Mughal Empire – मुगल साम्राज्य

Mughal Empire, भारत में मुगल साम्राज्य का शासन काल 1526 ई० से 1707 ई० तक रहा , जिनमें शासक हुए – बाबर (1526-1530 ई०), हुमायुं (1530-1540 ई०) तथा (1555-1556 ई०), अकबर (1556-1605 ई०), जहांगीर (1605 -1627 ई०), शाहजहां (1628 -1658 ई०), औरंगजेब (1658 -1707 ई०)

Mughal Empire – मुगल साम्राज्य

Mughal Empire - मुगल साम्राज्य

बाबर (1526-1530 ई०)

बाबर ने 1526 ई० में मुगल वंश की नींव रखी। वह चुकताई तुर्क था और उसने 150780 में कांधार को जीत लिया था. और बादशाह की उपाधि धारण की। मुगल काल में बादशाह की उपाधि धारण करने वाला यह पहला शासक था । इसने भारत में कई युद्ध किये, और मुगल सम्राज्य का विस्तार किया1

पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल 1526 ई०)

यह युद्ध इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच हुआा , जिसमें इब्राहिम लोदी पराजित हो गया था। इस युद्ध में पहली बार तोपो का प्रयोग किया गया और इसी युद्ध में पहली बार बारूद का भी उपयोग किया गया था। जिसके बदौलत बाबर भारत पर विजय प्राप्त किया।

हुमायुं (1580-1556 ई०)

बाबर का सबसे बड़ा पुत्र हुमायूं था. जिसका जन्म 6 मार्च बाबर का सबसे बड़ा पुत्र हुमायु 150850 को काबुल में हुआ था। दुमायुं को हिसार और फिरोजाबाद का भागीर प्राप्त हुआ था। इसके बाद हुमायु मुगल वंश का शासक बना, और उगने मुगल साम्राजय को मजबत करने का प्रयास किया लेकिन जयफल नहीं हो सका । दुआएं में अफगानों के साथ युद्ध किया और उन्हें पराजित किया।

जून 1599 ई० में दु‌माएं और शेर खां के बीच चौका का शुद्ध हुआ, जिसमें दुमायुं पराजित होगया। हाती युद्ध के बाद शेर खां ने शेरशाह की उपाधि धारण की और अपने आप को सुल्तान घोषित किया।

1540 ई० में शेरशाह और दुमाएं के बीच कनौज या विलग्रामी का युद्ध हुआ, जिसमें दुमायुं पुनः पराजित हो गया और शेरशाह ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। इसके बाद हुमायुं निर्वाषित हो गया।

हुमायुं लगभग 15 साल तक निर्वासन की स्थिति में रहा। निर्वासन काल में ही 1542 50 में अपरकोट के राजा वीरसाल के यहाँ महल में अकबर का कम हुआ।

1555 ई० में हुमायुं अपने शक्ति को संग्रह करता है, और दिल्ली की ओर बढ़ता है, और 1555 ई० में ही वह सरहिंद का शुरू लड़ा और अपना खोया हुआ सम्राज्य पुनः प्राप्त कर लिया और लगभग 6 माह तक ही शासन किया था, कि इसी आमय दिल्ली के पुराणे किले दित-०. पनाह में पुस्तकालयों के सिदीयों से गिरकर 27 जनवरी 1556 ई० को इसकी मृत्यु हो गई।

प्रसिद्ध इतिहागकार लेनपुल ने लिखा की हुमायूं जीवन भर लड़‌खड़ाता रहा, और लड़‌खड़ाते हुए अपनी जान दे दी।

शेरशाह सूरी (1540-1545 ई०)

शेरखतह का असली नाम फरीद खां था। इसके पिता हसन खां सासाराम के जागीरदार थे। शेरशाह एक अफगान सरदार था, जिसने 154080 में कनौज के युद्ध में मुगल शासक दुमायु को पराजित किया था और कुछ समय के लिए दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। घुसने एक सशक्त प्रशासन देने का कार्य किया था लेकिन अफगान सम्राज्य का विस्तार नहीं कर सका। कुछ समय के बाद दुमाएं ने सरहिंद के युद्ध में अफगान सरदार को पराजित कर अपना सम्राजा प्राप्त कर लिया था।

शेरशाह ने कई महत्वपूर्ण कार्य किये थे। उसने पाहत्री बार सोने और चांदी के मुद्रा जारी की थी। शेरशाह ने ही रूपया का प्रचलन किया था, ओ 178 grain चांदी का सिक्का था। शेरशाह ने पहली बार व्यापार वाणिज्य के क्षेत्र में भी सुधार किया था। शेरशाह ने कृषि और राजस्व व्यवस्था में सुधार किया और पहली बार जाब्ती प्रणाली को लागू किया था, जिसके अतंर्गत लगान का निर्धारिण किया जाता था।

इसमें सबसे पहले भूमि की माप की जाती थी, और उसके बाद लगान का निर्धारण किया आता था। शेरशाह ने श्र स्थापत्य कला के क्षेत्र में भी कार्य किये थे, और उसने सासाराम में सासाराम का मकबरा बनवाया था, जो स्थापत्य कला का एक सुंदर नमुना है। शेरशाह ने दिल्ली में पुराणे किले का निर्माण करवाया और उसके अंदर किला – ए- कुहना मस्जिद का निर्माण करवाया था।

शेरशाह ने विद्वानों को भी संरक्षण दिया था। इसके शासन काल में प्रसिद्ध कवि मलिक मुहम्मद आयशी निवास करते थे। जिन्होंने पद्‌मावत काव्य ग्रंथ की रचना अवधि भाषा में की थी।

शेरशाह ने प्रसिद्ध शेरशाह खरी मार्ग का निर्माण करवाया था, श्री सोनार गांव (बांग्लादेश १ से पेशावर (फकिस्तान) तक जाती थी । इसे ही सड़क-ए-आजम कहा जाता हैं। अंग्रेजों ने इसका नाम Grand Tronk Road कहा ।

शेरशाह जब कालिंजर युद्ध लड़ने के लिए कालिंजर का पेरा डालता है, तो एक तोप के गोले से उसकी म्हत्यु हो जाती है।

अकबर (1556-1605 ई०)

अकबर का जन्म अमरकोट के राजा वीरसाल के महल में 15 अक्टूबर 1542 ई० को हुआ था। इसकी माता का नाम दृमिदा बानो बेगम और अकबर का पूरा नाम जलालुउद्दीन मोहम्मद अकबर था, और अकबर का संरक्षक बैरम खां था।

हुमायु के मृत्यु के बाद पंजाब के गुरुदास पुर जिले में कलानौर नामक स्थान पर 14 फरवरी 155680 को अकबर का राज्याभिषेक हुआ था और उसने शासन सत्ता संभालि। और उसे मुगल बादशाह घोषित किया गया 1 अकबर ने बैरम खां को अपना वजिर नियुक्त किया और उसे खान खाना की उपाधि दी। अकतर सत्ता में आते ही पेटीकोट शासन व्यवस्था में मुक्त हुआ और अपने सम्राज्य की सुरक्षा में कार्य करने लगा।

5 नवंबर 155650 को हेमचा विक्रमादित्य, (हेमू) और अकबर के बीच पानीपत का दूसरा बुद्ध हुआ, जिसमें अफगानि सेना का नेतृत्व हेमू कर रहा था। इस युद्ध में हेमू पराजित हो गया और मारा गया। अंत में अकबर का विजय हुआ।

अकबर ने सत्ता संभालते ही सर्वप्रथम अम्राज्य विस्तारप्रारंभ किया। 1562 ई. में मालवा के शासक को पराजित करभालता को जीत लिया। इसके बाद 1572 ई० में गुजरात,बंगाल और विहार को जीत कर मुगल सम्राज्य में मिला लिया। अकबर राजपुताना को जितना चाहता था इसलिएउसने राजपुताना के खिलाफ अभियान चलाया, और 1564 ई० में गोंडवाना पर श्राक्रमण कर गोंडवाना को जीत लिया 1

1566 – 1567 ई० में चितौड़गढ़ पर आक्रमण किया और चित्तौड‌गढ़ का विजय कर लिया, लेकिन सम्पूर्ण विजय नहीं कर सका। इसके बाद वह काश्मीर की ओर बढ़ा और 1586 ई० में काश्मीर पर आक्रमण करता है, और 1586 ई० में काश्मीर को जीत लेता है, और वहां का शासक युसुफ खांभारा जाता है।

अकबर ने थामेर के राजा भारमल की पुत्री जोधाबाई से विवाह किया और वहां के शासक भारमल के पुत्र भगवान दास और दोहित्र (नाति) राजा मानसिंह को अपने दरबार में ले आया था। और उन्हें ऊँच मनगबदारी प्रदान किया था। अकबर ने राजपुताना में मेड़ता और मेवाड़ के राजा उदय सिंह पर आक्रमण किया। मेड़ता को मुगल सम्राज्य में मिला लिया, लेकिन मेवाड़ को नहीं मिला सका।

अकबर ने चितौड़‌गढ़ को जीतने के लिए पूर्व रूप से 157630 में अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हल्दी घाटी का युद्ध हुआ था, जिसमें अकबर के तरफ से राजा भानसिंह नेतृत्व कर रहे थे। इस युद्ध में महाराणा प्रताप पराजित दो गरे थे, फिर भी अकबर चितौड़‌बाढ़ पर कब्जा बहीं कर सका।

1595 ई० में अकबर ने कांधार पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया, उसके बाद वह दक्कन की ओर ध्यान देता है। और 1599 ई० में दौलताबाद पर अधिकार कर लेता है। फिर 1600 ई० में अह‌मद नगर पर आक्रमण करता है, लेकिन अंतिम रूप से उसे जीत नहीं पाता है। 1601 ई० में अहमद नगर केशरी अजीर वगढ़ के किले पर श्राक्रमण कर उसे जीत नेताहै, और इसी अवसर पर वह दक्षिण के सम्राट का उपाधि धारण करता है। यह अकबर का अंतिम विजय था।

अकबर के कुछ सुधारात्मक और कल्यानकारी कार्य

→1562 ई० में दास प्रथा का अंत कर दिया था।

→ 156380 में अकबर ने तीर्थयात्रा कर समाप्त कर दिया था

→ 1564 50 में उसने हिन्दूओं पर लगने वाला अजीया कर को समाप्त कर दिया था।

→ 156480 में ही वाल त्या पर रोक लगा दिया था।

→156780 में अकबर ने अपने साम्राज्य में शराब पीने पर रोक लगा दिया था।

→ 1571 80 में उसने फतेहपुर सिकरी की स्थापना की थी।

→ 1575 ई० में अकबर ने फतेहपुर सिकरी में इबादत खाना निर्माण करवाया था ।

→ 1578 ई० में इबादत खाना सभी धर्मों के लिए खोल दिया गया ११५।

→1579 ई. में अकबर ने मककार महबर की घोषना की थी

→ 158280 में अकबर ने दीन-ए-दादी की घोषणा की थी। दीत-ए-इलाही को मानने कला पहला व्यक्ति बीरबल था।

→ अकबर के दरबार में नौ-रल रहते थे, जिसमें कनमेल, बीरबल और टोडरमल प्रमुख थे।

→ अकबर के राजदरबार में अब्दुल समर, बगावत, दशवंत, जैसे चित्रकार रहते थे।

→ अबुल फजल ने अकबर नामा था अपने अकवरी लिखा था।

→ अकबर का दीवान राजा टोडरमल ने 1580 ई० में आपाने आईन ए डसहाला चलाया था

→ अकबर ने मुगल सम्राज्य में मनसबदारी व्यवस्था चलाया था. जो विशिष्ट एवं सैन्य प्रशासनिक था ।

जहाँगीर (1605-1627 ई०)

अकबर की पत्नी जोधाबाई के गर्भ से 1569 ई० में जहाँगीर का जन्म हुआ था । इसका जन्म शेख सनीम चिश्ती के आशीर्वाद से हुआ था। इसलिए उसका बचपन का नाम सलीम था।

3 नवंबर 1605 ई० को आगरा में जहांगीर का राज्याभिषेक हुआ। इसके बाद जहांगीर अपना सम्राज्य विस्तार प्रारंभ किया । उसकी एक मात्र उपलब्धी है कि उसने 1616 ई० में मेवाड़ के साथ समझौता किया और मेवाड़ को अपने अधीन कर लिया।

जहाँगीर ने मुगल काल में न्याय का अंजीर लामाया था, भो आम्राटा के किले में लगवाया था। तंगीर का बड़ा पुत्र सुगरी था। काने जहांगीर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था और सिख्यौ के पौन्चतें शुरू, गुरु अर्जुन देव के दरबार में चला गया की। अनंगीर ले खुसरों को संरक्षण दियेोजाने जिसके कारण पाँचचते गुरु अर्जुन देव को फांसी दे दी थी।

जहांगीर की प्रेमीका पत्नी नूरजहाँ थी, जिसका बच्चात का नाम मेदक निशा था । उसने कुछ समय के लिए संपूर्ण मुगल सम्राज्य को अपने अधीन कर ली थी। इसे ही नूर अल्ल भी कहा जाता है।

जहाँगीर के समय में मुगल चित्रकला चरम पर थी। उसके दरबार में प्राली पक्षीयों का चित्र बनाने वाला उस्ताद मंजूर रखते थे। इसके अलावे आगरीजा, अबुल हसन, विगत दास, मनोहर आदि चित्रकार रहते थे। वहांगीर खुद चित्रकला का पर्थि था।

जहाँगीर ने अकबर का मकबरा सिंकदरा में बनाया था. और लाहौर में लाहौर की मस्जिद बनवाई थी। अदांगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुके जहाँगीरी लिखा था।

शाहजहाँ (1627-1657 ई०)

शाहजादाँ का बचपन का नाम शुश्श्म था। इसका अक्रम मोटा राजपुर उदरा सिंह की पुत्री अगत गोसाई के गर्भ से हुआ था। कुछ समय बाद 24 जनवरी 162850 से शासन सत्ता संभाला औरवक्षा जहांगीर के समय में दक्षिण और दककन का अवर्नर था। उसने जहांगीर के प्रशासन काल में अहमद नगर को बीत नहीं पाया था। सत्ता में आते ही उसने अहमद नगर की भीत पूरी की और फिर शाहजहाँ की उपाधि धारण किया।

1657 ई० में अब वह बीमार पड़ा, तो ४क उसके पुत्रों के बीच शासक बनने का संघर्ष प्रारंभ हो गया। यानि मुगल सम्राजा में उत्तराधिकार का संघर्ष प्रारंभ हो गया। इस युद्ध में बड़ा पुत्र दाराशिकोह को शाहजहाँ ने उत्तराधिकारी व्घोषित कर दिया। लेकिन औरंगजेब शासक बनना चाहता था। और उसने शाहजहाँ को उठाकर कारागार में डाल दिया और फिर दाराशिकोह के साथ युद्ध हुआ जिसमें सार दाराशिकोह पराजित हो गया। शाह शुजा भाग कर बंगाल चला गया, और मुराद को कलियर की किले में कैद कर दिया गया। इस प्रकार तीनों भाईयों को पराजित कर । औरंगजेब स्वंय शासक बना ।

शाहजहाँ का काल सम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता है। इसके अलावे संपन्नता और सांस्कृतिक दृष्टि कोण से संपन्न काल था। इस काल में बड़े बड़े ईमारतों का निर्माण करवाया गया था। इसी काल में स्थापत्य कला की कई शैलीयां आई थी। जैसे- पिटरा उयूरा मैती बेल बुहा शैली आदि। इसी काल में स्थापत्य कला में रंगीन संगमरमर का उपयोग किया जाने लगा था । शाहजहाँ ने तख्त ए ताउस का निर्माण करवाया था और कोहीनूर हीरा जड़ीत मयूर सिंहासन का निर्माण करवाया था।

शारजहाँ ने दिल्ली में शाह‌जहाँ बाद नामक नगर की स्थापना करवाई शी और यहीं पर अपनी राजधानी ययापित करवाई। शाहजहाँ ने दिल्ली का लाल किल्ला बनवाया था और दिल्ली कात्रमा मस्जिद बनवाया था। इन्हीं जब कारणों से शाहजहाँ के शासन काल को श्यापत्य कला का स्वर्ण काल कहा जाता है। इसके अलावे इसने आगरा में अपनी बेगम मुमताज महल की शाद में ताजमहल का भी निर्माण करवाया था। अंत में आगरे के किले में 1660 ई० में शाह‌जहाँ की मृत्यु हो जाती है।

औरंगजेब (1658-1707 ई०)

3 नवंबर 1618 ई० को उज्जैन के निकट दोहद में भौरंगजेत का जरूम हुआ था । 1636 ई० में उसे पहली सुवेदारी मिली थी और 1637 ई० में फारस के राज खासनें में उसका विवाद हुआ। औरंगजेब की पत्नी का नाम दिलराज बानों बेगम था।

औरंगजेब और दारा के बीच उत्तराधिकार का युद्ध 16575. देवराय की घाटी में हुआ था, और इस युद्ध में औरंगजेब विश्रय हुआ था, और फिर 31 जुलाई 165850 आगरा में अपनी पहली सन्याभिषेक करवाई थी। फिर विजय के बाद 15 भुत 1659 ई. को दिल्ली में अपना दूसरा राज्‌याभिषेक करवाया।

औरंगजेब के शासन काल में मुगल सम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ था। इसने सत्ता में आते ही ९० स्थानिय करों को समाप्त कर दिया था और 167950 में पुनः प्रश्रीया कर भगा दिया। औरंगजेब ने मुगल दरखार में हिंदू पर्व-त्योहार मनाने पर रोक लगा दिया।

इसने शुआ खेलने और शराब पीने पर भी रोक लगा दिया था। 1663 ई० में इसने सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया और 16 हुई अरोखा दर्शन प्रथा को समाप्त कर दिया। और अपने दरबार से संगीतकारों को बर्खास्त कर दिया था और संगीत का अनाज निकलवाया था। इसने प्रारंभ से चले आ रहे फारसी पर्व लवरीत्र मनाने पर प्रतिबंध लगा दिया था । उसके अलाते तुला दान प्रथा को भी प्रतिबंध करवा दिया था।

औरंगजेब के शासन काल में सबसे अधिक विद्रोह हुए थे, जिसमें कुछ प्रमुख विद्रोह थे –

→ 1672 ई० में जतनामियों का विद्रोह

→ 1686 ई० में गाहों का विद्रोह उस समय आठों का प्रमुख मैता राजा राम था, जिसने अकबर के सिंकदर स्थित मकबरे को तोड़ दिया था।

→1660 ई० में अहोम का विद्रोह हुआ था।

→ 1667 ई० में युसुफ जाईयों का विद्रोह और खोखरों का विद्रोह हुआ था।

→औरंगजेब ने नौवें सिंख गुरु गुरुतंग बस‌छुट को इास्त्राम धर्म स्वीकार नहीं करने के कारण उनकी हत्या करवा दी थी।

→औरंगजेब को आलमगीर की उपाधि दी गई थी। उसके अलावे उसे बिलंदा पीर भी कहा जाता था।

→ अंत में 1707 ६० में भौरंगजेब की मृत्यु हो जाती है और महाराष्ट्र के पास दौलताबाद में उसे दफना दिया जाता है।

Mughal Empire

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