Public interest litigation(PIL), जनहित याचिका एक ऐसी याचिका है, जिसके माध्यम से पीड़ित व्यक्ति स्वयं या अन्य कोई व्यक्ति या संस्था द्वारा पीड़ित व्यक्ति की ओर से न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करता है। इसके बाद न्यायालय कारवाई करती है।
Public interest litigation
भारतीय कानून व्यवस्था में जनहित याचिका सार्वजनिक हित एवं रक्षा हेतु एक माध्यम है. इसे भारत में प्रारंभ करने वाले और लोकप्रिय बनाने वाले पी. एन. भगवती थे।
जनहित याचिका उन सर्वाधिक शक्तिशाली अस्त्रों में से एक है. जिसे भारत में विधायिका और कार्यपालिका के कानूनी दायित्वों को लागू करने के लिए हाल ही मे न्यायपालिका ने प्राप्त किए है। इसका उद्देश्य है – ‘लोगो के जनहित में न्याय प्रदान करना ‘
जनहित याचिका की दूसरी व्याख्या इस प्रकार से दी जा सकती है. यह एक ऐसी याचिका के रूप में उपयोग किया जा सकता है, जिसका संबंध अधिकांशत: लोगो के हित संरक्षण से है ন कि व्यक्तिगत हित संरक्षण से है।
जनहित ययिका जारी करने का अधिकार केवल सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय को प्राप्त है। इसके तहत सार्वभनिक दित के लिए जागरूक कोई व्यक्ति या संस्था जनहित याचिका दर्ज कर सकता है। एक Post card के रिक्त याचिका के रूप में उसे माना भाता है, इसमे आवश्यक नहीं है, कि पीड़ित व्यक्ति ही स्वयं न्यायालय जाकर रिकत याचिका दाखिल करे बल्कि किसी भी नागरिक द्वारा पीडित व्यक्ति के पक्ष में अपील दायर कर है, वास्तव में अनहित याचिकाएं भारतीय संविधान था किसी कानुन में परिभाषित नहीं है, बलकि ये सर्वोच्च न्यायालय के संवैधानिक व्याख्या के द्वारा उत्पन्न हुआ है।
Public interest litigation – उद्देश्य
जनहित याचिका ने मुख्यतः 4 उद्देश्यों को पुरा किया है –
1) इसने लोगो को अनेक अधिकारी तथा उन्हें क्रियान्वित करने के लिए न्यायपालिका के रूप में संस्थागत व्यवस्था के प्रति अत्यंत जागरूक बना दिया गया। यानि यह कहा जा सकता है, कि अनहित याचिका में न्यायपालिका लोकतांत्रिकरण कर दिया है।
2) जनहित याचिका के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद-उर और अनुच्छेद 226 की उदार व्याख्या करते हुए, मौलिक अधिकारों के क्षेत्र को अंत्यत व्यापक बना दिया।
3) इसने कार्यपालिका और विधायिका को लोगो के प्रति संवैधानिक दायित्वों के निर्वाद के लिए बाध्य कर दिया।
4) इसने लोगों को भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन तथा रहने योग्य पर्यावरण प्रदात करने का प्रयास किया।
इस प्रकार जनहित याचिकाओं से उपरोक्त प्रकार की उद्देश्यों को पूर्ति तो हुई ही वर्तमान समय में भी विभिन्न क्षेत्रों में चाहे हुसैन आरा खातून बनाम बिहार राज्य का मामला हो या दिल्ली में प्रदुषण कम करने के लिए रिहायसी इलाके 1 लाख औद्योगिक इकाइयों को बाहर स्थापित करने का मामला हो या या फिर दिल्ली में पर्यावरण संरक्षण के लिए CNG बसें चलाने का मामला हो या फिर राँची में शहरी इलाके से खाल हटाने का मामला हो ।
इसके अलावे शिक्षा, राजनीति, चुनाव और मानवाधिकार से संबंधित मामले दो इन सभी मामले में जनहित याचिका ने अपना प्रभाव दिखलाया है और एक प्रकार से न्यायपालिका ने कार्यपालिका और विधायिका को जनहित या सार्वजनिक हित में कार्य करने के लिए बाध्य कर दिया है।
हलाकि अनदित याचिकाएँ आलोचना से मुकत नहीं है, यह कहा जा सकता है कि इसने न्यायालय की अमान्य न्यायिक क्रियाकलाप में बाधा डालने शुरू कर दी है। साथ ही इससे कुछ चीजों को मात्रा विलम्ब करने के उद्देश्य से याचिकाएँ दायर की भाती है। वर्तमान समय मे जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग के संभावनाएं बढ़ गई है, जिसमें न्यायालय का महत्वपूर्ण समय नष्ट यह होता है,
अत: जनहित याचिकाओं के संबंध में न्यायपालिका को स्वयं अपनी ‘अचार संहिता विकसीत करनी चाहिए, हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अनावश्यक जनहित याचिकाओं को दायर करने पर अपनी नाराजनी जताई है और राजस्थान के एक ट्रस्ट को 25 लाख जुर्माना लगाया है, साथ ही आजीवन जनहित याचिका दायर करने पर रोक लगा दी है। फिर भी यह कहा भा सकता है, कि लोगो या वैसे सर्वाजनिक संस्थाओं, जो सार्वजनिक हित के लिए कार्य करते है, उनके कार्यों और न्याय दिलाने में जनहित याचिक एक सार्थक प्रयास है।