Indian Preamble, भारतीय संविधान में मुख्य प्रस्तावना या उद्देशिका, भारतीय संविधान ‘आाइना है, मूल आधारभूत सिद्धांतो, दार्शनिक अवधारणाओं को यह संवैधानिक आदर्शों मुख्यत: नैतिक रूप में व्यक्त करता है प्रावधानों को औचित्य भारतीय संविधान भारतीय संविधान प्रदान करता है, प्रस्तावना दीर्घ दर्शन करवाता है, वहीं का सूक्ष्म रूप भी है, संविधान निर्माता संविधान में निहित तत्वों को स्पष्ट करते है, अतः प्रस्तावना और दार्शनिक प्रस्तावना के माध्यम से संविधान के आदर्श स्वरूप पक्ष को प्रकट करता है।
Indian Preamble – भारतीय प्रस्तावना
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आधार उद्देश्य प्रस्ताव है। इसे पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1946 ई० में प्रस्तुत किया था, और उसे कांग्रेस में स्वीकृति प्रदान की थी । इस प्रस्ताव के अनुसार भारतीय संविधान निर्मात्री सभा ने की और उसी के अनुरूप की गई निर्माण का तथा एक प्रस्ताव तैयार संविधान में व्यवस्थाऐ 26 नवंबर 1949 ई० को संविधान कार्य पूर्ण किया गया और 26 जनवरी 1950 ई० को इसे लागू किया गया।
उद्देश्य प्रस्ताव की मुख्य बातें
a) संविधान सभा दृढ संकल्प होकर यह घोषणा करती है, कि वह भारत की एक स्वतंत्र गणराज्य घोषित करेगी1
b) देशीय राज्य, यदि भारत में सम्मीलित होते है, लो सम्मिनित किया जाएगा।
c) इस स्वतंत्र एवंम प्रभुत्व सम्पन्न राज्य की सत्ता जनता से प्राप्त होगी।
d) समस्त जनता को सामाजिक आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय की स्थिति तथा विधि के समक्ष समाता विचारी की अभिव्यक्ति, विश्वास धर्म उपलब्ध उपासता तव्या का आश्वासन दिया। आएंगा।
e)अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए विशेष उपबंध किए जाएगे।
इस प्रकार से उद्देश्य प्रस्ताव के पंड़ित ज्वाहर लाल नेहरू ने संविधान के उद्देश्य को स्पष्ट कर दिया, ताकि एक शासन व्यवस्था को जन्म दिया जाएगा , जो जनता की सहमति से चलेगी , जिसमें स्वतंत्रता , समानता , बंधुत्व का वातावरण बनेगा , जिसमें सभी लोगों को समान न्याय प्रप्त होगी तथा अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शांति और सहयोग के आधार पर विदेशी नीति भी बनाई जाएगी ।
इस प्रस्ताव के अनुसार भारतीय संविधान निर्मात्री सभा ने एक प्रस्तावना तैयार किया और उसी के अनुरूप संविधान में व्यवस्था की गई तथा 26 नवम्बर 1949 को संविधान निर्माण का कार्य पूर्ण किया गया और 26 जनवरी 1950 से इसे लागू किया गया ।
Indian Preamble – भारतीय प्रस्तावना
हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण, प्रभुत्व,सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिर्पेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य बनाने के लिए तथा इसके समस्त नागरिकों को समाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार,अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा के अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरीमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई० को एतत द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमीत और करते है।
Indian Preamble के प्रमुख तथ्य
प्रस्तावना में भारतीय संविधान के प्रमुख तत्वो को इस प्रकार से व्यक्त किया गया है –
हम भारत के लोग→
भारतीय संविधान के प्रस्तावना में के लोग शब्द आया है एक प्रमुख तत्व हम भारत के लोग शब्द आया है, इसमें तीन मुख्य बाते कही गई है। प्रथम अंतिम संप्रभुता जनता में निहित होता है। दूसरी बात की संविधान निर्माता अनता के चुने हुए प्रतिनीधि होते है और तीसरी बात की भारतीय संविधान जनता की स्वीकृति और सहमति से निर्मित है। इसलिए प्रस्तावना में भारत के लोग शब्द आया है।
सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न
यह प्रस्तावना का दूसरा प्रमुख तत्व है, संविधान निर्माण के बाद भारत किसी बाध्य शक्ति द्वारा नियंत्रित नहीं होगा | वह अपनी शक्ति का स्त्रोत स्वंय होगा । समान्यत: आज की स्थिति में कोई भी राष्ट्र पूर्णतः सम्प्रभु नहीं होता है, क्योकि वह किसी न किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि या संगठन से जुड़ा हुआ रहता है, जिसके कारण उसे अप्रत्यक्ष रूप अंकुश होता है ।
समाजवादी
समाजवाद की परिभाषा – भारतीय संविधान में नहीं है, समाजवाद शब्द मूलतः उद्देशिका में सम्मिलित नहीं था। बल्कि उसे 42वें संविधान संशोधन के द्वारा जोड़ा गया। समाजवाद का अर्थ है आय और प्रतिष्ठा इसके अलावे जीवन स्तर में किसी भी प्रकार की विषमता नहीं पाया जाना , बल्कि उसका अंत होना चाहिए। इसलिए सरकार ने भारतीय संविधान से सम्पत्ति का अधिकार को समाप्त कर दिया. ताकि किसी भी प्रकार की समाजिक विषमता ना रहे।
भारतीय नीति का मुख्य लक्ष्य समाजवाद है, जिसका तात्पर्य समाजिक संगठन के ऐसे सिद्धांत उत्पादन या नीति से है, जो उत्पादन के साधनो पूँजी, भूमि सम्पति आदि का सम्पूर्ण समुदाय द्वारा नियंत्रण और स्वामित्व समर्थन करता है तथा सभी लोगो के बीच समान वितरण पर बल देता है।
पंथ निरपेक्षता
प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन द्वारा पंथनिरपेक्षता शब्द जोड़ा गया और संविधान में पंथनिरपेक्ष राज्य का आदर्श रखा गया था । इसका तात्पर्य है कि राज्य सभी मलो को समान रूप से रक्षा करेगा और स्वय किसी भी मत संप्रदाय को राज्य के धर्म के रूप में मान्यता नहीं देगा । इस प्रकार प्रस्तावना में पंथ निरपेक्षता शब्द जोड़कर सभी धर्माविलम्बीयों को समान अधिकार दिए गए है।
लोक तंत्रात्मक गणराज्य
उद्देशिका में लोकतंत्रात्मक गणराज्य शब्द का प्रयोग यह स्पष्ट किया गया है कि भारत की संविधान भारत में लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना करने का दृढ़ निश्चय करता है ।
प्रस्तावना में लोकतंत्रात्मक गणराज्य का जो चित्र है वह लोग तंत्र राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से स्पष्ट किया गया है अर्थात न केवल शासन में लोकतंत्र होगा बल्कि समाज में भी लोकतंत्र होगा जिससे न्याय स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व की भावना होगी राज्य की शक्ति पर किसी एक वर्ग का एक अधिकार नहीं होगा और शोषण का संचालन बहुत बहुमत के आधार पर होगी यानी लोकतंत्रात्मक राज्य का तात्पर्य ऐसे राज्य से है जिसके स्थापना जनता के द्वारा की जाती है और जनता के प्रतिनिधि ही शासन करते हैं और जनता के हित के लिए सरकार को संचालित करते हैं लोकतंत्रात्मक गणराज्य में राष्ट्र का प्रमुख वंशानुगत न हो कर निर्वाचित होता है ।
न्याय
न्याय की स्वतंत्रता और रक्षा के लिए भारतीय संविधान निर्माताधों में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर विशेष- बल दिया या प्रस्तावना में सभी नागरिकों को न्याय का आश्वाषण दिया गया है। न्याय की संकल्पना अतिव्यापक है। इसमें समाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सभी तरह के न्याय को महत्व दिया गया है। समाजिक न्याय का अभिप्राय है, कि मानव मानव के बीच जाति, धर्म, वर्ग आदि के आधार पर कोई भेदभाव न किया जाए। प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति का समान अवसर दिया आए।
इसी प्रकार आर्थिक न्याय का अर्थ है, कि अमीरी और गरीबी के बीच कोई अंतर ना हो और धन का संकेन्द्रण किसी एक व्यक्ति के पास न हो, जब्कि राजनीतिक न्याय का अर्थ है, कि सभी नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का समाव अवसर उपलब्ध कराया जाए जो भारतीय संविधान के प्रस्तावना में उल्लेखित है ।
स्वतंत्रता
संविधान में स्पष्ट किया गया है, कि भारत के नागरिकों को विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रदान की जाएगी और इसके संविधात के भाग -3 में मौलिक अधिकार के रूप में व्यापक प्रावधान किये गये है ।1इन स्वतंत्रताओं को संरक्षण देने के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका भी व्यवस्था की गई है, मतदात में भाग लेना अपने प्रतिनिधियों को चुनना सरकारी नीतियों की आलोचना करना आदि राजनीतिक स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है ।
समानता
समता के बिना स्वतंत्रता का कोई महत्व नहीं है, इसलिए संविधान के उद्देशिका में स्पष्ट कहा गया है कि भारत के सभी नागरिकों को अवसर और प्रतिष्ठा की समता प्रदान की जाएगी भारतीय संविधान के भाग-3. अनुच्छेद 14 से 18 तक समता के संबंध में समता का अधिकार का प्रावधान किया गया है. और इसलिए भारतीय संविधान में समानता का अधिकार प्रदान किया गया है। राजनीति विज्ञान के संदर्भ में समानता का अर्थ यह नहीं है, कि सभी पुरुष और स्त्रीयाँ सभी परिस्थितियों में समान है।
समानता से अभिप्राय यह है, कि प्रत्येक व्यक्ति को सम्पूर्ण समुचित विकाश के लिए समान अवसर उपलब्ध कराये जाए, इसके अतिरिक्त किसी एक व्यक्ति या वर्ग को अन्य व्यक्तियों या वर्गों के शोषण करने का अधिकार नहीं होगा यानि भारतीय संविधान की दृष्टि में सभी व्यक्ति समान है, और उन्हें देश की कानून के द्वारा विधि के द्वारा समान रूप से सरंक्षण प्राप्त है। इस प्रकार प्रस्तावना में समानता की चर्चा की गई हैं।
बंधुता
प्रस्तावना में बंधुता शब्द की चर्चा की गई , इसका अर्थ है – प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह सभी प्रकार के भाषायी धार्मिक और क्षेत्रियता को लांघ कर सभी लोगों के साथ भाईचारा की स्थिति बनाए रखे । भारतीय संविधान के अनुच्छेद-51 में विश्व बंधुता की बात कही गई है और विश्व बंधुता की संकल्पना के साथ प्राचीन आदर्श वाक्य – ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा को भी रखा गया , ताकि विश्व बंधुता बनी रहे ।
राष्ट्र की एकता और अखंडता
संविधान की उद्देशिका में व्यक्ति के गरीमा की को महत्व दिया गया है, तथा राष्ट्र की एकता और रक्षा अखण्डता को राज्य और जनता का पहला और अंतिम कर्तव्य माना गया है। उद्देशिका में अखंडता शब्द को पर वें संविधान संशोधन द्वारा अंतः स्थापित किया गया था और भारतीय संविधान में अनुच्छेद-19 में भारत की पर एकता और अखंडता के हित में आवश्यकता पड़ने प्रतिबंध लगाने का भी प्रावधान किया गया है।