Advent of Europeans, यूरोपवासीयों में सर्वप्रथम पुर्तगाली, डच, अंग्रेज, फ्रांसीसी, डेन आदि ने भारत में व्यापार स्थापित करना चाहते थे और इसे पूरा करने वास्को डी गामा ने 24 December 1524 ई० में अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप के आसपास यूरोप से भारत का समुद्री मार्ग खोजा ।
Advent of Europeans in india – यूरोपियो का आगमन
पुर्तगाली
भारत में पहला यूरोपिय यात्री 1498 ई० में वास्कोडियन भारत के कालीकट पर पहुँचा। वहाँ का राजा जमुरीन ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया और उसे मसाला दे कर वापस भेज दिया गया। इसी समय से भारत के साथ पुर्तगात्रीयों का व्यापारिक संबंध स्थापित हुआ । वास्कोडिगामा ने हिंदू शासक अमोरीत से व्यापार करने की सुविधा प्राप्त की, बिसके बाद से पुर्तगालियों ने भारत में अपनी फैक्ट्री स्थापित की ।
पुर्तगालीयों का पहला गवर्नर जनरल फ्रांसिस-डी अलभिङ था । इसने पूर्तगालियों का वर्चस्व पश्चिमी समुद्र तटीय क्षेत्र पर स्थापित किया, इसके बाद दूसरा गवर्नर अलगुर्क आया। इसे ही भारत में पूर्तगाली सम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है । इसने पुर्तगाली सम्राज्य का विस्तार हुया और 1510 ई० में बीजापुर को जीत लिया, और 1510 ई० में दी गोवा को जीत कर पुर्तगालियों का Head Quater बना दिया था।
पुर्तगालीयों ने अपनी पहली Factory 1503 ई० में कोचिन में स्थापित की थी, और फिर 1505 ई० में कन्नूर में दूसरे Factory स्थापित की थी । पुर्तगालीयों ने खासकर फ्रांसिस-डी- अलमिर ने समुद्री क्षेत्र पर अपना व्यापारिक एकाधिकार स्थापित करने के लिए Blue Water Policy चलाई थी।
डच
1602 ई. में भारत के साथ व्यापार करने के लिए इच इस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई थी। ये निदर बैंड से भारत आये थे या हॉलैंड से। इनका मुख्य उद्देश्य एशियाई देशों के साथ व्यापार करना था।
ड्चों ने अपनी पहली फैक्ट्री भारत में 1605 ई० में मसूली पत्तनम् (मच्छली पत्तनम) में लगाई थी, जबकि दूसरी फैक्ट्री 1610 ई० में पुलीकट में लगाई थी । उन्च कंपनी को अंग्रेजों के साथ कड़ी प्रति स्प्रधा करनी पड़ी थी । अंत में 1759 ई० में अंग्रेज और उचों के बीच बेदरा का युद्ध हुआ था, जिसमें इच पराजित हो गए और इनकी व्यापारीक प्रतिस्पर्धा समाप्त हो गई।
फ्रांसीसी
इस समय फ्रांसीसी का सम्राट लूई 14वां था और उसका लोकप्रिय मंत्री होल्वट था, जिसने 1664 ई० पें भारत से व्यापार करने के लिए फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की।
भारत में पहला फ्रांसीसी 1667 ई० में फ्रेंट केरो के नेतृत्व में भारत आया था। इन्होंने अपनी पहली फैक्ट्री 1668 ई० में सूरत में खोली थी और फिर दूसरी फैक्ट्री 1669 ई० में मसूली पत्तनम में लगाई थी।
फ्रांसीसी बस्तीयों का वास्तवीक संस्थापक माल्टीन को माना जाता है। यह फ्रांसीसी का प्रथम गवर्नर था। भारत में फ्रांसीसी का हेड क्वाटर पांडीन्चेरी में स्थित था।अंत में ब्रिटिश और फ्रांसीसीयों के बीच 1760 ई० में वाण्डी वास का युद्ध हुआ, जिसमें फ्रांसीसी पराजित हो गए और फ्रांस संत वर्षिय युद्ध के कारण भार्थिक रूप से कमजोर हो गया, जिसके कारण फ्रांसीसी कंपनी को वापस बुला लिया गया ।
अंग्रेज (ब्रिटिश)
जॉन मिल्टेन हॉल पहला अंग्रेज था, जो भारत भाया था। इसी वर्ष उग्लैंड में भषत से व्यापार करने के लिए कंपनी बनाने का निर्णय किया गया, जो कंपनी बनाई गई, उसका नाम था. द गवर्नर एंड कंपनी ऑफ मर्चेन्ट ऑफ ट्रेडी इन टू द इस्दीन्डीज ।
1600ई0 में ब्रिटेन की महारानी ऐलिजा वेध -1 ने 15 वर्षों के लिए भारत के साथ व्यापार करने का अधिकार पत्र कंपनी को दी यानि अंग्रेजी कंपनी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना १७००६० में की गई ।
इस कंपनी में 160950 में कैप्टन हॉकिंस को ४. जहाँगीर के दरबार में भेजा था और उसने जहाँगीर के साथ व्यापारिक संधि की थी, लेकिन वह इस कार्य में सफल नहीं हो सका था।
इसके बाद 1615 ई० में सर टॉमसरों को जहाँगीर के दरबार में भेजा गया, वह कुछ समय तक मुगल दरबार में रखा और अपनी जगह बनाई। जहाँगीर ने हॉकीस को ‘इंग्लिश खाँ’ की उपाधि दी थी। अंग्रेजों ने अपनी पहली फैक्ट्री 160850 क में सूरत में लगाई थी, जो 161380 में बन कर तैयार हुई थी। दक्षिण में ब्रिटिश ने अपनी पहली फैकद्री 161180 में मञ्चली पतनम् में लगाई थी। इसके अलावे कर्नाटक, मद्रास, और हुगली में कई कोठियाँ स्थापित करवायी।
1661 ई० में इंग्लैंड का राजा चार्ल्स-11 का विवाह पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन के साथ हुआ था, जिसके अवसर पर पुर्तगालियों ने चालर्स-11 को दहेज के रूप में मुंबई का द्वीप दे दिया था।
1668 ई० में चार्स ने ईस्ट इंडिया कंपनी को 10 पॉड वार्षिक किराये पर मुंबई दे दिया। इस प्रकार ब्रिटिश के पास मुंबई भी था गया।
उपरोक्त स्थितियों के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की गतिविधियों अब बंगाल में बढ़ने लगीं अब ब्रिटिश बंगाल में अपना विस्तार प्रारंभ करने लगे ।
Advent of Europeans in india – बंगाल में ब्रिटिश शासन की स्थापना
मुगल सम्राज्य के समय में बंगाल सूबे का सुबेदार मुर्शिद कुली खां था। यह फरुखसियर के काल के बाद बंगाल में स्वतंत्र हो गया था और शासन कर रहा था। इसके बाद उसका दामाद सूजाउद्दीन खां शासक बना। इसके बाद सरफराज खां बंगाल का नवाब बना ।
1740 ई० में बिहार का उप-सूबेदार अलीवर्दी खां था। इसने सरथराज खां की हत्या कर बंगाल की गदी पर कब्जा कर लिया। अलीवर्दी खां बंगाल में शासन व्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास किया, बौर अंग्रेज व्यापारियों पर नियंत्रण करने का प्रयास किया। उसने अंग्रेजों को बंगाल में फ्री व्यापार करने से रोकने का भी प्रयास किया। अलीवर्दी खां की मृत्यु के बाद बंगाल का नवाब शिराजउद्दौला बना।
शिराजुउद्दौला ने अंग्रेज व्यापारियों को शर्त के आधार पर व्यापार करने को कहा, लेकिन अंग्रेजों ने उसके बात को बने अनदेखी कर दिया। अंग्रेजों में कलकले की किलें बंदी बिना नवाब से आदेश किये हुए प्रारंभ कर दी ।
जिसके कारण शिजत्रुदौला और अंग्रेजों के बीच संबंध खराब हो गए। और अंततः शिरानुदौला ने कलकते के काशीम बजार पर कब्जा कर लिया । ब्रिटिक इतिहासकारों के अनुसार कोर्ड विलियम से पकड़े गए । 146 अंग्रेजों को शिरानउदौला ने एक कमरे में बंद कर दिया, जिससे दम घुटने के कारण 23 व्यक्तियों को छोड़कर बाकी जब अंग्रेज मारे गए। इस घटना को इतिहास में Black Hole की घटना कहा जाता है। इसके बाद शिराजमुदौला कलकत्ता का नाम अली नगर रखकर वापस हो गया। (20 जून 1754 ई०)
फरवरी 175780 में लॉर्ड कलाईव और वाटसन की सेना कलकत्ते पर आक्रमण के लिए धागे बढ़े और कलकत्ता को जीत लिया। कसी समय शिराजउदौला और ब्रिटिश के बीच अली नगर की संधि हुई थी। इस संधि के बनुसार अंग्रेजों को सभी प्रकार सुविधाएँ पुनः प्राप्त हो गई. कर मुक्त व्यापार करने और सिक्के घालते ढ़ालने के भी छूट दे दी गई। सिराजब्दौला ने सभी मांगों को मान लिया, दबाव में आकर ।
पलासी का युद्ध (23 जून 1757 ई०)
अंग्रेजों ने सिराजउदौला के सेनापति भीर जाफर कलकता का अधिकारी माणिक चंद, अभिन चंद आदि कोगों को अपने पक्ष में कर लिया और क्लार्डन ने सिराजठदौवा पर अली नगर की अधि उबंधन उलंघन करने का आरोप लगाया 1
सिराजउदौला की ओर से कोई जवाब आता की ब्रिटिश सेना ने सिराजउदौला पर आक्रमण कर दिया। 23 जून 1757 ई० को मुशतिबाद से 30 km दूर पलासी के मैदान में दोनों की सेना आमने- सामने आ गई। पलाली का बुद्ध हुआ, जिसमें सिराजउद्दौला पराबित हो गया, मीर जाफर का पुत्र मीरत ने सिराजउलैला की दया कर दी।
सिराजउद्दौला के बाद बंगाल का नवान भीर आफर को बनाया गया। वह 1757 ई० से 1760 ई० तक बंगाल का नवाब रहा। मीर जाफर ने अंग्रेजों को कई सुविधाएँ दी । 24 परगना जिले की जमीनदारी दे दी, बिहार, बंगाल, उड़ीसा में बिना चुगी दिये, व्यापार करने की छूट दे दी, और युद्ध हरजाने के रूप में 1 करोड़ 70 लाख रू० भी ब्रिटिश को दिया, फिर भी अंग्रेजों का मांग कम नहीं हुआ। ब्रिटिश ने मीर जाफर से, पुन: धन की मांग की, मीरजाकर ने धन देने से इनकार कर दिया। 176080 में कंपनी ने मीर जाफर के दामाद भीर कासीम से समझौता किया और मीर जाफर को, बंगाल के नवाब के पद से हटा दिया।
बंगाल का अगला शासक मीर कासीम बना, जो 1760 से 1764 ई० तक बंगाल का नवाब रहा । मीर कासीम ने ईस्ट ईण्डिया कंपनी को वर्धमान, मीदनापुर और चटगांव (वाग्लादेश) जिले की जमीनदार अंग्रेजो की दे दी। मीर कासीम ने बंगाल में प्रशासन को सुदृ करने का प्रयास किया। उसने अंग्रेजों के हस्तक्षेप से दूर रखने के लिए अपनी राजधानी मुजिबाद से मुंगेर दस्तानंतरीत कर दिया। मीर कासीम ने अंग्रेजों द्वारा दशतक और अन्य सुविधाओं के पुश्पयोग रोकने का प्रयास किया, किंतु सफल नहीं हो सका । इसने बंगाल में सभी प्रकार के कर समाप्त कर दिये, जिससे भारतीय और अंग्रेज व्यापारी एक समान हो गए।
बक्सर का युद्ध (22 0ct 1764 ई०)
इस समय बंगाल का नवाब मीर कासिम है, ब्रिटिश और मीर कासिम के बीच संबंध अत्यंत तनात पूर्ण हो गया है। अतः दोनों पक्ष युद्ध के लिए तैयार हो गये हैं। एक तरफ ब्रिटिश की सेना में हेकटर मुंनरों नेतृत्व कर रदा है, जबकि बंगाल की शोर से बंगाल का नवाब मीर कासिम, आध का नवाब सुजाउद्दौला, मुगल बादशाह शाद आलम की संयुक्त सेना थी।
22 अक्टूबर 1764 ई० को बक्सर के मैदान में दोनों की सेनाएँ आमने-सामने आ गई, जिसमें ‘ संयुक्त सेना’ पराजित हो गई और मीर कासिम भाग गया मुगल सम्राट शाह आल्म अवध का नवाब सुजाउद्दौला अत्र अंग्रेजों के दया पर निर्भर हो गए और बंगाल का नवान पुनः मीर बाफर को बनाया गया।
इस युद्ध के बाद 1765 ई. में इलाहाबाद की संधि हुई। इसी संधि में बिहार, बंगाल और उड़ीसा की दीवानी ब्रिटिश को मिल गई। इस प्रकार 1765 ई० में बंगाल के प्रशासन पर ईष्ट इंडिया कम्पनी का अधिकार हो गया।