Socio-Religious Reform Movement in india, भारत में 19वीं और 20वीं शताब्दी में कई समाजिक, धार्मिक आंदोलन हुए। भारत की जनता के बीच राष्ट्रवादी जागृति में कई लोगों और संगठनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस आंदोलन के जनक एवं आधुनिक भारत के अंग्रदूत राजा राम मोहन राय को माना जाता है ।
Socio-Religious Reform Movement in india – सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन
19 वीं शताब्दी के सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलनों में ब्रह्म समाज , राजा राम मोहन , ईश्वर चंद्र , मंग बंगाल आंदोलन , प्रार्थना समाज , सत्य शोधक समाज , आर्य , राम कृष्ण , थियोसोफिकल सोसाइटी आदि के अलावा कई छोटे छोटे आंदोलन और संगठन हुए।
Socio-Religious Reform Movement in india – 19 वीं शताब्दी सुधार आंदोलन –
ब्रहम समाज भौर राजा राम मोहन राय
राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 ई० को पश्चिम बंगाल के राधा नगर में हुआ था । इन्होंने 1815 ई० में कलकत्ता में आत्मीय सभा की स्थापना की थी और फिर 1817 ई० में डेविड देयर के सहयोग से हिंदू कॉलेज की स्थापना की थी। इन्होंने कई साहित्य भी लिखे थे, जिसमें प्रमुख था सम्बाद कौमुदी और फारसी भाषा में मीरातुल अखबार ।
1825 ई० में इन्होंने कलकत्ता में वेदात कॉलेज की स्थापना की, और फिर 20 अगस्त 1828 ई० को होंने ब्राम समाज की स्थापना की। इन्होंने हिन्दू धर्म में व्यापत कुरीतियों को दूर करने के लिए धार्मिक आंदोलन चलाया था, और एकेश्वरवाद का प्रचार प्रसार की। मुगल बादशाह अकबर II ने इन्हें राजा की उपाधि से विभूषित किया था।
राजा राम मोहन राय ने प्रक्ष्य समाज को संपूर्ण बंगाल में प्रचार प्रसार किया। इनके बाद देवेंद्र नाथ टैगोर आये और ब्रहम समाज को संपूर्ण बंगाल में पूनः स्थापित किया उन्होंने कलकत्ता में तत्व बोधिनी सभा की स्थापना की।
इनके बाद 1866 ई० में केशव चंद्र सेन आये। इन्होंने भारतीय ब्राह्म समाज की स्थापना की और राजा राम मोहन राय के विचारों को भागे बढ़ाया। फिर कुछ समय बाद देवेंद्र नाथ टैगोर के समर्थकों ने आदि ब्रदम समाज की स्थापना धीरे ब्रहम समाज की। इस प्रकार से धीरे- धीरे ब्रह् समाज बिखर गया।
ईश्वर चंद्र विद्या सागर
समाजिक धार्मिक आंदोलन के थे दूसरे प्रमुख नेता थे. जिनहोंने सभाविक 8 में कुरुतियों को के लिए के व्यापत दूर करने के लिए धर्म सुधार आंदोलन न्चलाया था। इन्होंने बंगला वर्णमाला प्रारंभ किया थी. और इन्हीं के नेतृत्व में 1856 ई० में विधवा पुर्नविवाद एकट कानूनी पारित हुआ था। जिससे विधवा पुर्नविवाह को सप से वैध मान लिया गया था।
यंग बंगाल आंदोलन
यंग बंगाल आंदोलन की स्थापना 1826 ई० में देनेडी विविधन टेरेजियों ने किया था। इन्होंने कलकत्ता में विश्वविद्यालय के युवकों को लेकर गंग बंगाल आंदोलन चलाया था और उन्होंने एक संस्था ईस्ट इंडिया का गठन किया था और कलकत्ता साहित्य गजट नाम पत्रिका निकाली थी। टेरेत्रियों को आधुनिक भारत का प्रथम राष्ट्रकवि माना बाता है।
प्रार्थना समाज
इसकी स्थापना 1867 ई० में केशव चंद्र सेन की प्रेरणा से महादेव गोविंद शाणाडे ने और श्रात्मा रंग पांडूकर ने किया था। इसकी स्थापना महाराष्ट्र में हुई थी। महादेव गोविंद राागाडे को पश्चिम भारत में सांस्कृतिक पुर्ण पुत्री पुनर्जागरण का अग्रदुत माना जाता है। इन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए समाजिक धार्मिक आंदोलन चलाया था।
सत्य शोधक समाज
1878 ई० में ज्योतिबा फूले ने इसकी स्थापना की थी। इन्होंने महाराष्ट्र में अछुतों लोगों के लिए एक उन्होंने था विद्यालय स्थापित की थी। एक प्रसिद्ध पुस्तक गुलाम गिरी।
आर्य समाज
आर्य समाज की स्थापना 1875 ई० में मुंबई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी। दयानंद सरस्वती के गुरू स्वामी गिरीजानंद श्री वथे, उन्ही की प्रेरणा से इन्होंने महाराष्ट्र में सामाजिक धार्मिक आंदोलन को धागे बढ़ाया था । 1877 ई० में आर्य समाज का मुख्यालय मुंबई से हटाकर लाहौर में स्थापित कर दिया गया था।
दयानंद सरस्वती ने हिन्दी में सत्यार्थ प्रकाश नामक एक पुस्तक लिखी थी। इन्होंने 1863 ई० में झुठे धर्मी के खंडन के लिए “पाखणु खंडती पताका ” लहराया थी, और इन्होंने कहा की हिंदु धर्म की पौराणिक ग्रंथों में मोकक्ष की प्राप्ति के लिए उपाय बताये गये है।
इन्होंने कहा कि पाश्चात्य ग्रंथों को छोड़कर वैदिक ग्रंथों का अध्ययन करो और इसलिए उन्होंने नारा किया था, “वेदों की ओर लौटो ” 1886 ई० में आर्य समाज ने दयानंद एंग्लो वैदिक स्कुल (O.A.U. School) की स्थापना की थी। आार्य समाज के लोगों ने बाल विवाद का विरोध किया और विधवा पूर्व पुनर्विवाह का समर्थन किया। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए संपूर्ण उत्तर भारत में कई स्कूल और कॉलेज भी खोले थे।
राम कृष्ण मिशन
1857 ई० में स्वामी विवेकानंद ने बंगाल में राम कृष्ण मिशन की स्थापना की थी। विवेका नंद का बचपन का नाम नवेंद्र प्त था और इनके गुरु कलकत्ता राम कृष्ण परमहंस , जो कलकत्ता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी थे।
स्वामी विवेकानंद के रामकृष्ण मिशन के स्थापना का मुख्य उद्देश्य समाज की सेवा करना था। इस मिशन का आदर्श वाकय है. ईश्वर की आराधना का सवोत्तम मार्ग मानव जाति की सेवा करना है। राम कृष्ण मिशन अपने सार्वजनिक कार्यों के लिए लोकप्रिय रहा है। इस मिशन के द्वारा समय समय पर बाढ़ अकाल महामारी आदि के समय मैं इसके द्वारा राहत कार्य चलाए जाते हैं ।
1899 ई० में शिकागों में आयोजित में विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया। जहाँ उन्होंने एखरूय पर प्रवचन दिया था। जिससे अमेरिका के लोग जाथ साथ दूसरे देश के लोग भी भत्यंत प्रभावीत हुए थे।
स्वामी विवेकानंद की एक प्रमुख पुस्तक “मैं समाजवादी हूँ” थी। यह पुस्तक अत्यंत लोकप्रिय हुआ था । उसमें समाजवादी दर्शन की बातें कहीं गई थी। इसके अलावे उन्होंने बेदांत दर्शन, कर्म योग जैसे कई प्रतिकाएँ भी प्रकाशित करवाई थी। सुभाष चंद्र बोस ने वामी विवेकानंद को आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन का आधुनिक पिता कहा है।
थियोसोफिकल सोसाइटी
इस संगठन की स्थापना 7 sept 1875 ई० में एक रुसी महिला मैडम ब्लावटस्की और कर्नल अल्कॉट ने न्यूयार्क में की थी। यह संगठन भारत में भी लोकप्रिय हुआ और 1882 ई० में थियोसोफिकल सोसाईटी का मुख्यालय मंद्रास के अड्यार में स्थापित किया गया, था और ऐनी बेसेंट को इसका प्रमुख बना दिया गया ।
ऐनी बेसेंट ने थियोसोफिकल सोसाईटी के विचार घाटा को आगे बढ़ाया और फिर 1898 ई० में उन्होंने बनारस में सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना की, जहाँ 1916 ई० में मदन मोहन मालवीय ने BHU की स्थापन की ।
उपरोक्त के अलावे कुछ अन्य छोटे-छोटे संगठन भी थे –
राधा स्वामी सतसंग – 1861 ई. में धागरा में शिव दयाल सिंह के द्वारा स्थापित किया गया।
दक्कन इड्रेकेशन सोसाईटी – M. G. राणाडे के द्वारा 1884 ई० में पुणे में स्थापित किया गया था।
सेवा सदन -1885 ई० में मुंबई में बहरूम जी भालाबाटी के द्वारा स्थापित किया गया था ।
भारत सेवा समाज – 1905 ई० में मुंबई में गोपाल कृष्ण गोखने के द्वारा स्थापित किया गया था।
जस्टीस पार्ट – 1916 ई० में मद्रास में द्वारा स्थाप्ति किया गया था।
बहिष्कृत हितकारणी सभा -1924 ई० में मुंबई में भीग रॉव अम्बेडकर के द्वारा स्थापित किया गया था।
आत्म सम्मान आंदोलन – 1925 ई० में मद्रास में E B रामास्वामी नाशंकर के द्वारा स्थापित किया गया था।
रहनुमाई माजदान -1851 ई. में नौरोजी फरदौन जी के द्वारा स्थापित किया गया था । उसी बांदोलन से जुड़े हुए दादा भाई नौरोजी थे। जिन्होंने रफते गोफ्तार नामक पुस्तक ममक लिखा था। यह आंदोलन पारसी धर्म सुधार आंदोलन था। से पाटसी धर्म में सुधार से संबंधित था ।
बहावी आंदोलन – यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार करने के लिए चलाया गया था। भारत में इसका प्रचार- प्रसार करने वाले सर सैयद अहमद बरेलेवी थे, और भारत में इसका मुख्यालय पटना में स्थित था ।
अली गढ़ आंदोलन – इसके संस्थापक सर सैयद श्रहमद खां थे। इन्होंने मुस्लिम समाज में पाश्चात्य शिक्षा को फैलाने का प्रयाप्त किया था स्कूल की स्थापना और उन्होंने 1875 50 में अलीगढ़ की थी। यही उकूल भागे चलकर mohammedan Anglo-Oriental college बना और धागे चलकर अलीगढ़ विश्वविद्यालय नाम मे लोकप्रिय हुआ ।
Socio-Religious Reform Movement in india – 20 वीं शताब्दी के सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन –
20 वीं शताब्दी के कुछ महत्त्वपूर्ण आंदोलन में गुरुद्वारा सुधार , वायकोम सत्याग्रह (1924-25), आत्म-सम्मान , गुरुवायूर मंदिर , गुरुद्वारागुरुद्वारा सुधार , वायकोम सत्याग्रह (1924-25), आत्म-सम्मान , गुरुवायूर मंदिर आदि
भारत धर्म महान- मंडल: बनारस (1902)
इसके संस्थापक गोपाल कृष्ण गोखले थे । मदन मोहन मालवीय, दीन दयाल शर्मा की इसमे सक्रिय भूमिका रही।
रूढ़िवादी हिंदू’ (सनातन-धरिनियों) संगठन जिसने आर्य समाज की शिक्षाओं का विरोध किया
भारतीय महिला संघ, मद्रास (1917)
इसकी स्थापन एनी बेसेंट ने की । इसमें भारतीय महिलाओं का उत्थान पर कार्य किए गए और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का आयोजन किया।
पूना सेवा सदन (1909)
इसकी स्थापना जी.के. देवधर और रमाबाई रानाडे धोंडो केशव कर्वे ने मिलकर की । इसमें आर्थिक उत्थान के साथ महिलाओं के लिए रोजगार उपलब्ध कराया गया।
भारत हडताल मंडल कलकता (1910)
सरलाबाला देवी चौधरानी ने इसकी स्थापना की । महिलाओं की शिक्षा और मुक्ति के कार्य किए गए ।
सामाजिक सेवा लीग (1911)
आम जनता की स्थिति में सुधार के लिए नारायण मल्हार जोशी ने इसकी स्थापना की । स्कूलों, पुस्तकालयों की शुरुआत की गई ।
भारतीय समाज सेवक बॉम्बे (1905)
अकाल राहत और आदिवासियों की स्थिति में विशेष रूप से सुधार के लिए गोपाल कृष्ण गोखले ने इसकी स्थापना की ।
सेवा समिति इलाहाबाद (1914)
हृदयनाथ कुंजरू के द्वारा समाज सेवा, शिक्षा के माध्यम से पीडित वर्ग के लिए सेवा समिति की स्थापना की गई।