Khortha lok katha – खोरठा लोक कथा

Khortha lok katha , खोरठा लोक कथा कहेक आर सुनेक परमपरा जनम भेल हई । आज के दिन तेइक खुटी दर खुटी चलल आ रहल हइ आर धीरे धीरे नानक रकमेक लोक कथा जुड़ते गलेक ।

Khortha lok katha – खोरठा लोक कथा

खोरठा लोक कथाक अड़ा से गोड़ा तइक देखल जाए तो समाज समाजिक विकास के टवान लोक कथा से भेटा हई । खोरठा लोक कथाक बिसर पहिले अंध बिसुवास खाम खेनाली, नखनी आरो, बाटो रहो हलई, मेनतुल, जबसे- तइसे समाज विकास करल गेइला बैस – बेइसे कहानीक बिसइ अर परकिरति बदलल हुई । पढनेक लोक कथाएं परकिरति के पातर अरसे – भाउल बादर, सियार, बाघ, दायी आरो. आरो रहो हलई ।

Khortha lok katha - खोरठा लोक कथा

मकिन बिकास के डहरे चइल के खोरठा लोक कथाएं पातर बदल भाई हुई भार ओकर जगाए राजा-रानी, मंत्री, ठग, चोर भूत, देवता राक्षस आरो-आरो बइन गेल हुई, मैनेक खोरण लोककथा आपना ससकीरति ठार सभयता के मौताबिक बिकास करल हुई।

Khortha lok katha – खोरठा लोक कथा बिसेसता

खोरठा लोककथा के इतिहास और पुराना हई। खोरठा सादिते सिस्ट कहानी विधात के जननी लोक कथा के मानल जाइ हुई । सहे खातिर खोरठा लोक कथाक आपन बिसेसता पावल जा हई, जे हेठे रकम हई –

a) बिसेस समय आर ठाव

खोरठा लोक कयाक बिसेसता हड़, की जेकर कहेक निसचित समय आर ठांव होवो हुई मोटा-मोटा साइमेक होरा से राहत भर, राउवदारी दिने दोपहर के समय लोक कथा कहेक परमपरा हुई, इसके रकम गरुडांगर के गोरखी खरे खलियान अर काम धंधाक बेराए कहानी कहेक परमपरा देखल आइ हई।

b) सुनवइया आर कहवइया

खोरठा लोक कथा के बिसेसता हुई, कि सुनवझ्या भर’ कहवझ्या निसथित रूपे – पावल आए हई कहनी कदवईआ मोटा-मोटी बुढ़ा-बुढी लोग दावो. छत मामित कहनी सुनवश्या गीदर गुला होवो हाथिन ।

c) गिआन आर सिखान के बात

खोरठा लोक कथा मनोरंजन के साथ-साथे कोल्दो – ना. कोन्दो गियान भर सिखान के बात रखो हर्छ। समाजे कहनी कहवइआ लोग आपन अनुभव से गिदर गुला बुझ्ध गियान बाढ़‌वेक काम करो हय।

d) मउखिक परमपरा

खोरठा लोक कथाक उच बिलेसता हई की महखिक परमपरा से संचालित हावो हई, जे पीढ़ी दर पीढ़ी चलो हल हुई ।

e) रचनाकार आर रचनाकाल अगियात

बात सन्च हुई, कि खोरठा कोनहो व्यक्ति के ना होवो बिन्चकुन ई टा व्यक्ति के साझा समपाइत होवो हई । मेनेक लोक कथाक रचनाकार आर रचनाकाल अगियात हवो हई ।

f) परकिरिति से लस्तंगा

खोरठा लोक कथाक परमिरति से गहरा संबंध पावल जाए हुई। लोक कथाएँ परमिटति के भिन्नु -भिन्न रूप अइसे गाय-विरक्ष, पशु – पंक्षी, मउसम नदी नाला, पहाड़, परबत, देव – तेन के बरनन देस भावें करो हुई । इटा खोरठा लोक कथाक बोड़ बिसेसता हुई ।

g) सांसकिरितिक बरनन

खोरठा लोक कथाक बिसेसता हइ की आपन संसकिटति से जनमल हई घर आपन लोड़ रूप धाटन करल छइ । खोरण लोक कथाएं झारखंडी सेसकिरितिक के बखान करो हुई । बखोरठा लोक कथाए हियाक परब – तेहार 1 रहन-सहन, खानपान, रिति रेवाज, आरो- आरो बरनन करो हई ।

Khortha lok katha – खोरठा लोक कथा बरगीकरन

खोरठा लोककथाक का इतिहास पूराना बरियाकाल से हुई । खोरठा क्षेतरे जुग जुग आदि से लोक कथा के परमपरा चलल आ रहल हइ, एकर लस्तंगा आपन समाज संसकीरति आर परकिरति से हुई। सेहे खातिर बिदुवान गुला लोक सादिते लोक कथाक बनेड़ ठाव देल खोरठा लोक कथाक बेस तरी समझे बुझे आर अध्ययन अध्यापन खातिर ऐकटा बाटा खुटा बा बरगीकर करके परियास करल हाथिन ।

डॉ. गजाधर महतो प्रभाकर मते बरगीकरन

खोरठा भासाक पहिल पी.एस.डी. करवाइया डॉ. गजाधर महतो प्रभाकर, आपन सोध पातरे ‘ खोरठा लोक कथा बिसय अर विसलेसन’ खोरठण लोक कथाक वाटा खुटा इस रकम से करल हथीन । हुवे डॉ. बी. एन ओहदार श्री भापन किताबें, खोरण भासा और साहित्य उद्भव एवं विकास’ खोरठा लोककथाक भिन्नु – भिन्नु खेचा साधा करेक परियास करे हथिन जे हेठे रूम हई ।

a) विषयगत आधार

b) रूपगत आधार

c) आकारगत आधार – 1) छोट कथा 2) बड़ कथा

d) परकिरिति गत आधार – 1) सुन कहानी 2) जान कहानी (धरम कथा दंत कथा सधारन कथा )

डॉ. ए के झा जी मते बरगीकरन

मकिन खोरठा भासाक नमबेचका बिदुधान डॉ. ए के झा जी आपन किताबे ‘खोरठा लोक कथा’ खोरठा लोक कथाक हेठे रकम बरगीकरन करल हथीन – a) सुन कहानी b) जान कहानी

सुन कहानी

खोरठा लोक साहिते मोटा-मोटी सब कथा बा कहनी सुन काहनी जैसन दावो हई, जे ऊठा ऊठी अर बैठा-बैठी कहते सुनते कदनी कहेक परम्परा पावल आए हुई । ऐसन लोक कथाक सुन कहनी कदल जाए हई, जे सिरिक सुनवाईया लोकेक मनोरंजन करेके काम करो हुई ।

जान कहानी

खोरठा लोक साहिते ऐसन लोक कथाक बुझवल नामहू जानल जा दइ जान कहनी सुनबड्या लोकेक सिखात, गिभन आर माया धमकावे के काम करो हई। परोठा लोक कथाए भान कहनी के तीन गो भेद पावल जाए हई ।

धरम कथा –

खोरठा देतरे आपन संसमिति के करम, सोहराय दुसु, मंडा भारो-आरो परब-तेहार के कहनी इ खाधाए सामिल करल जाए हुई। भरते-करम परखे करमा आर धमारा के कथा आटो – आरो

दंत कथा

खोरठा लोक सादिते वैड़सन कहनी ब कथा के सामिल करल आए हई, ओ पुरखा धरम से नाता गोतर रखो हुई। जइसे –

हार जोतवा , अर शिव-पार्वती के कथा भगवान विष्णु कथा, नारद मुनि कथा सतनारायण कर कथा. आरो. आरो

साधारन कथा

खोरना छेतरे बाघ, भाऊल, सियार, चिरे-पिनगुनी, भूत-भरेत, पोर. राजा-मंतरी भारी- आरो कथा के साधारन कथा रूपे जानल जा हइ ।

खोरठा लोक कथाक बिसये नगरे गबचावल जाए तो पता चलो हुई, कि खोरठाक आापन कहनी बा कथा खार-खंट हई भमिन दोसर तेसर सामाज और संसळीरति से परभावित नाम हई। खोरठा लोक कथाएं खाम – खेभाली (विपरीत), काना पतियार (अंध विश्वास) भाइग-गगवोन के चर्चा कम भेटा हुई, तरयो खोरठा लोक कथाएं समाज के बोल डहर देखावे के काम करो हई ।

Khortha lok katha

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