बताई गई है। सामवेद से ही संगीत की उत्पत्ति बताई गई है। हिन्दी के प्रत्येक अक्षर को संगीत से जोड़कर देखा गया हैं।

संगीत का सा-रे-गा-मा देवताओं को समर्पित है, और सामवेद के पुरोहित को उदगाता कहा जाता है। सामवेद के दो ब्राहमण ग्रंथ है – पंचविस ब्राह्मण और संडविंश ब्राह्मण ।

4) अथर्ववेद

यह अंतिम वेद है, जो पद्‌‌यात्मक शैली में लिखा गया है। इस वेद को ब्रहम वेद भी कहा आता है। इसमें मंत्रों की कुल संख्या 5839/5987 बताई गई है।

इस वेद में जादू-टोना, कर्मकाण्ड, लोकाचार, यज्ञ आदि की प्रधानता बताई गई हैं। यह चिकित्सा का सबसे पुराना ग्रंथ है। अथर्ववेद को 20 “कांडों” में बांटा गया है ।

अथर्ववेद की पुरोहित को ब्रहमा कहा गया है, और अथर्ववेद के ब्राहमण ग्रंथ है – गोपथ ब्राहमण

वेदब्राह्मण
ऋग्वेदःऐतरेय और कौषीतकी ब्राह्मण
सामवेद:ताण्ड्य और जैमिनीय ब्राह्मण
यजुर्वेदःतैत्तिरीय और शतपथ ब्राह्मण
अथर्ववेदःगोपथ ब्राह्मण

Vedic Period – आर्यों का आगमन

ऋगवैदिक काल में आर्यों का आगमन मध्य एशिया से हुआ था। इसकी जानकारी 1400 ई० पूर्व के एक लेख बोगाज कोई लेख से मिलती हैं। इसमें आर्यों के प्रमुख देवता इंद्र, मित्र, वरुण और नासत्य देवता की चर्चा की गई है और यह प्रथम अभिलेखिय जानकारी है।

इसके अलावे कुछ विद्वानों ने आर्यों का मूल निवास स्थान अलग- अलग बताया है । बाल गंगाधर तिलक मानते है, कि आर्य आर्कटिक प्रदेश से आए थे, जबकि मैकस-मूलर मानता है, कि आर्य मध्य एशिया से भारत आये थे ।

Vedic Period – आर्य साहित्य

आर्य साहित्य को दो भागों में बांटा गया है-

। ) श्रुति साहित्य

श्रुति साहित्य, वेद शब्द संस्कृत शब्द वेद से लिया गया था, जिसका अर्थ है ‘आध्यात्मिक ज्ञान।’

वैदिक साहित्य को तीन अवधियों में बांटा गया है – 1) मंत्र काल, 2) ब्राह्मण काल, 3) सूत्र काल

इसी काल में ब्राह्मण, उपनिषद और अरण्यक की रचना हुई ।

ब्राह्मण

यह गद्य ग्रंथ हैं, जिसमें भजन के अर्थ का चिंतन हैं ।

अरण्यक

वैदिक काल के प्रमुख श्रोतों में अरण्यक ग्रंथ आते हैं । इसमें दर्शन और रहस्यवाद को समझने आत्म चिंतन के लिए एकांत स्थान अर्थात् वनों में अपनी साधना करते हैं। अरण्यक ग्रंथों में मुख्य रूप से वृहदारण्यक, मैत्रायणि अरण्यक और तलवकर अरण्यक प्रमुख है। इसमें अनुष्ठानों, यज्ञों , कर्मकांडों आदि पर बल नहीं दिया जाता ।

उपनिषद

उपनिष्द भारतीय इतिहास के प्रमुख स्रोत है, जिसकी कुल संख्या 108 है । उपरिष्द में मुख्य रूप से वृद्धारण्यक उपनिष्द में अश्वमेध यज्ञ की जानकारी मिलती हैं। यह तत्त्व-मीमांसा और दर्शन का एक संयोजन हैं । कठोउपनिष्द में यम- नचिकेता संवाद की चर्चा की गई हैं। मुण्डकों उपतिष्द में राष्ट्रीय आदर्श वाकय ‘सत्य मेव जयते’ की चर्चा मिलती है।

इसके अलावे वेदांग ग्रंथों की चर्चा भी है, जो भारतीय इतिहास के प्रमुख स्रोत हैं।

2) स्मृति साहित्य

स्मृति साहित्य में पारंपरिक ज्ञान से संबंधित है। इसे निम्न विषयों में विभाजित किया जाता है – वेदांग, षड-दर्शन, पुराण, उपवेद आदि ।

वेदांग

वेदांग वेद के सहायक के रूप में माने जाते हैं । वेदांगों को पारंपरिक रूप से छह भेद है -1. ज्योतिष, 2.कल्प या अनुष्ठान सिद्धांत, 3. छन्द, 4.शिक्षा, 5 निरुक्त और 6.व्याकरण

षड-दर्शन

1. वैशेषिक, 2. न्याय 3. सांख्य , 4 योग, 5. मीमांसा, और 6. वेदांत ।

पुराण

पुराण संख्या में 18 हैं –

1. शिव पुराण, 2. विष्णु पुराण, 3. ब्रह्म पुराण, 4. पद्म पुराण, 5. श्रीमद् भागवत पुराण, 6.गरुड़ पुराण, 7. भविष्य पुराण, 8. मार्कडेय पुराण, 9. नारद पुराण , 10. लिंग पुराण, 11. मत्स्य पुराण, 12. वराह पुराण, 13. ब्रह्म वैवर्त पुराण, 14. शांड पुराण, 15. वामन पुराण, 16. सूर्य पुराण, 17.अग्नि पुराण , 18. ब्रह्माण्ड पुराण

उपवेद

इसे सहायक वेदों के रूप में भी जाना जाता है ।

तंत्र

इसमें शिव और शक्ति को मानने वाले संप्रदायों का लेखन है ।

आगम

इसमें वैष्णवों, शैव और शाक्तों की चर्चा की गई हैं।

Vedic Period – प्रशासन

वैदिक काल में राजनैतिक संस्चना की जानकारी मिलती है, जो इस प्रकार थी – राष्ट्र > जन > विष > ग्राम > परिवार / कुटुम्ब ↓

वैदिक काल में व्यक्ति की पहचान उसके कुल था गौत्र से होती थी। लोगों को सबसे अधिक विश्वास अपने कबिले के प्रति होता था, जिसे अत कहा जाता था। ऋगवेद में दूसरा शब्द विश मिलता है, इसका 1070 बार हुआ है, और जन 275 बार हुआ है। वैदिक काल में राजा’ का पद वंशानुगत हो गया था। राजा की सहायता के लिए पुरोहित ग्रामणी आदि होते थे।

इस Vedic Period काल में कर संग्राहक भी होते थे, जो कर संग्रह करके राजा को देते थे । वैदिक काल में सभा, समीति और विदय की जानकारी मिलती है। ऋगवेद में सभा शब्द का प्रयोग 8 बार हुआ है। सभा आम जनों की संगठन थी, जिसमें सभी लोग भाग लेते थे ।

समिति दुसरी संगठन थी जिसका ऋगवेद में १ बार उल्लेख हुआ है। उत्तर वैदिक काल में समिति का महत्व बढ़ा था, क्योंकि अथर्ववेद में सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्रीयां बताया गया है, और अवर्तनेद में यह जानकारी भी मिल्ली है, कि समिति में महिलाएं भाग लेती थी।

विदथ इस काल की सर्वाधिक प्राचीन संगठन थी। ऋगवैदिक काल में इसका सर्वाधिक प्रचलन था। मौ ऋगवेद में उसकी चर्चा 122 बार हुआ है। विदय एक विशिष्ठ संस्था थी, जिसमें कबीले के वृद्ध जन और विदृश्य लोग सदस्य होते थे।

ऋगवैदिक काल में वर्ण शब्द का प्रयोग मिलता है, जो ऋगवैदिक काल में प्रचलित थी

आर्य की पहचाना रंग के आधार पर की जाती थी। आगे चलकर पुरुप सुक्त में 4 वर्गों की जानकारी मिलती है। वैदिक काल में पितृ सत्तात्मक समाज था ।

परिवार का मुखिया कुलाप होता था । इस काल में संयुक्त परिवार व्यवस्था थी, और इस काल की कुछ प्रमुख विदुषी महिलाएं थी जैसे – लोपामुद्रा, घोषा, अपाला और विश्वरा । इस काल में बाल विवाह और बहु विवाह का प्रचलन नहीं था। महिलाओं की स्थिति भारतीय इतिहास में इस काल में सर्वर्वोत्तम मानी जाती है।

वैदिक काल में आर्यों का मुख्य पशुपालन था, और इस काल में भी विनिमय का साधत गाय थी, जबकि आर्यों का सर्वोत्तम पशु घोड़ा था।

ऋग वैदिक काल में कई प्रकार की देवी-देवताओं कीजानकारी मिलती है। इस काल में बहु-देवतावाद का प्रचलन था, और उस काल में श्री प्रमुख देवता थे –

आकाश के देवता – ध्यो देवता, सूर्य देवता, पूषण देन, विष्णु, ऊषा, और अश्वीन देव आदि ।

अंतरीक्ष के देवता -इंद्र, मऊत, वायु, आप्त, पर्जण्य आदि ।

पृथ्ती के देवता – अग्नि देव, पृथ्वी, सोम, वृहस्पति और सरस्वति ।

ऋगवेद में इंद्र को अर्वाधिक प्रमुख देवता माना गया है, उन्हें युद्ध का देवता भी कहा जाता है। ऋगवेद में इंद स्तुति 250 बार किया गया है, और उन्हें सभी देवताओं का राजा भी कहा गया है। वैदिक काल में देवताओं की पूजा, प्रार्थना और स्तुति पाल से की जाती थी, और अंत में यज्ञ का प्रावधान आया था।

ऋग्वैदिक काल में कई नदियों की जानकारी मिलती है। समान्यतः ऋगवेद में 25 नदियों की चर्चा की गई हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण नदी सिंधु नदी को माना गया है, जिसका उल्लेख ऋगवेद में हुआ है। इसके अलावे ऋगवेद में सरस्वती नदी की महत्ता बताई गई हैं। जो राजस्थान के मरुस्थलीय भागों में प्रवाहित होती है-

।)सिंधु नदी – सिंधु नदी

2)परुशनी नदी – रावी नदी

3) वितस्ता नदी – झेलम नदी

4) विपाशा नदी – ब्यास नदीं

5) सतुदी नदी – सतलज नदी

6) प्रशुति नदी – घंघर नदी

7) सरस्वती नदी – सरस्वती नदी

8)अस्कीनी नदी – चिनाव नदी

9) सदानीरा नदी – गंडक नदी

10) कृमू नदी – कुरर्म नदी

॥) सुवास्तु नदी – स्वात नदी

12) कुमभा नदी – काबूल नदी

Vedic Period – उत्तर वैदिक काल→ (1000BC-600 BC)

उस काल में भुनुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और ब्राहमण ग्रंथों की रचना हुई थी और इस काल के अंतिम समय में उपतिष्दों की रचना की जाने लगी थी। इस काल को पुरातात्विक आधार पर PGW काल (painted gray wear) चित्रीत धूसर मृद‌भाण्ड काल कहा जाता है।

उत्तर वैदिक काल में थोड़ा बहुत परिवर्तन हुआ । ऋगवैदिक काल अन वैदिक काल में जनपद में बदल गया। राजा के अधिकार और कर्तव्य में वृद्धि हो गई। इस काल में राजा का राज्याभिषेक होने लगा। राजा के सहयोग के लिए कई अधिकारी गण भी आ गए। इस काल में यज्ञ की प्रधानता बढ़ गई थी। कई प्रकार के यज्ञ किये जाने लगे थे।

उत्तर वैदिक काल में गोत्र व्यवस्था आ गया था और पह‌ली बार जवालों उपनिष्द में 4 आश्रम की जानकारी मिलती है-

1) ब्रह्मचर्य आश्रम , 2) गृहस्थ आश्रम , 3) वाणप्रस्थ आश्रम , 4) सन्यास आश्रम की जानकारी मिलती है।

इस काल में1000 BC के श्रास-पास लोहे की जानकारी मित्रने लगती है, इसके अलावेधातुओं में सोना, चांदी, तांबा, कांसा आदि धातुओं की1

उत्तर वैदिक काल तक आते आते आर्यों का विस्तार गंगा यमुना के दुआब इलाके तक हो गई थी ।

इसी काल में पहली बार राष्ट्र की अवधारणा भाई और कई छोटे-छोटे राज्यों की स्थापना हुई, जिसे जनपद कहा जाता है। उत्तर वैदिक काल में लोहे के मिलने से कृषि में विकास होने लगा था । कृषि के समस्थ पद्यतियों की जानकारी मिलती हैं। इस काल में मुख्य परशु गाय थी, और कई प्रकार के गायों की जानकारी मिलती हैं।

उत्तर वैदिक काल में भी शिक्षा मौखिक रूप से दी बाती थी। इस काल में धर्म, दर्शन, पुराण, उपनिष्द, शस्त्र विष्या, तर्क शास्त्र की शिक्षा दी जाती थी, और शिक्षा गुरुकुल में दि जाती थी। इस काल तक आते-जाते महिलाएं सभा और समिति में कम भाग लेने लगी थी। इसके अलाते पूजा और कर्म काण्ड में बढ़ोतरी हो गया था। इसके अलावे इस काल की एक बड़ी विशेषता द्वितीय नगरीकरण भी थी।

Vedic Period – वैदिकोत्तर काल (6 वीं शताब्दी BC)

उत्तर वैदिक काल के बाद वैदिकोत्तर काल का आगमन होता है। यह छली शताब्दी ईसा पूर्व का काल था । यद काल पूरे विश्व में धार्मिक आंदोलन. का काल माना जाता है। इस काल में 62 संप्रदायों का आगमन हु‌आ था, जिसमें प्रमुख थे, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, भागवत धर्म, आजीवक संप्रदाय, सौर्थ संप्रदाय आदि।

वैदिकोत्तर काल में ही जनपद – महाजनपद में बदल गये थे। इसी काल में पहली बार राजवंशों का आगमन हुआ था।

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